शैशवावस्था में भाषा विकास पर लेख लिखिए।
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शैशवावस्था में भाषा विकास (Language Development During Infancy)
जन्म के समय शिशु क्रन्दन करता है यही उसकी पहली भाषा होती है। इस समय न तो उसे स्वरों का ज्ञान होता है और न ही व्यंजनों का। 25 सप्ताह तक शिशु जिस प्रकार ध्वनियाँ निकालता है उसमें स्वरों की संख्या अधिक होती है। 10 मास की अवस्था में शिशु पहला शब्द बोलता है जिसे वह बार-बार दोहराता है। एक वर्ष तक के शिशु की भाषा समझना कठिन होता है। केवल अनुमान द्वारा उसकी भाषा समझी जा सकती है। मैक कॉरपी द्वारा 1950 में एक अध्ययन किया जिससे निष्कर्ष निकाला कि 18 मास के बालक की भाषा 26% समझ में आती है। आरम्भ में बच्चा एक शब्द का वाक्य बोलता है छोटा बच्चा पानी को ‘मय’ कहते हैं और इसी प्रकार शब्द से वाक्यों का बोध कराते हैं। स्किनर के अनुसार, “आयु स्तरों पर बच्चों के शब्द ज्ञान के गुणात्मक पक्षों के अध्ययन से पता चलता है कि शब्दों की परिभाषा के स्वरूप में वृद्धि होती है।” शैशवावस्था में भाषा विकास जिस ढंग से होता है उस परिवार की संस्कृति और सभ्यता का प्रभाव पड़ता है। स्मिथ ने शैशवावस्था में भाषा विकास के क्रम का परिणाम इस प्रकार व्यक्त किया है-
भाषा विकास का प्रगति
आयु | शब्द |
जन्म से 8 मास | 0 |
10 माह | 1 |
1 वर्ष | 3 |
1 वर्ष से 3 माह | 19 |
1 वर्ष से 6 मास | 22 |
1 वर्ष से 9 मास | 118 |
2 वर्ष | 212 |
4 वर्ष | 1550 |
5 वर्ष | 2072 |
6 वर्ष | 2562 |
मेरी और मेरी के अनुसार ध्वनियों को निकालते समय बालक को कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता। बालक में धीरे-धीरे इन ध्वनियों की संख्या में वृद्धि होने लगती है। पहले बच्चा व्यजनों तथा स्वरों को मिलाकर बोलता है; जैसे-बा, ना, दा, मा आदि। जरसील्ड, मैकार्थी और गैरीसन के अनुसार बाद में अभ्यास द्वारा बच्चा इन ध्वनियों को दोहराने लगता है; जैसे- बाबा, मामा, नाना, पापा आदि शब्द बोलने लगता है। स्टैग के अनुसार डेढ़ और दो वर्ष के बीच विभिन्न शब्दों के वाक्य बनाने की योग्यता में वृद्धि हो जाती है। दो वर्ष के कुछ असाधारण बच्चे बड़ों से देर तक बात कर सकते हैं। मैकार्थी के अनुसार 18 माह की आयु में शिशु की एक-चौथाई बोली स्पष्ट होती है। दो वर्ष पर दो-तिहाई, तीन वर्ष में 90% और चार वर्ष की आयु में 99.6% बालकों के शब्द भण्डार और वंशानुक्रम तथा वातावरण का भी अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। वातावरण जितना अधिक विस्तृत होगा, शब्द-भण्डार भी उतना ही विस्तृत बनेगा।
शिशु की भाषा पर उसके मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य का भी प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त उसकी बुद्धि और विद्यालय का वातावरण भी शिशु की भाषा पर अपनी भूमिका प्रस्तुत करते हैं। एकास्ट्सी का कथन है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का भाषा विकास शैशवकाल में अधिक होता है। जिन बच्चों में गूंगापन, हकलाना, तुतलाना आदि दोष होते हैं, उनका भाषा विकास धीमी गति से होता है।
आयु में वृद्धि के साथ ही बच्चों के सीखने की गति में भी वृद्धि होती है। प्रत्येक क्रिया के साथ विस्तार में कमी होती जाती है। बाल्यकाल में बालक शब्द से लेकर वाक्य विन्यास की सभी क्रियाएँ सीख लेता है। हाइडर बन्धुओं के अध्ययन से निम्नलिखित परिणाम ज्ञात हुए हैं-
1. लड़कियों की भाषा का विकास लड़कों की अपेक्षा अधिक तीव्रता से होता है।
2. अपनी बात को ढंग से प्रस्तुत करने में लड़कियाँ अधिक तेज होती हैं।
3. लड़कों की अपेक्षा लड़कियों के वाक्यों में शब्द संख्या अधिक होती है।
बालक के भाषा विकास पर घर, परिवार, विद्यालय, समुदाय, पास-पड़ोस और सामाजिक परिस्थिति का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। वस्तुओं को देखकर उसका प्रत्यक्ष ज्ञान उसे हो जाता है और इसके उपरान्त उसे उसकी अभिव्यक्ति में भी सुख की अनुभूति होती है। इस काल में बालक बहुत प्रश्न करते हैं। एम. ई. स्मिथ का कथन है कि पाँच या छः वर्ष के बालक अपने वाक्यों में कभी-कभी एक-आध शब्द मूल से छोड़ देते हैं। कभी-कभी क्रिया के प्रयोग में भी उनकी त्रुटि हो जाती है किन्तु वे स्वयं उसे सुधारने का भी प्रयास करते हैं। प्रत्यय ज्ञान स्थूल से भी सूक्ष्म की ओर विकसित होता है। उसी प्रकार भाषा का ज्ञान भी मूर्त से अमूर्त की ओर जाता है।
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