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किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिए?
किशोरावस्था से सम्बन्धित विभिन्न अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि यह समस्याओं की आयु है। हरलॉक के शब्दों में, “यह आंधी और तनाव की अवस्था है। कुछ विद्वानों के अनुसार” किशोरावस्था समस्या बाहुल्य की अवस्था है। किशोर-किशोरियों की अधिकांश समस्यायें परिवार, विद्यालय, स्वास्थ्य, मनोरंजन, साथी-समुद्र, भविष्य, व्यवसाय तथा विपरीत- लिगियों आदि से संबंधित हो सकती है। किशोरों की समस्यायें आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, शारीरिक, व्यक्तिगत आदि किसी भी स्तर से संबंधित हो सकती है। किशोरावस्था को समस्याओं की आयु इस कारण कहा जाता है कि किशोर अपने माता-पिता, संरक्षकों, अध्यापकों आदि के लिए वास्तव में एक गंभीर समस्या होता है। इनके अतिरिक्त वह नवीन विकास अवस्था की नवीन भूमिका के साथ समायोजन (Adjustment) भी नहीं कर पाता है। इसलिए उसमें चिन्ता, अनिश्चितता उत्सुकता और भ्रान्ति के कारण उत्पन्न हो जाते हैं। यह सब किसी न किसी रूप में किशोर के लिए समस्या ही सिद्ध होते हैं। इन समस्याओं में पर्याप्त सीमा तक वैयक्तिक भिन्नतायें भी पाई जाती है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार किशोरावस्था के प्रारम्भ में सभी किशोरों को अपेक्षाकृत अधिक समस्याओं का मुकाबाल करना पड़ता है। इसका कारण यह है कि बाल्यावस्था में तो उसे अपनी सभी समस्याओं के समाधान हेतु माता-पिता तथा परिवारजनों से सहायता प्राप्त हो जाती है, किन्तु किशोरावस्था में यह सहायता लगभग बन्द सी हो जाती है। अतः किशोर यह समझने लगता है कि उसके संरक्षक एवं अध्यापक वृद्ध हो चुके हैं, वे क्या सहायता देंगे। जी०ए० गार्डनर (1947) ने किशोरी की समस्याओं के दो वर्गों का उल्लेख किया है- 1. सामान्य समस्यायें (General Problems) तथा 2. विशिष्ट समस्यायें (Particular Problems) किन्तु समस्याओं के इस वर्गीकरण से किशोरों की समस्याओं के अध्ययन में कोई अधिक सहायता नहीं प्राप्त होती ।
इस संदर्भ में किये गये कुछ विशेष उपयोगी अध्ययनों के आधार पर हरलॉक ने यह निष्कर्ष प्राप्त किया है कि किशोरावस्था भी अधिकांश समस्यायें वस्तुतः शारीरिक दिखावट तथा स्वास्थ्य से संबंधित समस्यायें, परिवार से सामाजिक संबंध, परिवार से बाहर के व्यक्तियों से संबंधित, विपरीत, सेक्स के व्यक्तियों के संबंधित समस्यायें, स्कूल-कालेज का कार्य, भविष्य की समस्यायें, यथा-शिक्षा, व्यवसाय का चयन, भावी जीवन साथी का चुनाव, सेक्स, नैतिक व्यवहार, धर्म तथा अर्थ से संबंधित समस्यायें ही हैं। इस सब समस्याओं में जो भविष्य के साथ संबंधित होती है, वे ही किशोरों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और चिन्तनीय होती है।
कुछ अध्ययनों में यह भी दिखाई दिया है कि किशोरावस्था के प्रारम्भ में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की समस्यायें उनके लिए अधिक चिन्तनीय सिद्ध होती हैं। के०सी० गैसीसन (1966) के एक अध्ययन में देखा गया कि जिस परिवारों में प्रजातांत्रिक वातावरण होता है, उनमें पलने वाले बच्चों की समस्यायें कम जटिल होती है और जिस परिवारों में प्रभुत्वशाली वातावरण पाया जाता है। उनमें पोषित बच्चों की समस्यायें अपेक्षाकृत अधिक जटिल होती है। इसी प्रकार को तथा क्रो (1965) ) के एक अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि जिन परिवारों में परिस्थितियां असन्तोषजनक होती है या परिवार में कोई मृत्यु आदि हो जाती है या परिवार में कोई विवाह विच्छेद हो जाता है, तो इन परिस्थितियों में भी किशोरों के लिए अनेक समस्यायें प्रकट हो जाती हैं। कतिपय अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि जिन किशोरों में अधिक बुद्धि होती है, वे अपेक्षाकृत कम समस्याओं से ग्रसित होते हैं, जबकि कम बुद्धि वाले बालक अधिक समस्याओं से ग्रसित रहते हैं।
यह भी देखा गया है कि किशोरावस्था में बालक की आयु जैसे-जैसे बढ़ती जाती हैं, वैसे-वैसे उनकी समस्यायें जटिल से जटिलतम होती जाती है। इस संदर्भ में हुए अध्ययनों में देखा गया है कि यदि पूर्व के वर्षों में किशोर अपनी समस्यायों का समाधान कर सकने में विफल रहता है, तो आगे आने वाले वर्षों में भी वह अपनी समस्यायों का हल करने में असफल रहेगा। किशोरावस्था में आने वाली समस्याओं का समाधान किशोर अपने परिवार के वरिष्ठ सदस्यों, मित्रों, अध्यापकों आदि की सहायता से करता है। कई बार ऐसा भी होता है कि वह अपनी समस्याओं को परिवारजनों तथा गुरूजनों की बताने में संकोच प्रदर्शित करता है। वह यह समझता है कि वे लोग उसकी समस्याओं को भलीभाँति नहीं समझेंगे। इसी प्रकार अधिकांश किशोरियाँ अपनी सेक्स से संबंधित समस्याओं को बताने में भी पर्याप्त संकोच करती है।
कुछ अध्ययनों में यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया है कि किशोरों की समस्याएँ जितनी अधिक गम्भीर होती हैं, वह उन्हें बताने और उनको हल करने के लिए उतना ही कम प्रयास करता है। देखा गया है कि जब किशोर अपनी समस्याओं को हल करने में विफल रहते हैं, तो उनके अनेक प्रकार की अनुपयुक्त एवं हीनता की भावनायें भी उत्पन्न होती है। इस संदर्भ में हरलॉक का कहना है, “यदि किशोर इन समस्याओं का बिना किसी विशेष परेशानी के समाधान करने योग्य है, तो उसमें आत्म-विश्वास एवं उपयुक्तता की भावना विकसित होती है, यदि वह इनका समाधान नहीं कर सकता है, तो उसमें कुण्ठा एवं अनुपयुक्तता की भावना का विकास होता है, जो उस पर मनोवैज्ञानिक छाप अंकित करते हैं।”
कतिपय अध्ययनों से यह भी ज्ञात होता है कि किशोरावस्था के अन्त तक किशोरों की अधिकांश समस्यायें वस्तुतः सेक्स, धन, अथवा शैक्षिक उपलब्धि के विषय में ही होती है। अधिक आयु वाले किशोरों हेतु यह समस्यायें कुछ अधिक चिन्तनीय एवं गम्भीर होती है। एडम्बर (1964) ने अपने एक अध्ययन में यह देखा कि इस अवस्था की कुछ किशोरियों की कतिपय गम्भीर समस्यायें व्यक्तिगत आकर्षण, पारिवारिक सम्बन्ध एवं सामाजिक सम्बन्धों से ही सम्बन्धित होती हैं। किशोरावस्था में आयु-वृद्धि के साथ-साथ किशोर-किशोरियाँ अपनी अधिकांश समस्याओं का हल करना ही सीख लेते हैं, फलतः समय व्यतीत होने के साथ-साथ वे समायोजन की दृष्टि से समृद्ध होते जाते हैं।
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