किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास का उल्लेख कीजिए।
किशोरावस्था में मानसिक संज्ञानात्मक विकास
शारीरिक विकास के समान, मानसिक विकास की किशोरावस्था में बहुत तीव्रगति से होता है। वुडवर्थ (Woodworth) के अनुसार ‘मानसिक विकास पन्द्रह से बीस वर्ष की आयु में अपनी उच्चतम सीमा पर पहुँच जाता है।” इस अवस्था में मानसिक विकास की प्रमुख अवस्थायें निम्नलिखित हैं।
1. रुचियों का विकास- इस समय किशोर बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न बनना चाहते है। इस समय विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित रुचियों का विकास होता है। प्रशिक्षण, उपयुक्त वातावरण तथा माता-पिता और शिक्षकों का सहयोग मिलने पर उनमें सृजनात्मकता का विकास होता है। किशोरों की रुचियाँ अध्ययन खेल-कूद ललितकला किसी भी क्षेत्र में हो सकती है। रुचियाँ सीखने में सहायक होती है। बालिकायें नृत्य, संगीत, ड्रामा, चित्रकारी आदि में रुचि रखती हैं जबकि बालक मानसिक खेलों तथा प्रतिस्पर्धात्मक कार्यों में रुचि रखते।
2. सीखने की क्षमता का विकास – बहुमुखी रुचियों के विकास के कारण किशोर बालक विभिन्न क्षेत्रों में व्यावहारिक सैद्धान्तिक वैज्ञानिक तथा यांत्रिक क्रियाओं को सीखने का प्रयास करते हैं।
3. मानसिक योग्यताओं का विकास- इस अवस्था में मानसिक विकास में परिपक्वता आने से किशोरों में जैसे—सोचने-विचार ने, अंतर करने निर्णय लेने तथा समस्याओं का समाधान करने की मानसिक योग्यतायें विकसित हो जाती है।
4. बुद्धि का अधिकतम विकास- किशोरावस्था में बुद्धि का विकास भी अपनी उच्चतम सीमा पर पहुँच जाता है जिससे बालकों में निम्नलिखित बौद्धिक क्षमतायें दृष्टिगत होती है।
(अ) तर्क शक्ति- किशोरावस्था में तर्क शक्ति का विकास दिखायी देता है। किशोर बालक किसी भी बात को बिना तर्क के स्वीकार नहीं करता है। तर्क शक्ति के कारण ही ये विभिन्न समस्याओं का समाधान स्वयं करते हैं। ये किसी भी समस्या के समाधान के लिये चर्चा परिचर्चा द्वारा सुझाव सभी से लते हैं किन्तु अंतिम निर्णय उनका स्वयं का होता है।
(ब) स्मरण शक्ति – विभिन्न परीक्षणों द्वारा मनोवैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि 18 से 19 वर्ष की आयु में किशोरों में स्मरण शक्ति का अधिकतम विकास हो जाता है। स्मृति के विकास के कारण अध्ययन तथा अनुसंधान में रुचि बढ़ती है तथा विभिन्न बौद्धिक कार्यों के प्रति किशोरों की रुचि का प्रदर्शन होता है।
(स) कल्पना शक्ति- यह आयु कल्पनाशीलता की आयु है। किशोरों का अधिकांश समय उनके काल्पनिक जगत में बीतता है वे अपनी कल्पना को मूर्त रूप प्रदान करना चाहते हैं जिससे विभिन्न कलाओं का सृजन होता है।
(द) भाषा का विकास- किशोरावस्था में चिन्तन, तर्क एवं कल्पना शक्ति के विकास के कारण भाषा विकास प्रभावित होता है। किशोरों का शब्द भण्डार विस्तृत हो जाता है। भाषा-शैली अच्छी हो जाती है। वाक पटुता आ जाती है भाषा-शैली और वाक पटुता से किशोरों के सामाजिक सम्बन्धों का विस्तार होता है।
(य) चिन्तन शक्ति- किशोरावस्था में चिन्तन की क्षमता विकसित होती है चिन्तन और विचार शक्ति की सहायता से वह विभिन्न विषयों की व्याख्या व आलोचना करता है तथा समस्याओं के हल खोजता है।
(र) ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता का विकास – किशोरावस्था में ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता भी विकसित हो जाती है। वे अधिक समय तक किसी भी कार्य को एकाग्रतापूर्वक कर सकते हैं। क्रो एवं क्रो के अनुसार- ‘सफल एकाग्रता किशोर की रुचियों से जुड़ी होती है।’
किशोरावस्था में मानसिक शक्तियों के सर्वोत्तम विकास के लिये उनकी शिक्षा का स्वरूप, उनकी रुचियों योग्यताओं और आदर्शों के अनुसार होना चाहिये। उनकी शिक्षा में कुला, विज्ञान साहित्य, सामान्य ज्ञान, इतिहास, भूगोल सभी को सम्मिलित करना चाहिये। किशोरों की जिज्ञासाओं को संतुष्ट करना चाहिये। निरीक्षण शक्ति को विकसित करने के लिये उन्हें प्राकृतिक व ऐतिसासिक स्थानों पर भ्रमण के लिये ले जाना चाहिये। उनकी रुचियों और कल्पनाओं को साकार करने के लिये सृजनात्मकता के विकास के लिये प्रेरित करना चाहिये। बालक तथा बालिकाओं के पाठ्यक्रम में भिन्नता होनी चाहिये। शिक्षकों को ऐसी शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिये जिसमें किशोरों को स्वयं परीक्षण निरीक्षण विचार, चिन्तन, तथा तर्क को विकसित करने का अवसर मिले। किशोरों का स्वयं करके सीखने का मौका देना चाहिये। किशोरों को अपनी कल्पनाशीलता से आत्मप्रदर्शन का अवसर देना चाहिये।
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