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वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक एवं स्मृति हास

वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक एवं स्मृति हास
वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक एवं स्मृति हास

वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक एवं स्मृति हास

वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक एवं स्मृति ह्रास (विस्मृति) – सीखी हुई वास्तु को धारण और पुनः स्मरण करने में असफल होना ही संज्ञानात्मक एवं स्मृति ह्रास है।

इबिनहॉस ने विभिन्न प्रयोगों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि सीखी हुई सामग्री कितना कुछ याद रहती है अथवा कितना कुछ भुला दी जाती है, यह याद करने के पश्चात गुजरने वाले समय की अवधि पर निर्भर करता है। प्रारम्भ में भूलने की गति तीव्र होती है परन्तु बाद में जैसे-जैसे समय का अंतराल लम्बा होता चला जाता है, इसमें कमी होती चली जाती है।

विस्मृति के प्रकार

विस्मृति निम्नलिखित दो प्रकार की होती है-

सक्रिय विस्मृति – इस विस्मृति का कारण व्यक्ति है। वह स्वयं किसी बात को भूलने का प्रयत्न करके उसको भुला देता है। फ्रायड का कथन है- “हम विस्मृति की क्रिया द्वारा अपने दुःखद अनुभव को स्मृति से निकाल देते हैं।”

निष्क्रिय विस्मृति- इस विस्मृति का कारण व्यक्ति नहीं है। वह प्रयास न करने पर भी किसी बात को स्वयं भूल जाता है।

संज्ञानात्मक एवं स्मृति विस्मृति के कारक

विस्मरण सीखने, धारण करने और पुनर्मरण करने की क्रियाओं में दोष आने के कारण होता है। इसलिए वे सभी कारण जो सीखने, धारण व पुनस्मरण करने को क्षीण करते हैं, विस्मरण के कारण होते हैं। विस्मरण के कारणों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

(I) सैद्धान्तिक कारण –

विस्मरण क्यों होता है? इसका उत्तर देने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने परीक्षणों के आधार पर विभिन्न सिद्धान्त प्रतिपादित किए हैं। इनमें प्रमुख अग्रलिखित हैं-

1. अनाभ्यास का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के समर्थक एबिंगहॉस हैं। इनका विचार है कि याद की हुई विषय वस्तु का यदि बहुत दिनों तक अभ्यास नहीं किया जाता है तो वह भूलने लगती है। इस सिद्धान्त के अनुसार विस्मरण क्रिया के लिए कोई व्यक्ति उत्तरदायी नहीं होता है वरन् वह अनाभ्यास तथा काल व्यवधान के कारण अपने आप होती रहती है। इस प्रकार एबिंगहॉस के अनुसार विस्मरण एक निष्क्रिय मानसिक प्रक्रिया है। प्रयोगों के आधार पर उन्होंने सिद्ध किया है कि जैसे-जैसे समय बीतता है, वैसे-वैसे विस्मरण की मात्रा बढ़ती जाती है। प्रारम्भ में विस्मरण तेज गति से होती है, किन्तु धीरे-धीरे धीमी होती जाती है।

2. बाधा का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के प्रतिपादक मुलर, पिलजेकर, वुडवर्थ आदि मनोवैज्ञानिक हैं। इनका विचार है कि किसी विषयवस्तु को सीखने या याद करने के बाद कोई दूसरी मानसिक क्रिया की जाती है तो पहले सीखी गई विषय-वस्तु के स्मृति चिन्ह निर्बल होते जाते हैं और धीरे-धीरे उस विषय-वस्तु को भूल जाते हैं। इस प्रकार इस सिद्धान्त के अनुसार सीखने और पुनर्स्करण के मध्य कोई मानसिक क्रिया की जाती है तो वह पहले सीखी हुई विषयवस्तु के पुनस्मरण में बाधा पहुँचती है। इस क्रिया को पूर्वलक्ष्मी अवरोध कहते हैं। सीखने और पुनर्मरण के बीच होने वाली क्रिया को विक्षेप क्रिया कहते हैं। विक्षेप क्रिया सीखी हुई क्रिया से जितनी भिन्न होती है, विस्मरण की मात्रा भी उतनी अधिक होती है। इस सिद्धान्त के अनुसार विस्मरण एक सक्रिय मानसिक प्रक्रिया है।

3. दमन का सिद्धान्त – इस सिद्धात का प्रतिपादन मनोविश्लेषणवादी फ्रायड और अनुयायियों ने किया है। उनके मतानुसार, व्यक्ति के अन्दर अपमानजनक दुःखद एवं अप्रिय अनुभूतियाँ चेतन मन में दमित हो जाती है और वह उन्हें भूल जाता है। इस प्रकार विस्मरण का कारण अनुभूतियों का दमन करना है।

(II) सामान्य कारक –

विस्मरण निम्नलिखित हो सकते हैं-

1. विषयवस्तु का स्वरूप – विषयवस्तु सार्थक, आनन्ददायक और सरल होने पर विस्मरण की क्रिया कम होती है। इसके विपरीत विषयवस्तु जटिल अरुचिकर तथा निरर्थक होने पर विस्मरण अधिक मात्रा में होता है।

2. विषयवस्तु का परिमाण – विषय का लम्बा या छोटा होना भी विस्मरण का एक कारण है। छोटे विषय को देर में तथा लम्बे विषय को जल्दी भूलते हैं।

3. सीखने की मात्रा – अधिक भाग में सीखे हुए विषय की अपेक्षा कम सीखे हुए विषय का विस्मरण शीघ्र होता है।

4. सीखने की दोषपूर्ण विधि – दोषपूर्ण विधि द्वारा सीखी गयी विषयवस्तु थोड़े समय में ही भूल जाती है।

5. रुचि और ध्यान का अभाव – जिस विषय को सीखने में व्यक्ति की रुचि नहीं होती, उस पर वह ध्यान नहीं लगाता। ऐसी विषयवस्तु को यदि सीख लेता है तो थोड़े समय में ही भूल जाता है।

6. समय- अवधान – सीखने और पुनस्मरण की क्रिया के बीच समय जितना अधिक होता है, विस्मरण की क्रिया उतनी ही अधिक होती है।

7. अधिगमकर्ता की आयु एवं बुद्धि – विस्मरण की मात्रा अधिगमकर्ता की आयु और बुद्धि पर निर्भर करती है जो व्यक्ति प्रौढ़ और प्रखर बुद्धि का होता है, उसमें विस्मरण की क्रिया धीमी गति से होती है।

8. पुनरावृत्ति का अभाव – स्मृति चिन्ह पुनरावृत्ति के अभाव में धूमिल होने लगते हैं। इसलिए याद की हुई विषयवस्तु यदि काफी दिनों तक दोहराई नहीं जाती है तो वह भूलने लगती है।

9. संवेगात्मक असन्तुलन – ऐसा देखा गया है कि भय, क्रोध, चिन्ता, घबराहट – आदि के कारण साक्षात्कार के समय याद की हुई बातें भी याद नहीं होती हैं।

10. स्मरण न रखने की इच्छा – जिस बात को हम याद नहीं रखना चाहते, उसे भूल जाते हैं। स्टर्ट और ओकडन का विचार है- “ हम बहुत सी बातों को स्मरण न रखने की इच्छा के कारण भूल जाते हैं।”

11. मस्तिष्क की चोट – मस्तिष्क पर घातक चोट लग जाने से व्यक्ति की स्मरण शक्ति कमजोर पड़ जाती है। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि वह सभी पिछली बातें यहाँ तक कि नाम इत्यादि भी भूल जाता है।

12. मानसिक आघात- व्यक्ति को किसी प्रकार का मानसिक धक्का लगने पर वह पुरानी बातों को कठिनाई से पुनर्मरण कर पाता है।

13. मानसिक द्वन्द्व – मानसिक द्वन्द्व से मस्तिष्क में किसी-न-किसी प्रकार की पेशानी उत्पन्न हो जाती है जो विस्मरण का कारण बन जाती है।

14. मादक वस्तुओं का सेवन – मादक वस्तुओं का सेवन व्यक्ति की मानसिक शक्ति को कमजोर बना देता है जिससे स्मरण शक्ति मन्द पड़ जाती हैं। फलतः व्यक्ति याद की हुई बातों को शीघ्र भूलने लगता है।

15. मानसिक रोग – मानसिक रोग स्मरण शक्ति को कमजोर कर देते हैं जिससे विस्मरण की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।

विस्मृति को कम करने के लिए वे सभी उपाय अपनाए जाते हैं जो स्मृति को बढ़ाने में उपयोगी होते हैं। ये उपाय निम्नलिखित हैं-

  1. विषयवस्तु को सीखने का सुखद अनुभव होना चाहिए।
  2. विषयवस्तु की लम्बाई विद्यार्थियों की आयु और क्षमता के अनुसार रखनी चाहिए।
  3. एक बार में ही सीखने की मात्रा बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए।
  4. अधिगम-विधियों के प्रयोग में सतर्कता बरतनी चाहिए। विस्मृति का कारण गलत विधियों द्वारा सीखना भी है।
  5. लक्ष्य रहित होकर नहीं सीखना चाहिए।
  6. सीखी गई सामग्री को दोहराया जाना चाहिए।
  7. सीखे जाने वाली सामग्री की उपयोगिता स्पष्ट होनी चाहिए।
  8. सीखने वाले को शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए।

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Anjali Yadav

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