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वृद्धावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन के कारण पर टिप्पणी लिखिए।
वृद्धावस्था में होने वाला शारीरिक क्षय- दोनों कारणों से ह्रास होता है। ह्रास का प्रमुख कारण अभिप्रेरणा की कमी है। जिस व्यक्ति में नवीन वृद्धावस्था में शीरीरिक तथा मानसिक, बातें सीखने की अपेक्षा व्यवहार को आधुनिकतम बनाए रखने की अभिप्रेरणा होती है, उनका ह्रास धीमी गति से होता है। आमतौर पर शारीरिक हास, मानसिक से पहले होता है। व्यक्ति जब शारीरिक रूप से निष्क्रिय हो जाता है, व्यक्ति के शरीर में भिन्न-भिन्न अवयवों का जीवन-काल भिन्न-भिन्न होता है, जैसे अण्डाशय कुछ निश्चित समय तक कार्य करता है, फिर निष्क्रय हो जाता है। दुर्घटना या बीमारी नेत्रों के लेंसों की नमनीयता शीघ्र समाप्त कर देती है तथा स्त्रियों में बीमारी के कारण रजोनिवृत्ति भी जल्दी हो जाती है। ऊतकों के आधार द्रव्य में, जीवित कोशिकाओं के पोषक द्रव्य में रचना सम्बन्धी परिवर्तन हो जाते हैं। आधार द्रव्यों में होने वाले ये परिवर्तन कोशिकाओं के पोषण में बाधा डालते हैं तथा उनको दुर्बल कर देते हैं। आयुवृद्धि के साथ होने वाले कोशिका परिवर्तन विशिष्ट रोगों के कारण नहीं होते, बल्कि जरण प्रक्रिया के कारण होते हैं। जरण-प्रक्रिया के कारण अनेक होते हैं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है-धीरे-धीरे ऊतकों का शुष्क होना, कोशिका विभाजन, कोशिका वृद्धि तथा ऊतकों की मरम्मत की क्षमता का धीरे-धीरे मंद पड़ जाना, ऊतकों से ऑक्सीकरण धीरे-धीरे मंद पड़ जाना अर्थात् जीवन गति का धीमा हो जाना, कोशिका-अपक्षय, ऊतकों की लचक में कमी होना तथा शरीर के लचीले संयोगी ऊतकों का क्षीण होना, तंत्रिका तंत्र का क्रमिक अपकर्षण तथा कोशिका एवं ऊतकों के लिए आतंरिक पर्यावरण को समान बनाए रखने वाले प्रक्रमों का क्षीण हो जाना आदि आंतरिक शारीरिक परिवर्तन होने लगते हैं। जेली के समान कोशिका द्रव्य में लोहा, कैल्शियम आदि पदार्थों का संचय होने से जरण प्रक्रिया द्रुत या तीव्र हो जाती है, जिनके परिणामस्वरूप कोशिका द्रव्य के पोषक पदार्थों एवं उत्सर्जित (निकृष्ट) पदार्थों को अपने आरपार जाने देने की क्षमता घट जाती है। मनोवैज्ञानिक जरण का शारीरिक परिवर्तनों के साथ होना अनिवार्य नहीं है। मष्तिष्क के ऊतक परिवर्तनों की तरह स्वयं, अन्य लागों काम तथा सामान्य जीवन के प्रति प्रतिकूल अभिवृत्तियां के लेने से भी वृद्धावस्था या जरा आ सकती है। जिन व्यक्तियों में सेवा निवृत्ति के बाद उत्साह बनाए रखने वाली रुचियां नहीं होती उनके विषादमय तथा अस्तव्यस्त हो जाने की संभावना रहती है। फलतः वे शारीरिक एवं मानसिक दानों ही रूप से दुबले हो जाते हैं तथा इनकी मृत्यु जल्दी होने की संभावना हो जाती है। प्रायः देखा गया कि मानसिक रोगों से ग्रस्त वृद्धों में से लगभग आधों में क्रिया विकृतियां होती हैं जो मस्तिष्क के विकारों के कारणों से नहीं वरन् मानसिक कारणों का परिणाम हैं। वृद्धावस्था में जिन भूमिका का निभाना पड़ता है उनसे जो व्यक्ति अच्छी तरह से समायोजित नहीं होते हैं, वे उनकी अपेक्षा जल्दी जरित होते देखे गये हैं जो संतोषजनक रूप से समायोजित होते हैं।
व्यक्ति जीवन के तनावों एवं दबावों को जिस रूप में लेता है उसका उसके हास की गति पर प्रभाव पड़ता है। जरण के मनोवैज्ञानिक कारण प्रायः शारीरिक कारण भी उपस्थित रहते हैं तब वे ह्रास की गति को बढ़ाकर जरण प्रक्रिया को बढ़ा देते हैं।
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