पूर्व बाल्यावस्था में बालक के बौद्धिक विकास की चर्चा कीजिए ?
जन्मोपरान्त नवजात शिशु की सभी शारीरिक प्रतिक्रियायें उसकी शारीरिक दशाओं के आधार पर संपत्र होती है, इसीलिए जब शिशु को कोई शारीरिक कष्ट होता है अथवा उसको भूख लगती है अथवा अधिक ठंड या गर्मी सताती है, तब वह रोने लगता है। इसी भाँति तीव्र प्रकाश अथवा तेज ध्वनि से घबरा कर भी बच्चा रोने लगता है। नवजात शिशु अपने जन्म के दूसरे सप्ताह के प्रकाश की ओर देखना प्रारम्भ कर देता है तथा तीसरे मास तक बच्चे की आंखों की पेशियों में समन्वय भी आ जाता है। इसी अवधि में बच्चे की सुनने की प्रक्रिया भी तेज हो जाती है।
तीसरे महीने तक बच्चे की आँखें प्रत्येक चलती हुई वस्तु का पीछा करने लगती है और वह अपनी माता को पहचानने भी लगता है। इसी अवधि में वह अपनी गर्दन और सिर भी सम्भालने लगता है। 4 मास में बच्चा अपने समीपवर्ती वातावरण को भी पहचानने लगता है तथा प्रत्येक आकर्षक वस्तु को हाँथों से पकड़ने लगता है। वह अपने परिचितों को देखकर मुस्कराने भी लगता है। 5-6 मासोपरान्त बच्चा स्वयं को पूणरतया थाम लेता है तथा बुलाने पर आवाज भी निकालता है। बच्चों को रोने की गति और आवाज से ही उसके रोने का कारण स्पष्ट हो जाता है। प्रारम्भ में उसके रोने का कारण, शारीरिक कष्ट या तीव्र प्रकाश या आवाज होता है। भूख लगने की स्थिति में ऊँची आवाज में तथा दर्द होने पर अजीव सी आवाज में रोता है। 3 मास की अवधि तक बच्चा यह ज्ञात कर लेता है कि माता के ध्यानाकर्षण हेतु रोना ही सर्वोत्तम साधन है।
6-7 मास की अवधि में बच्चा बैठना प्रारम्भ कर देता है तथा विभिन्न आवाजें भी निकालने लगता है। इसी समय कुछ स्वर-व्यंजन जोड़कर मामा, नाना, डान्डा आदि बोलता है। तथा हाथों में पकड़ी प्रत्येक वस्तु को अपने मुंह में डालने लगता है। जब बालक तुतलाकर ऐसे स्पष्ट व्यंजन जोड़कर बोलता है, तब उसके स्वर यंत्र का व्यायाम होता है। 9 मास का बच्चा बोलना, चलना तथा सहारा लेकर खड़े होना प्रारम्भ कर देता है। इस समय वह अपरिचितों को देखकर रोता भी नहीं है, तथापि शरमाता अवश्य है। एक वर्ष की अवधि में बच्चा अनेक इकहरे शब्द बोलने लगता है तथा उसकी स्थिति भी विकसित हो जाती है। 2 वर्ष की आयु में उसके शब्द भंडार में विशेषण तथा क्रिया-विशेषण भी सम्मिलित हो जाते हैं तथा अनभिज्ञ होने के बावजूद भी वह शब्दों को रट लेता है। यदि बालक की बुद्धि मन्द है, वह दीर्घ अवधि तक बीमार रहा है, बहरा है अथवा उससे कम लोग वार्तालाप करते हों, तब वह क्लिंब से बोलना सीखता है। 2 वर्ष की आयु तक बालक का अत्यधिक बौद्धिक विकास हो चुका होता है और वह अन्य लोगों का अनुसरण भी करने लगता है। वह अपने भाई-बहनों के साथ खेलने लगता है, संगीत में रूचि प्रकट करता है और रोते समय संगीत सुनकर चुप भी हो जाता है।
3 वर्ष की आयु तक बच्चे की स्मरण शक्ति काफी तीव्र हो जाती है और इच्छित क्रियाओं को वह बार-बार दोहराता है। बच्चों में देखने की स्मरण शक्ति बोलने की स्मरण शक्ति की तुलनाकृत अधिक तीव्र होती है, इसीलिए एक बार देखने पर वह उस वस्तु को तुरन्तातुरन्त पहचान लेता है तथा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर भी देता है। 2 वर्ष की आयु तक बच्चे की रुचि अभिरुचि कापता भी चल जाता है और वह नहाना-धोना, कपड़े पहनना आदि सभी कार्य स्वयं ही करना चाहता है।
4 वर्ष की आयु का बालक मानसिक रूप से इतना विकसित हो जाता है कि उसको स्कूल भेजा जा सके। पाठशाला में बच्चा कैंची से चित्र काटना, गीली मिट्टी से खिलौने बनाने की क्रियायें करने लगता है तथा गिनती याद कराने पर गिनतियाँ याद कर लेता है। ब्रुक्स (Brooks) के विचारानुसार 4 वर्ष का बच्चा एकही बात को 30-40 दिवस तक याद रख सकता है। इस आयु का बालक आत्म-निर्भर होता है तथा विभिन्न कार्य स्वयं ही करना पसंद करता है। प्रारम्भ में उसको कुछ सहायता की जरूरत अवश्य पड़ती है, तथापि अति शीघ्र वह अपने कार्य स्वयं ही क्रियान्वित करने लगता है। इस अवस्था में बालक की कल्पना शक्ति भी अत्यधिक विकसित हो जाती है, जिसके कारण वह पेंसिल आदि से काल्पनिक रेखांकन भी कर लेता है। 4 वर्ष की आयु का बालक 14-15 मिनटों तक एक ही कार्य विशेष को एकाग्रतापूर्वक कर लेता है। इस अवस्था में उसका शब्द भंडार भी इतना बढ़ जाता है कि वह दूसरों के द्वारा कही गई बातों, हिदायतों, निर्देशों एवम कहानियों को भी समझ लेता है। वह रेडियों सुनना और दूरदर्शन देखना भी पसंद करता है। इस आयु में बालक रंगों को पहचानने लगता है तथा प्रत्येक सिक्के को पैसा कहता है। 4 वर्ष की अवस्था में वह संज्ञा शब्दों की तुलनाकृत किया और सर्वनाम शब्दों का अधिक प्रयोग करता है, तथापि उसकी भाषा में व्याकरण संबंधी कुछ अशुद्धियों अवश्य दृष्टिगत होती हैं, जो कि 6 वर्ष की अवस्था तक स्वतः ही समाप्त हो जाती है 6 वर्ष की आयु में बच्चा सर्वथा स्पष्ट और स्पष्ट शब्दों का उच्चारण करता है तथा तुतलाना भी बंद कर देता है।
4-5 वर्ष की आयु में बालक अक्षर लिखना सीख जाता है, किन्तु उसकी लेखन की गति काफी धीमी होती है। इस अवस्था का बालक बड़े-बड़े वाक्य बोल लेता है तथा हल्की और वजनदार वस्तुओं को भी जानने लगता है तथा विभिन्न घरेलू कार्यों में सहायता करना भी प्रारम्भ कर देता है।
6 वर्ष की आयु में सामान्यतः बालक विधिवत् स्कूली पढ़ाई प्रारम्भ कर देता है। तथा 100 तक की गिनती और हिन्दी-अंग्रेजी वर्णमाला का भी ज्ञान प्राप्त कर लेता है। इस आयु में वह बर्तन, कपड़े पकड़ानें, कुर्सी-मेज इत्यादि खींच लेने के घरेलू कार्य भी करने लगता है। वह अपनी छोटी-छोटी समस्याओं को स्वयं ही सुलझाने लगता है तथा गेंद खेलना पसन्द करता है। इस आयु में लड़कों की तुलनाकृत लड़कियाँ कुछ अधिक बोलती हैं।
बालक के बौद्धिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए?
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बौद्धिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक
(1 ) वंशानुक्रम या आनुवंशिकता – वंशानुक्रम ही बौद्धिक विकास को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। इसीलिए तीव्र बुद्धि बातों की सन्तानें प्रखर बुद्धि की होती है, जबकि बुद्धि की संताने मन्द बुद्धि वाली होती है।
( 2 ) व्यवसाय- व्यवसाय या पेशा भी बुद्धि के स्तर को प्रभावित करता है। इसलिए मजदूर, कृषक, राजगीर जैसे शारीरिक परिश्रम करने वाले लोग, डाक्टर, वकील, टीचर, इंजीनियर जैसे मानसिक श्रम करने वालों की तुलना कृत कम बुद्धि वाले होते हैं अर्थात् उनका बौद्धिक विकास अपेक्षाकृत कम होता है।
( 3 ) प्रजाति- कतिपय सर्वेक्षणों से ज्ञात होता है कि पृथक-पृथक प्रजाति विशेष की बुद्धि लब्धियों में पर्याप्त अन्तर उपस्थित है। इससे स्पष्ट होता है कि उनके बौद्धिक विकास में भी अन्तर है।
( 4 ) लिंग- लिंग भेद भी बौद्धिक विकास को प्रभावित करता है, किन्तु इसके लिए वातावरण भी उत्तरदायी है। भारतीय समाज पुरुष प्रधान है, इसलिये यहां की महिलाओं को पाश्चात्य समाज की महिलाओं की भाँति नौकरी, शिक्षा, व्यवसाय आदि के क्षेत्र में पर्याप्त अवसर नहीं प्राप्त होते हैं और वे पिछड़ जाती है।
(5) वातावरण- समुचित आवश्यक और स्वस्थ वातावरण में पहले वाले बच्चों का बौद्धिक विकास तीव्र गति से होता है, जबकि दूषित वातावरण के बच्चों का नहीं हो पाता है। दूषित वातावरण में रहने वाले बच्चों की बुद्धि उत्तरोत्तर मन्द और क्षीण होती जाती है। भारतीय समाज में ग्रामीण बालकों को चूँकि पर्याप्त वातावरण नहीं प्राप्त हो पाता है, इसलिए वे नगरीय बालकों की तुलनाकृत अपनी योग्यताओं का विकास नहीं कर पाते हैं।
( 6 ) शारीरिक स्वास्थ्य— सामान्यतया जो बच्चे प्रायः रुग्ण होते हैं अथवा लंबी अवधि तक बीमार बने रहते हैं अथवा शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं, उनका बौद्धिक विकास स्वस्थ शरीर वाले बच्चों की तुलनाकृत मन्द गति से होता है।
(7) आयु- यद्यपि मानसिक विकास आनुवंशिकता से प्रभावित होने वाली जन्मगत योग्यता है, तथापि जन्म के समय बालक की बुद्धि अविकसित होती है, जो कि आयु बुद्धि के साथ-साथ विकसित होती जाती है। शैशवावस्था में बौद्धिक विकास अत्यधिक द्रुत गति से होता है, जबकि बाल्यावस्था में इसकी गति कुछ कम हो जाती है, तदुपरान्त किशोरावस्था में गति पुनः तीव्र होकर प्रौढ़ावस्था में फिर से मन्द हो जाती है।
( 8 ) भाषा- बालक का भाषा विकास जितना अधिक तीव्र होता है, बच्चा उतना ही बुद्धिमान होता है, तथा उसका बौद्धिक विकास भी उतना ही अधिक तीव्र होता है। बच्चे का भाषा विकास जितना शीघ्र होता है, वह उतना ही शीघ्र दूसरों की बातें समझने लगता है तथा अपनी बातें भी समझ लेता है।
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