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प्रारम्भिक बाल्यावस्था और मध्य बाल्यावस्था में संज्ञात्मक विकास

प्रारम्भिक बाल्यावस्था और मध्य बाल्यावस्था में संज्ञात्मक विकास
प्रारम्भिक बाल्यावस्था और मध्य बाल्यावस्था में संज्ञात्मक विकास

प्रारम्भिक और मध्य- बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास की चर्चा कीजिये।

प्रारम्भिक बाल्यावस्था और मध्य बाल्यावस्था में संज्ञात्मक विकास

बुद्धि एक प्रकार की अनुकूली प्रक्रिया है, जिसमें जैविक परिपक्वता और वातावरण के साथ होने वाली अन्तः क्रियायें सम्मिलित होती हैं। बालकों में जैसे-जैसे संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का विकास होता, उनका बौद्धिक विकास भी होता जाता है। पियाज के अनुसार, बुद्धि संज्ञात्मक प्रक्रियाओं के विकास का दूसरा रूप है। संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का विकास चार अवस्थाओं में होता है- 1 ज्ञानात्मक-क्रियात्मक अवस्था (सेन्सीरी-मोटर स्टेज जन्म से 2 वर्ष तक) 2. प्राकृप्रचलनात्मकः अवस्था (प्री-ऑपरेशनल स्टेज-2 से 7 वर्ष तक), 3 मूर्त प्रचलनात्मक अवस्था (क्रॉकीट ऑपरेशनल स्टेज 7 से 11 वर्ष तक) 4. औपचारिक प्रचलनात्मक अवस्था (फॉर्मल ऑफरेशनल स्टेज 11 से प्रौढ़ावस्था तक ) ।

प्रारम्भिक बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास

इस अवस्था को दो भागों में बाँटा गया है-

1. प्राक-सम्प्रत्यात्मक अवधि, जो दो से चार वर्ष की होती है तथा  2. अन्तर्देशीय अवधि, जो चार से सात वर्ष की होती है। प्राक-सम्प्रदायात्मक अवधि में बालक विभिन्न प्रकार के प्रतीक, शब्द, प्रतिमाये तथा उनके अर्थों को सीखता है। इससे बच्चों में भाषा का विकास होता है और उचित ढंग से चिन्तन करने में सहायता मिलती है। इस अवधि में संज्ञात्मक प्रक्रियाओं का विकास मूलतः अनुकरण और खेल द्वारा होता है। इस अवधि का संज्ञात्मक चिन्तन के दो प्रमुख दोष देखे गये हैं— जीववाद (Egocentrism)। इस अवधि में बच्चे प्रायः निर्जीव चीजों को जीवित समझने लगते है, यथा कार, पंखा, बादल, आदि। चिन्तन में इस दोष को जीववाद कहा जाता है। अहमभाव में बच्चा यह सोचता है कि वस्तुयें उसका पीछा कर रही हैं, क्योंकि वह एक काफी महत्वपूर्ण चीज है। प्रायः बच्चे ऐसा कहते हैं कि सूर्य, चन्द्रमा, बादल या हवा उनके पीछे चलते रहते हैं।

अन्तर्देशी अवधि में बच्चे अन्तर्देशी चिन्तन करते हैं, जिसमें कोई क्रमबद्ध तर्क नहीं होता। इस अवधि में बच्चे ‘प्रचालन’ (Operation) अथवा नियम के अर्थ को नहीं समझते हैं, क्योंकि प्रत्येक प्रचालन की कुछ तार्किक विपरीतता होती है, जिसे बच्चे नहीं समझ पाते हैं, जैसे— 3×3 =9 होता है तथा इसका विपरीत 9 का वर्गमूल 3 होता है। वर्ग और वर्गमूल में तार्किक विपरीतता का जो सम्बन्ध है, उसे बच्चे नहीं समझते हैं। इस प्रकार, अन्तर्देशी अवधि के चिन्तन में ‘अनपलटन’ (Irreversibility) का गुण होता है।

प्रारम्भिक बाल्यावस्था में बच्चा नई-नई सूचनाओं एवं अनुभवों का संग्रह करता है। दो वर्ष की आयु में छोटे-छोटे वाक्य बोलता है, चित्र में पूछी हुई बातों को हाथ रखकर बताता है। कुछ शब्दों का अर्थ समझने लगता है। टॉफी पर लपेटा हुआ कागज अलग कर देता है। तीन वर्ष की में आयु में शरीर के मुख्य अंगों (नाक, कान, आँख) को हाथ से बताता है। चार वर्ष की आयु कुछ सिक्के गिनने लगता है। छोटी-बड़ी रेखाओं का अन्तर समझने लगता है, कुछ प्रश्नों के उत्तर भी दे देता है। पाँच वर्ष का बालक अपने आस-पास की वस्तुओं से परिचित हो जाता है। रंगो का अन्तर समझने लगता है, भार एवं आकार का अन्तर जानने लगता है। छ: वर्ष की आयु में बच्चा दायाँ-बायाँ हाथ, नाक, कान, आदि पहचान लेता है। 13-14 वस्तुओं की गिनती कर लेता है। यदि साधारण प्रश्न पूछे जायें, तो उनका सही उत्तर दे देता है।

मध्य-बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास

संज्ञानात्मक विकास की इस अवस्था (6-12 वर्ष) में बच्चों में तार्किक चिन्तन, उनके विचारों में क्रमबद्धता और जटिलता, आदि बढ़ जाती है। अब उनके अनपलटन के स्थान पर ‘पलटन’ का गुण विकसित होने लगता है। अब बच्चा यह समझने लगता है कि एक रूपया या उसके विपरीत 100 पैसे बराबर ही होते हैं। इस अवस्था में बच्चे वस्तुओं को उसकी विमाओं अर्थात् ऊँचाई, भार, आकार, रंग, आदि के आधार पर पहचानने लगते हैं। इस अवस्था की मुख्य विशेषता यह है कि बच्चों की संज्ञानात्मक प्रक्रियायें अब पहले की तुलना में अधिक जटिल तथा तार्किक हो जाती हैं।

पियाजे ने मध्य-बाल्यावस्था को कान्क्रीट प्रचलनात्मक अवस्था कहा है। इस अवस्था में बालक यह विश्वास करने लगता है कि लम्बाई, भार, अंक आदि स्थिर रहते है। अब बच्चा विभिन्न प्रकार की मानसिक प्रतिमाये प्रस्तुत कर सकता है। वह अपने चारों ओर के पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने के नियमों को सीख लेता है। सात वर्ष का बच्चा चित्रों को पहचानने लगता है, कुछ सीधी रेखायें बनाने लगता है, 7-8 की गिनती को क्रम से दोहराने लगता है। आठ वर्ष की आयु में वह रेल और मोटर में अन्तर जान जाता है। यदि उससे पूछा जाये कि अस्पताल में क्या किया जाता है, तो वह इसका सही उत्तर दे देता है। नौ वर्ष की आयु का बच्चा दिन, तारीख, महीना, वर्ष, आदि बताना शुरू कर देता है। अब वह तुकान्त शब्द भी बताने लगता है। एक रुपये के पैसे गिन सकता है। दस वर्ष की आयु में बच्चा छोटी-छोटी कहानियां याद कर सकता है। वह 30 मिनट में 60-70 शब्द तक कह लेता है। बारह वर्ष की आयु में वह समानता एवं तुलना करने में सक्षम हो जाता है। किसी चित्र को देखकर उसकी व्याख्या कर सकता है, चित्र बना सकता है।

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Anjali Yadav

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