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बाल्यावस्था में भाषा का विकास

बाल्यावस्था में भाषा का विकास
बाल्यावस्था में भाषा का विकास

बाल्यावस्था में भाषा का विकास पर टिप्पणी लिखिए।

बाल्यावस्था में भाषा का विकास

शिशु की भाषा पर उसके मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य का भी प्रभाव पड़ता है इसके अतिरिक्त उसकी बुद्धि और विद्यालय का वातावरण भी शिशु की भाषा पर अपनी भूमिका प्रस्तुत करते हैं। एकास्ट्सी का कथन है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का भाषा विकास शैशवकाल में अधिक होता है। जिन बच्चों में गूंगापन, हकलाना, तुतलाना आदि दोष होते हैं, उनका भाषा विकास धीमी गति से होता है।

आयु में वृद्धि के साथ ही बच्चों के सीखने की गति में भी वृद्धि होती जाती है। प्रत्येक क्रिया के साथ विस्तार में कमी होती जाती है। बाल्यकाल में बालक शब्द से लेकर वाक्य विन्यास की सभी क्रियाएँ सीख लेता है। हाइडर बन्धुओं के अध्ययन से निम्नलिखित परिणाम ज्ञात हुए हैं-

1. लड़कियों की भाषा का विकास लड़कों की अपेक्षा अधिक तीव्रता से होता है।

2. अपनी बात को ढंग से प्रस्तुत करने में लड़कियाँ अधिक तेज होती हैं।

3. लड़कों की अपेक्षा लड़कियों के वाक्यों में शब्द संख्या अधिक होती है।

सीशोर द्वारा बाल्यावस्था में भाषा विकास का अध्ययन किया गया। 4-10 वर्ष तक के 117 बालकों पर चित्रों की सहायता से उसने प्रयोग किया। उसके परिणाम इस प्रकार हैं-

आयु शब्द
4 वर्ष 5800
5 वर्ष 9800
6 वर्ष 14,700
7 वर्ष 21,200
8 वर्ष 26,300
10 वर्ष 34,300

बालक के भाषा विकास पर घर, परिवार, विद्यालय, समुदाय, पास-पड़ोस और सामाजिक परिस्थिति का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। वस्तुओं को देखकर उसका प्रत्यक्ष ज्ञान उसे हो जाता है और इसके उपरान्त उसे उसकी अभिव्यक्ति में भी सुख की अनुभूति होती है। इस काल में बालक बहुत प्रश्न करते हैं। एम.ई. स्मिथ का कथन है कि पाँच या छः वर्ष के बालक अपने वाक्यों में कभी- कभी एक-आध शब्द मूल से छोड़ देते हैं। कभी-कभी क्रिया के प्रयोग में भी उनकी त्रुटि हो जाती है। किन्तु वे स्वयं उसे सुधारने का भी प्रयास करते हैं। प्रत्यय ज्ञान स्थूल से भी सूक्ष्म की ओर विकसित होता है। उसी प्रकार भाषा का ज्ञान भी मूर्त से अमूर्त की ओर जाता है ।

इसकी अगली अवस्था किशोरावस्था है। इस अवस्था में भाषा का पूर्ण विकास हो चुका होता है। किशोरावस्था में अनेक शारीरिक परिवर्तनों से जो संवेग उत्पन्न होते हैं भाषा का विकास भी उनसे प्रभावित होता है। इस अवस्था में बालकों में साहित्य पढ़ने की रुचि भी उत्पन्न हो जाती है। उनमें कल्पना-शक्ति का भी विकास हो जाता है जिसके कारण वे कवि, कहानीकार, चित्रकार, बनकर कविता, कहानी और चित्र के माध्यम से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं। किशोरावस्था में लिखे गये प्रेम पत्रों की भाषा में भावुकता का मिश्रण होने से भाषा सौन्दर्य प्रस्फुटित होता है। एक-एक शब्द अपने स्थान पर सार्थक होता है।

कई-कई बार किशोर गुप्त (code) भाषा को भी विकसित कर लेते हैं। यह भाषा कुछ प्रतीकों द्वारा लिखी जाती है जिसका अर्थ वही जानते हैं जिन्हें कोड का ज्ञान होता है। इसी प्रकार बोलने में भी प्रतीकात्मकता का निर्माण कर लेते हैं।

किशोरावस्था में शब्द कोष भी विस्तृत होता जाता है। भाषा तो पशुओं के लिए भी आवश्यक है। वे भी भय, भूख कामेच्छा को आंगिक एवं वाचिक क्रन्दन द्वारा प्रकट करते हैं फिर किशोर तो विकसित सामाजिक प्राणी है। भाषा को न केवल लिखित अपितु बोलकर एवं उसमें नाटकीय तत्व उत्पन्न करके वह भाषा के अधिगम को विकसित करता है।

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Anjali Yadav

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