नवाचार के प्रकार का वर्णन करते हुए उसे अपनाने की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए |
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नवाचारों के प्रकार (Kinds of Innovations )
शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार की अवधारणा अभी बिल्कुल नवीन है। अभी तक शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में योजनाबद्ध ढंग से नवाचारों का प्रयोग नहीं किया जाता। विद्यालयों में नवाचारों का प्रयोग करने में निम्न समस्याएँ सामने आती हैं—
- नवाचार का चयन किस आधार पर किया जाये ?
- किस प्रकार के नवाचारों को अपनाया जाये ?
- नवाचार का परिणाम क्या होगा? वह विद्यालय की किस समस्या का समाधान करेगा? नवाचार के दो प्रकार हैं-
I. समस्या समाधान सम्बन्धी नवाचार ( Innovation Relating to Problem Solving ) जब किसी दृष्टि से ‘अपेक्षित परिवर्तन के लिए अथवा किसी समस्या का समाधान करने के लिए किसी नवाचार का चयन किया जाता है, तो ऐसे नवाचार को समस्या समाधान सम्बन्धी नवाचार’ कहा जाता है।
II. सामाजिक अन्तःक्रिया सम्बन्धी नवाचार (Innovation in Relation to Social Interaction ) जब अपने ही विद्यालय के किसी शिक्षक अथवा किसी अन्य विद्यालय के शिक्षक से नवाचार सम्बन्धी कोई जानकारी प्राप्त होती है, तो इस प्रकार के नवाचार को ‘सामाजिक अन्तःक्रिया सम्बन्धी नवाचार’ कहा जा सकता है, क्योंकि ऐसी स्थिति में कोई भी नवाचार विभिन्न व्यक्तियों एवं विभिन्न संस्थाओं की परस्पर अन्तः क्रिया के द्वारा विकसित होता है।
नवाचार – अपनाने की प्रक्रिया (Innovation Process of Adoptation)
नवाचार अपनाने की प्रक्रिया के अधोलिखित सोपान हैं—
(1) ) जानकारी— सर्वप्रथम अध्यापक को शिक्षा के कार्यकर्ता को अथवा विद्यार्थी को नवाचार के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करनी होगी। जानकारी में निम्नलिखित बातें आ जाती हैं- (क) नवाचार से परिचय, (ख) नवाचार को प्रयोग में लाने की विधि का ज्ञान
जानकारी के स्त्रोत- जानकारी के स्रोत निम्नलिखित हैं—
(i) शिक्षा सम्बन्धी पत्रिकाएँ,
(ii) शोध पत्रिकाएँ,
(iii) आस-पास के विद्यालय, उनके प्रधानाध्यापक और शिक्षक,
(iv) प्रसार सेवा विभाग,
(v) सेवारत प्रशिक्षण कार्यक्रम
( 2 ) जिज्ञासा- नवाचार की जानकारी प्राप्त करने वाले के मन में, नवाचार के बारे में और जानने की जिज्ञासा हो । संस्थान के प्रधान का यह उत्तरदायित्व है कि वह सम्बन्धित व्यक्ति को प्रोत्साहन देता रहे, ताकि संस्था के लोगों में नवाचार के बारे में और जानने की लालसा बनी रहे।
इस दृष्टि से जानकारी सम्बन्धी स्रोतों से बराबर सम्पर्क बनाये रखना चाहिए। कार्यकर्ताओं के मन में यह भावना बराबर बनी रहे कि भविष्य में उन्हें सम्बन्धित जानकारी प्राप्त होती रहेगी।
(3) परीक्षण- परीक्षण (Trial) से अभिप्राय है—’नवाचार की व्यावहारिकता की जाँच’ इसमें यह देखा जाता है कि नवाचार को सम्बन्धित विद्यालय में कहाँ तक अमल में लाया जा सकता है। प्रधानाध्यापक को सभी शिक्षकों और कार्यकर्ताओं की बैठक बुलानी चाहिए और इन बातों का अवलोकन करना चाहिए-
- (क) नवाचार को अपनाने में किन समस्याओं का सामना करना होता है।
- (ख) इन समस्याओं का समाधान कैसे किया जा सकता है।
ऐसी बैठकें शिक्षकों और कार्यकर्ताओं को प्रेरित करेंगी और उनकी झिझक दूर होगी।
(4) मूल्यांकन – यहाँ नवाचार चलाने वाला व्यक्ति, यह लेखा-जोखा करता है कि उसने क्या खोया है और क्या पाया है अर्थात् उसे क्या लाभ या हानि हुई है। इस पथ पर चलने में उसके सम्मुख कौन-कौन-सी समस्याएँ आयीं और उसने इन समस्याओं का समाधान किस प्रकार किया। इस प्रकार का मूल्यांकन व्यावहारिक और मानसिक दोनों ही स्तरों पर हो सकता है।
( 5 ) अभिस्वीकरण- उपरोक्त सभी सोपानों को पार कर लेने के बाद, इसकी बारी आती है। यह आवश्यक नहीं कि शिक्षा कार्य में संलग्न सभी कार्यकर्ता इस सोपान पर पहुँच ही जाएँ। कुछ कार्यकर्ता प्रारम्भिक सोपानों में अटके रह सकते हैं। यह बात भी सामने रखनी होगी कि अभिस्वीकरण की प्रक्रिया में व्यक्तिगत भेद होते हैं। कुछ व्यक्ति नवाचार को जल्दी स्वीकार कर लेते हैं, कुछ देर से स्वीकार करते हैं और कुछ व्यक्तियों को नवाचार या परिवर्तन के नाम से ही चिढ़ होती है। उन्हें रूढ़िवादी बने रहना ही ठीक प्रतीत होता है। संस्था के अध्यक्ष का कर्तव्य है कि वह शीघ्रातिशीघ्र अधिकतम लोगों की अभिस्वीकृति करवा दे।
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