“संयुक्त राष्ट्र चार्टर ने तटस्थता की अवधारणा को निश्चायक रूप से प्रभावित किया है परन्तु इसका पूर्णरूपेण अन्त नहीं किया है।” टिप्पणी कीजिए।
राष्ट्र संघ की भाँति संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत भी सामूहिक सुरक्षा एवं उत्तरदायित् उपबन्ध का निर्माण किया गया लेकिन राष्ट्र संघ के उपबन्धों की तुलना में संयुक्त राष्ट्र के उपबन्धों में ज्यादा मजबूती थी। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अधीन सुरक्षा परिषद को वास्तविक शक्ति दी गयी तथा उसे किसी राज्य के विरुद्ध शास्ति को लागू करने की क्षमता प्रदान की गयी। सुरक्षा परिषद का विनिश्चिय संयुक्त राष्ट्र के सभी राज्यों पर विधिक रूप से बाध्यकारी होता है। अनुच्छेद 2. (5) प्रावधान करता है कि सभी सदस्य संयुक्त राष्ट्र को उसके द्वारा की गयी किसी कार्यवाही में सहायता देंगे, जिसे वह इस चार्टर के अनुसार, करता है। इस प्रावधान अन्तर्राष्ट्रीय विधि के कई विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला कि तटस्थता विधिक संख्या के रूप में समाप्त हो गयी है क्योंकि यदि सुरक्षा परिषद के द्वारा किसी राज्य के विरुद्ध बल का प्रयोग किया जाता है, तो सभी राज्यों का ऐसी कार्यवाही में सहायता देना एक विधिक दायित्य हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र का कोई सदस्य सुरक्षा परिषद् के कहने पर इस आधार पर उपेक्षा कर सकता या विरोध नहीं कर सकता कि वह तटस्थता की नीति का पालन करने की इच्छा रखता है या सन्धि द्वारा उसके प्रति तटस्थ रहने का वचन दे चुका है, जिसके विरुद्ध शास्ति लागू की गयी है। इसलिए, यह कहा जाता है कि चार्टर के अधीन तटस्थता को निषिद्ध कर दिया गया है। वास्तव में सैद्धान्तिक रूप से संयुक्त राष्ट्र का कोई सदस्य सुरक्षा परिषद् द्वारा की गयी कार्यवाही में तटस्थ नहीं रह सकता। यह सिद्धान्त वास्तव में न्ययोचित युद्ध (Just War) की पुरानी ग्रोशियन कल्पना पर आधारित है, जिसे अब पुनः प्रारम्भ किया गया है तथा अब यह विश्व राजनीति का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त बन गया है। ग्रोशियस ने कहा था कि जो राज्य युद्ध से अलग रहते हैं, उन्हें ऐसा कोई कृत्य नहीं करना चाहिए, जिससे अनुचित युद्ध करने वाले राज्य को बल एवं शक्ति मिले या जो न्यायोचित युद्ध करने वाले राज्य की गतिविधि में व्यवधान उत्पन्न करे। इसे वर्तमान समय में पुनः इस अर्थ में प्रारम्भ किया गया है कि कोई राज्य स्वयं को तटस्थ होना घोषित नहीं कर सकता, यदि सुरक्षा परिषद द्वारा किसी ऐसे राज्य के विरुद्ध कार्यवाही की जाती है, जिसके कार्यवाही के कारण अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा को खतरा हो जाता है या शान्ति भंग हो जाती है या जो आक्रमण का कृत्य करता है। ऐसी पद्धति के परिणाम का तात्पर्य यह है कि तटस्थता की अवधारणा का उन्मूलन हो गया है क्योंकि यदि सुरक्षा परिषद द्वारा किसी ऐसे राज्य के विरुद्ध कार्यवाही की जाती है, तब कोई राज्य अपने को ऐसी कार्यवाही से विलग नहीं कर सकता। किन्तु इस सिद्धान्त को संयुक्त राष्ट्र के अभ्यास में कभी रूपान्तरित नहीं किया जा सका। शान्तिपूर्ण निपटारा तथा शान्तिपूर्ण प्रवर्तन से ‘बच-बचाव’ के कई ऐसे प्रावधान हैं, जिनसे न्यायोचित युद्ध के सिद्धान्त काफी प्रभावित हुए हैं। महाशक्तियों के बीच मतभेद ने भी सुरक्षा परिषद की कार्यवाही पूर्णरूप से शिथिल कर दी है।
कोई देश निम्न मामलों में वर्तमान समय में भी तटस्थ रह सकता है-
(1) सुरक्षा परिषद् की असफलता (Incompetency of the Council) – शान्ति के प्रति खतरा, शान्ति भंग या आक्रमण के कार्य के अस्तित्व के निर्धारण की शक्ति संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 39 के अधीन सुरक्षा परिषद को दी गयी है। किन्तु ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसमें वह स्थायी सदस्यों के निषेधाधिकार शक्ति के प्रयोग के कारण किसी प्रश्न को निर्धारित करने में असफल हो जाय या यह निर्धारित न कर सके कि सशस्त्र संघर्ष के कारण शान्ति के प्रति खतरा हो गया है या शान्ति भंग हो गयी है या वह एक आक्रामक कार्यवाही है। यदि सुरक्षा परिषद इसको निश्चित करने में किसी भी कारण से असफल रहती है तब अन्य राज्य तटस्थता की प्रवृत्ति अपना सकते हैं।
(2) आत्म-सुरक्षा (Self-defence) – राज्यों द्वारा आत्म-रक्षा के अधिकार का प्रयोग चार्टर के अनुच्छेद 51 के अनुसार केवल तब किया जा सकता है, जब उसके विरुद्ध सशस्त्र आक्रमण किया जाय। अत: यदि किसी राज्य द्वारा आत्म-रक्षा के अधिकार का प्रयोग किया जाता है तब यह माना जा सकता है कि दो राज्यों के बीच सशस्त्र संघर्ष हो रहा है। आत्म-रक्षा में बल का प्रयोग किसी राज्य द्वारा उस समय तक किया जा सकता है, जब तक सुरक्षा परिषद अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा को बनाये रखने का उपाय नहीं कर लेती। किन्तु यदि सुरक्षा परिषद स्थायी सदस्यों द्वारा निषेधाधिकार शक्ति के प्रयोग के कारण कोई उपाय करने में असफल रहती है, तो दो राज्यों के बीच सशस्त्र संघर्ष होता रहेगा। ऐसे संघर्ष में अन्य राज्य तटस्थता की प्रवृत्ति अपना सकते हैं।
(3) आन्तरिक अधिकारिता (Domestic Jurisdiction) – संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2 (7) के अनुसार संयुक्त राष्ट्र ऐसे मामलों में मध्यक्षेप नहीं करेगा, जो किसी राज्य की आन्तरिक अधिकारिता के अन्तर्गत हो। लेकिन सुरक्षा परिषद अध्याय 7 के अधीन कार्यवाही कर सकती है, यदि वह समझती है कि शान्ति के प्रति खतरा, शान्ति भंग या आक्रामक कार्यवाही अस्तित्व में है। यदि दो राज्यों के बीच सशस्त्र संघर्ष होता है, और यदि सुरक्षा परिषद यह निर्धारित करती है कि राज्य की कार्यवाही उस राज्य की आन्तरिक अधिकारिता का मामला है, और यह शान्ति के लिए खतरा, शान्ति भंग या आक्रामक कार्यवाही नहीं है, या सुरक्षा परिषद स्थायी सदस्यों के निषेधाधिकार शक्ति के प्रयोग के कारण कार्यवाही करने में असफल रहती है, तो अन्य राज्य सशस्त्र संघर्ष के ऐसे मामलों में तटस्थता की प्रवृत्ति को अपना सकते हैं।
(4) सशस्त्र संघर्ष में भाग लेने की इच्छा न होना (Unwillingness to Participate in an Armed Conflict) – यदि सुरक्षा परिषद चार्टर के अनुच्छेद 39 के अधीन यह निर्धारण करती है कि शान्ति के प्रति खतरा, शान्ति भंग या आक्रामक कार्यवाही अस्तित्व में है और तद्द्द्वारा, वह पुन: यह विनिश्चय करती है कि चार्टर के अनुच्छेद 42 के अधीन दोषी राज्य के विरुद्ध कार्यवाही की जाएगी, तो ऐसे मामलों में सुरक्षा परिषद को चार्टर के अनुच्छेद 48 के परिच्छेद 1 के अधीन यह निश्चित करना होता है कि कार्यवाही संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों द्वारा या उनमें से कुछ के द्वारा की जाएगी। जब सुरक्षा परिषद द्वारा की जाने वाली कार्यवाही में किसी राज्य से भाग लेने की अपेक्षा नहीं की जाती है, तो वह सशस्त्र संघर्ष से अलग रह सकता है। इसके अतिरिक्त किसी विशेष सशस्त्र संघर्ष में यदि राज्य अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण या कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण भाग लेने की इच्छा प्रकट नहीं करता है, तो वह पुन: तटस्थ बना रहेगा। लेकिन, जिन मामलों में कोई राज्य या तो अपनी इच्छा से या अन्य कारणों से सशस्त्र संघर्ष में भाग नहीं लेता, उन्हें वास्तविक अर्थ में तटस्थ नहीं माना जा सकता। उनकी स्थिति तटस्थ रहते हुए भी तटस्थ राज्यों से भिन्न रहती है, इसीलिए ऐसे राज्यों की निष्पक्षता को जब तक अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियमों के द्वारा कोई स्थिति प्रदान नहीं की जाती, तब तक वे युद्ध में भाग न लेने के कारण तटस्थ राज्यों के वर्ग में आते रहेगे। इसलिए उनकी प्रस्थिति को अर्हित तटस्थता (qualified neutrally) कहा जा सकता है।
(5) चार्टर के हस्ताक्षरकर्ता राष्टों के दुश्मन (Enemy to the Signatories to the Charter) – चार्टर का अनुच्छेद 107 संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को चार्टर के किसी हस्ताक्षरकर्ता के शत्रु के विरुद्ध कोई कार्यवाही करने के लिए प्राधिकृत करता । यद्यपि, वर्तमान समय में, चार्टर के हस्तारक्षरकर्ताओं के शत्रु संयुक्त राष्ट्र की प्रवृत्ति को तब तक स्वीकार किया जा सकता था जब तक वे संयुक्त राष्ट्र के सदस्य नहीं बने थे, यदि संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों द्वारा उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही की जाती। पुनः यदि भविष्य में किसी ऐसे राज्य को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से निष्कासित कर दिया जाता है, तो वह राज्य पूर्व शत्रु राज्य (Ex-enemy State) हो जाएगा। यदि संयुक्त राष्ट्र के किसी सदस्य द्वारा ऐसे राज्य के विरुद्ध कार्यवाही की जाती है, तो अन्य राज्य तटस्थता की प्रवृत्ति अपना सकते हैं।
(6) संयुक्त राष्ट्र के गैर-सदस्य (Non-members of the United Nations) – यदि सुरक्षा परिषद द्वारा किसी राज्य के विरुद्ध कार्यवाही की जाती है, तो वह गैर-सदस्य राज्यों को या तो तटस्थ बने रहने का निदेश दे सकती है, या जिस राज्य के विरुद्ध कार्यवाही की जा रही है, उस राज्य को कोई सहायता न देने का निदेश दे सकती है, या गैर-सदस्यों को कोई निर्देश दे सकती है। तब गैर-सदस्य राज्यों को तटस्थ रहने का निर्देश दिया जाता है, वे निष्पक्षता की प्रवृत्ति स्वीकार करेंगे। यह उल्लेख करना उचित है कि ऐसे मामलों में संयुक्त राष्ट्र का चार्टर तटस्थता का उन्मूलन करने की अपेक्षा इसे उत्साहित करता है। जहाँ गैर-सदस्य को या तो किसी युद्धरत देश को सहायता देने का और या तटस्थ बने रहने का कोई निर्देश नहीं दिया जाता, , वहाँ गैर सदस्य राज्य पुनः परम्परागत अर्थ में तटस्थता की प्रवृत्ति को अपना सकते
(7) आत्म-निर्णय (Self-determination) – संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रावधानों के अधीन राज्यक्षेत्र को स्वतन्त्र बनाये रखने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दी गयी है। सशस्त्र संघर्ष के ऐसे मामलों में, अन्य राज्य निष्पक्षता की प्रवृत्ति अपना सकते हैं।
उक्त सभी मामले ऐसे है जिनमें राज्य युद्ध में भी तटस्थ बने रह सकते हैं। अत: तटस्थता पूर्णरूप से समाप्त नहीं हुई है। यद्यपि तटस्थता को संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा व्यापक रूप से प्रभावित किया गया है, फिर भी यह वैध रूप से अस्तित्व में है। वास्तव में, तटस्थता की अवधारणा का उन्मूलन हो गया होता ‘यदि सभी राज्य संयुक्त राष्ट्र के सदस्य होते, और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय 7 के अधीन सुरक्षा परिषद सदैव शान्ति के प्रत्येक खतरे, शान्ति भंग या प्रत्येक आक्रमण की कार्यवाही का दमन करने के लिए आवश्यक तथा प्रभावी उपाय करने में सक्षम होती, और यदि चार्टर में बच-बचाव के प्रावधान न होते। परन्तु चूँकि उपर्युक्त लक्ष्यों को सुरक्षा परिषद आज तक नहीं प्राप्त कर सकी है अतः तटस्थता की अवधारणा वर्तमान समय तक उसी तरह विद्यमान है जिस तरह राष्ट्रसंघ के समय विद्यमान थी।
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