राजनीति विज्ञान / Political Science

अधिकारिता या क्षेत्राधिकार शब्द से आप क्या समझते हैं? क्षेत्राधिकार की सीमाएँ

अधिकारिता या क्षेत्राधिकार शब्द से आप क्या समझते हैं? क्षेत्राधिकार की सीमाएँ
अधिकारिता या क्षेत्राधिकार शब्द से आप क्या समझते हैं? क्षेत्राधिकार की सीमाएँ

अधिकारिता या क्षेत्राधिकार शब्द से आप क्या समझते हैं? क्षेत्राधिकार से सम्बन्धित सभी सीमाओं की विवेचना कीजिए। 

अधिकारिता या क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) – राज्य क्षेत्राधिकार या अधिकारिता का अर्थ उस विधिक क्षमता से है जिसको एक राज्य अपने सम्बन्धित राज्य क्षेत्र पर इस्तेमाल करता है। राज्य क्षेत्राधिकार के सम्बनध में अन्तर्राष्ट्रीय विधि में कोई निश्चित नियम नहीं है। राज्य में जितने भी प्राणी, पदार्थ पाये जाते हैं उन पर राज्य का पूरा अधिकार होता है। राज्य की सीमा में आने वाले सभी राज्य का कानून मानने को विवश होते हैं। राज्य को अपने क्षेत्र में पूर्ण अधिकार रहता है और कोई बाह्य शक्ति इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।

प्रो. फेनविक ने इसे परिभाषित करते हुए कहा है, “अपनी राष्ट्रीय सीमाओं में स्थित सभी लोगों और सम्पत्ति पर एक राज्य के क्षेत्राधिकार द्वारा उस राज्य को अन्य राज्यों के प्रति अनेक दायित्व सौंपें जाते हैं। इन अनेक दायित्वों के परिणामस्वरूप राज्य को ऐसे प्रयास करने पड़ते हैं जिनके द्वारा वह अन्य राज्यों के कष्टदायक कार्यों पर रोक लगा सके। इन्हीं दायित्वों के परिणामस्वरूप एक राज्य के सम्प्रभु आगन्तुकों पर अपने राष्ट्रीय कानून को प्रभावी बनाने से रोकता है, दूसरे देश की सम्पत्ति की रक्षा करता है और उसके प्रति सद्भाव रखता है। “

महेश प्रसाद टण्डन के अनुसार, “एक राज्य अपना क्षेत्राधिकार अपने क्षेत्र के समस्त व्यक्तियों और वस्तुओं पर रखता है। यह व्यक्ति प्राकृतिक रूप से उस क्षेत्र में पैदा हुए हों, बसने के कारण नागरिक बने हों अथवा विदेशियों ने कुछ शर्तों के आधार पर वहाँ की नागरिकता स्वीकार कर ली हो। वस्तुओं के अन्तर्गत वे सब प्रकार की सम्पत्तियाँ आती हैं, जो राज्य की सीमा के अन्तर्गत हों। उसका क्षेत्राधिकार उन जहाजों पर भी होता है, जो उसके क्षेत्रीय पानी पर चलते हैं, या उनके बन्दरगाहों पर आते-जाते हैं। उसका क्षेत्राधिकार उनका कृत्यों पर भी रहता है जो जहाजों द्वारा बन्दरगाहों या क्षेत्रीय पानी में होते हैं। व्यक्तियों और वस्तुओं पर उनका पूर्ण प्रभुत्व एवं अधिकार रहता है।”

लार्ड मैकमिलन ने इसे परिभाषित करते हुए कहा है कि “अन्य सम्पूर्ण- प्रभुत्व-सम्पन्न राज्यों की ही भाँति इस राज्य की सम्प्रभुता की यह प्रमुख विशेषता है कि इसे अपने राज्य की परिधि के अन्तर्गत विद्यमान सभी व्यक्तियों और वस्तुओं पर क्षेत्राधिकार हो तथा इन सीमाओं में उत्पन्न होने वाले सभी दीवानी व फौजदारी मामलों पर विचार करने का अधिकार हो।”

प्रो. ब्रायली के अनुसार, “सामान्य रूप से प्रत्येक राज्य अपने प्रदेश के अन्तर्गत अकेला क्षेत्राधिकार रखता है, परन्तु वह क्षेत्राधिकार पूर्ण नहीं होता क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय विधि द्वारा इस पर पूर्णत: अथवा आशिक रूप से राज्य के क्षेत्राधिकार से पृथक् रखा जाता है और इन पर उस राज्य का कानून प्रभावी नहीं होता है। इन व्यक्तियों या वस्तुओं को स्थानीय क्षेत्राधिकार से छूट मिल जाती है। राज्य के क्षेत्राधिकार पर लगे इस नियम को जानना परम आवश्यक होता है।

क्षेत्राधिकार की सीमाएँ

(i) प्रादेशिक समुद्र में क्षेत्राधिकार (Jurisdiction in Territorial Wars) – राज्य के समीप का कुछ समुद्रीय क्षेत्र उस राज्य के क्षेत्राधिकार में आता है। कुछ मील के समुद्री जल को सामुद्रिक पेटी (maritime belt) के नाम से भी पुकारा जाता है। Bynker Shock ने समुद्र पर सम्प्रभुता के निबन्ध (Do domino Maris dissertation) को प्रतिपादित किया और कहा कि ‘ तटवर्ती राज्य की सत्ता समुद्र में उतनी चौड़ाई तक विस्तीर्ण होनी चाहिए जहाँ तक उसकी तोपों के गोले मार कर सकें।

(ii) बन्दरगाहों पर क्षेत्राधिकार (Jurisdiction on Ports)- जिस देश में बन्दरगाह होते हैं, उन पर राज्य का पूर्ण अधिकार होता है। राज्य जो नियम बनाता है उसका पालन प्रत्येक विदेशी जहाज को भी करना पड़ता है। विदेशी भी देश के नागरिकों के ही समान नियमों का पालन करते हैं।

(iii) खुले समुद्र पर क्षेत्राधिकार (Jurisdiction over High Seas) – खुले – समुद्र से तात्पर्य सामुद्रिक पेटी के बाहर वाले भाग से लगाया जाता है, इस पर प्रादेशिक अधिकार नहीं होता है। प्रसिद्ध विधिशास्त्री प्रो. स्टॉर्क ने खुले समुद्र में निम्नलिखित तत्वों को माना है

(i) खुले समुद्र पर कभी किसी देश की सम्प्रभुता स्थापित नहीं होती।

(ii) सभी देशों को नौकायन की स्वतनता होती है।

(iii) किसी जहाज को अपने झण्डे फहराने के अलावा क्षेत्राधिकार स्थापित करने का कोई अधिकार नहीं होता।

(iv) अपने झण्डे को फहराकर अपने जहाज पर ही क्षेत्राधिकार रखा जा सकता है।

(v) प्रत्येक राज्य एवं नागरिक खुले समुद्र में तार व तेल लाइन बिछा सकते हैं, मछली पकड़ सकते हैं तथा वैज्ञानिक प्रयोगों हेतु समुद्र का प्रयोग करने का अधिकार रखते हैं।

इसके अतिरिक्त सार्वजनिक व व्यक्तिगत जहाजों और दीवानी का दण्ड सम्बन्धित क्षेत्राधिकार भी होता है।

बाह्य प्रादेशिकता (Ex-territorial) – एक राज्य का विदेशियों पर उसी प्रकार से अधिकार होता है जैसा कि अपने देश के निवासियों पर। कुछ व्यक्तियों व वस्तुओं को क्षेत्राधिकार के नियमों के नियन्त्रण से मुक्त कर दिया जाता है। इस प्रकार मुक्त कर दिये जाने को बाह्य प्रादेशिकता (Ex-territorial) कहा जाता है। दरअसल, बाह्य प्रादेशिकता एक कल्पना मात्र है, जो वैधानिक रूप की होती है, जिसके मध्य से व्यक्ति और वस्तुएँ क्षेत्राधिकार और नियोजन के हेतु उस राष्ट्र के लिए जिसमें कि वे हैं, प्रदेश के बाहर तथा किसी राष्ट्र के अन्दर समझी जाती हैं।

विधिशास्त्र के अनुसार, “बाह्य प्रादेशिकता एक वैधानिक प्रकल्पना है जिसके द्वारा कुछ व्यक्तियों तथा वस्तुओं को क्षेत्राधिकार तथा नियन्त्रण के प्रयोजन से उस राष्ट्र के जिसमें कि वे वस्तविक रूप से हैं प्रदेश के बाहर तथा किसी दूसरे राष्ट्र के भीतर माना जाता है।”

प्रो. ब्रायलीं ने बाह्य प्रादेशिकता को विवरण सहित लिखा है कि, “बाह्य प्रादेशिकता शब्द का प्रयोग व्यक्ति तथा वस्तु की राज्य की प्रादेशिक सीमा पर उपस्थिति का वर्णन करने के लिए किया जाता है, परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियमों के द्वारा उसे पूर्ण या अपूर्ण रूप से राज्य के क्षेत्राधिकार से वंचित समझा जाता है।”

राज्यक्षेत्रीय अधिकारिता (Territorial Jurisdiction)- एक राज्य अपने राज्य क्षेत्र पर अधिकारिता के होने को राज्यक्षेत्रीय अधिकारिता कहा जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि राज्य अपने राज्यक्षेत्र के अन्तर्गत सभी व्यक्तियों तथा वस्तुओं पर सिविल तथा दाण्डिक अधिकारिता का प्रयोग करता है। अपने राज्यक्षेत्रीय परिसीमा के अन्तर्गत सभी व्यक्तियों तथा वस्तुओं पर एवं अपनी परिसीमा के अन्तर्गत उत्पन्न होने वाले सभी सिविल तथा दाण्डिक हेतुकों में अधिकारिता धारण करने को प्रभुत्व-सम्पन्नता का प्रतीक माना जाता है। राज्यक्षेत्रीय अधिकारिता के सिद्धान्त का विस्तार सीमाओं के अन्तर्गत भू-राज्यक्षेत्र, आन्तरिक जलों, राज्यक्षेत्रीय समुद्र, भू-राज्यक्षेत्र भू के ऊपर वायुमण्डल तथा भूमि के नीचे उपभूमि तक होता है। अपने राज्यक्षेत्र पर राज्य द्वारा अधिकारिता का प्रयोग करना राज्य का अधिकार । अन्तर्राष्ट्रीय विधि आयोग द्वारा 1949 में तैयार की गयी राज्यों के अधिकार तथा कर्तव्य प्रारूप घोषणा (Draft Declaration on the Rights and Duties of States) में प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक राज्य को अपने ऊपर तथा उसमें स्थित सभी व्यक्तियों और वस्तुओं के ऊपर अधिकारिता के प्रयोग का अधिकार है। राज्यक्षेत्रीय अधिकारिता का आधार उस सिद्धान्त पर आधारित है, जो राज्य क्षेत्र को राज्य की अवधारणा के संघटक तत्व के रूप में मान्यता देता है।

राज्यक्षेत्रीय अधिकारिता की सीमाएँ

निम्नलिखित श्रेणी के व्यक्तियों को उन्मुक्तियाँ प्रदान की जाती हैं-

(1) विदेशी राज्यों के अध्यक्ष या राजा- जब किसी विदेश का राजा या सर्वोच्च अधिकारी या अध्यक्ष कहीं यात्रा कर रहा हो अथवा निवास कर रहा हो तो वह उस राज्य के क्षेत्राधिकार से मुक्त माना जाता है। यदि वह गुप्त रूप से भी कहीं निवास कर रहा है तो भी वह क्षेत्राधिकार से मुक्त समझा जायेगा। न्यायालय में इन पर वाद नहीं लाया जा सकता है।

ब्रिटिश विधि के अनुसार, विदेशी अध्यक्षों या सर्वोच्च अधिकारी को दो प्रकार से मुक्ति प्राप्त है- (i) उन पर कोई वैधानिक कार्यवाही नहीं की जायेगी, तथा (ii) विदेशी राजा की सम्पत्ति को किसी वैधानिक कार्यवाही द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

(2) विदेशी राजनीतिक अभिकर्ता- विदेशी राजदूत फौजदारी मामलों में पूर्णतः मुक्त हैं, किन्तु दीवानी वाद के सम्बन्ध में उन्हें आंशिक मुक्ति मिली है, क्योंकि राजनयिक प्रतिनिधि दीवानी क्षेत्राधिकार से उन्मुक्ति का परित्याग कर सकते हैं। यह उन्मुक्ति उनके परिवारीजनों एवं सम्बन्धियों पर भी लागू समझी जाती है।

(3) विदेशी सार्वजनिक जलपोत- सभी जलपोत, जिनमें सरकारी तथा सरकारी काम में लाये जाने वाले जलपोत, युद्धपोत, सामान लादने वाले तथा परिवहन में प्रयोग आने वाले जलपोत शामिल हैं, बाह्य प्रादेशिकता के अन्तर्गत आते हैं। Parlement Belge, L.R.5,P.D. 197 (1880) के वाद में जो कि बेल्जियम का राजनीतिक पोत था जिसका प्रयोग डाक के लिए होता था, ब्रिटिश जहाज से टकरा गया और ब्रिटेन के व्यापारियों की पर्याप्त क्षति हुई। यह जहाज सार्वजनिक पोत नहीं था। अतः ब्रिटिश जहाज के स्वामियों ने 1880 में क्षतिपूर्ति के लिए ब्रिटिश कोर्ट में वाद दायर किया। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा, “जहाज बेल्जियम सरकार का सार्वजनिक जहाज है। अतः उससे किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति की माँग नहीं की जा सकती।” इसके अतिरिक्त Schoener Exchange Vs. Mefaddon के वाद में भी ऐसा ही निर्णय हुआ।

सार्वजनिक जहाजों पर प्रतिबन्ध की भी उचित व्यवस्था की गयी है, ताकि उन पर नियन्त्रण बना रह सके। इस सम्बन्ध में फेनविक ने कहा है कि, “यदि कोई व्यक्ति तट पर अपराध करने के पश्चात् भाग कर सार्वजनिक जहाज पर शरण प्राप्त कर लेता है, तो तटस्थ राज्य उसके समर्पण की माँग नहीं कर सकता, वरन् उसे कूटनीतिक कार्यवाही ही करनी चाहिए।”

(4) विदेशी सेना पर क्षेत्राधिकार- जब किसी प्रदेश की सेना या कोई टुकड़ी विदेशी प्रादेशिक समुद्र से होकर निकलती है तो उस पर बाह्य प्रादेशिकता प्रभावी होती है अर्थात् वह प्रादेशिक क्षेत्राधिकार से मुक्त रहती है। इसे अमेरिका ने स्वीकार किया है, परन्तु ब्रिटेन व ऑस्ट्रिया ने इसे स्वीकार नहीं किया है।

(5) अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं पर क्षेत्राधिकार- सभी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं, जैसे- अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ, संयुक्त राष्ट्र संघ आदि को प्रादेशिक क्षेत्राधिकार से छूट प्रदान की गयी है।

(6) विदेशी प्रभुत्वसम्पन्न की सम्पत्ति – विदेशी प्रभुत्वसम्पन्न की सम्पत्ति राज्य की अधिकारिता से उन्मुक्त रहती है। जब तक विदेशी प्रभुत्वसम्पन्न की सम्पत्ति में कुछ निहित होता है, तब तक वह उन्मुक्त रहती है और यह महत्वपूर्ण नहीं है कि सम्पत्ति का प्रयोग किस उद्देश्य से किया गया था। स्क्रूनर एक्सचेन्ज बनाम मैक फैडन में न्यायालय द्वारा यह कहा गया था कि राष्ट्रों ने विदेशी प्रभुत्वसम्पन्न के स्वायत्त के लिए बन्दरगाह में प्रवेश करने वाले सार्वजनिक सशस्त्र जलयानों (Public armed ships) पर अपनी अधिकारिता नहीं रखते।

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Anjali Yadav

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