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शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

बच्चों के शारीरिक विकास को निम्नलिखित तत्व या कारक प्रभावित करते हैं-

(1) वंशानुक्रम या आनुवंशिकता – सभी बच्चों के रंग-रूप, आकार, लंबाई- चौड़ाई और शारीरिक अनुपात आदि का निर्धारण वस्तुतः वंशानुक्रम के द्वारा ही होता है। वंशानुगत कारक प्रत्येक बच्चे में जन्म से ही उपस्थिति रहते हैं तथा यही कारक उसकी भौतिक, प्रकृति एवम जीवनक्रम की गति को भी प्रभावित करते हैं।

(2) वातावरण – वातावरण में जलवायु आवासीय स्थान, स्वच्छ वायु और सूर्य का प्रकाश आदि भौतिक वस्तुयें सम्मिलित होती है। यदि बच्चों को यह सभी वस्तुयें नियमित रूप से प्राप्त होती रहती है, तो उसका शारीरिक विकास सुचारू रूप से होता रहता है, जबकि इनकी अनुपस्थिति में उसका शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।

(3) आहार या भोजन— पौष्टिक भोजन शारीरिक विकास को प्रभावित करता है। छोटे बच्चों के पेट की क्षमता कम होने के कारण उनको अति शीघ्र भूख लगने लगती है। प्रारम्भ में शारीरिक विकास अति तीव्र गति से होता है, अतएव बच्चों को संतुलित और पौष्टिक आहार संपूर्ण भोज्य तत्वों से युक्त निश्चित समय पर उपलब्ध कराना चाहिए। भोजन गुण एवम मात्रा दोनों में पर्याप्त होना चाहिए, अन्यथा बच्चे के शारीरिक विकास की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न हो जाता है।

( 4 ) रोग या बीमारियाँ – अत्यधिक लंबी अवधि वाले कुछ रोग भी बच्चे के शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं तथा शारीरिक विकास की गति को मन्द कर देते हैं। कुछ रोगों के निदान हेतु पेन्टी बायोटिक औषधियों को भी प्रयुक्त किया जाता है, जिनसे रोग तो अवश्य दूर हो जाता है, फिर भी इन औषधियों से हानिप्रद परिणाम उत्पन्न होते हैं, जो शारीरिक विकास हेतु उचित नहीं माने जाते हैं।

(5) दुर्घटनाये – विभिन्न प्रकार की दुर्घटनाओं के कारण भी बच्चे का शारीरिक- मानसिक विकास प्रभावित होता है। जिज्ञासु और भयहीन प्रकृति के बच्चों के साथ अधिक मात्रा में दुर्घटनायें घटती हैं।

(6) लिंग या सेक्स- व्यक्ति का लिंग भी शारीरिक विकास क्रम पर प्रभाव डालता है। इसीलिए जन्म के समय लड़कियों की तुलनाकृत लड़के अधिक हष्ट-पुष्ट और मजबूत लंबे होते हैं, तथापि कालान्तर में लड़कियों लड़कों की तुलनाकृत अति शीघ्र परिपक अवश्य हो जाती हैं।

(7) अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों – अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से निकलने वाले हारमोन्स के अनुपात का भी शारीरिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। भिन्न-भिन्न ग्रन्थियों से स्रावित होने वाले स्राव पर ही बच्चे की लंबाई, चौड़ाई, मोटाई तथा अस्थियों का विकास आदि निर्भर करता है। जब कभी इस स्राव के अनुपात में अन्तर उत्पन्न हो जाता है, तब बच्चे की शारीरिक विकास की. गति भी प्रभावित होने लगती है।

( 8 ) बुद्धि – कतिपय विशिष्ट अध्ययनों से ज्ञात होता है कि मन्द बुद्धि वाले बच्चों की तुलनाकृत तेज बुद्धि बच्चों में गत्यात्मक क्रियाओं का विकास अत्यधिक द्रुत गति में होता है। तेज बुद्धि वाले बालकों का विकास भी मन्द बुद्धि वालों की अपेक्षाकृत तीव्र गति से संपत्र होता है।

( 9 ) पारिवारिक प्रभाव – देखा गया है कि सर्वथा शान्त, सौहार्दपूर्ण, पारिवारिक वातावरण में पलने वाले बच्चे साहसी और भयहीन होते हैं। चूँकि ऐसे बच्चे स्वयं को सर्वथा सुरक्षित समझते हैं, इसलिए उनका शारीरिक और मानसिक विकास भी तीव्र गति से होता है। इसके विपरीत अशान्त और कलहपूर्ण वातावरण में पलने वाले बच्चों का विकास अत्यधिक धीमी गति से संपत्र होता है।

(10) सामाजिक आर्थिक स्तर— जब कभी बच्चे का सामाजिक आर्थिक स्तर अत्यधिक उच्च होता है, तब उसकी सभी मूलभूत आवश्यकतायें, संतुलित पौष्टिक आहार, उत्तम वत्रादि, उत्तम आवास विकास आदि की आवश्यकतायें सरलतापूर्वक पूर्ण होती रहती है और फलतः उसका शारीरिक विकास निम्न और मध्यम स्तर वालों की तुलनाकृत तीव्र गति से सम्पन्न होता है।

(11) संवेगात्मक अवरोध- कतिपय सर्वेक्षणों से स्पष्ट हो गया है कि जब कभी कोई बालक निरन्तर संवेगात्मक अवरोध महसूस करता है, तब उसका प्रभाव उसके विकास पर भी पड़ता है। इसका प्रमुख कारण है कि संवेगात्मक रूकावट के फारम पिट्यूटरी ग्लैन्डस से निकलने वाले स्राव में बाधा उत्पन्न होती है और यही अन्तः स्त्राव बच्चे की लंबाई में वृद्धि करता है।

उत्तम शारीरिक स्वास्थ्य वाले बच्चों के प्रमुख लक्षण

(1) बच्चों की त्वचा अत्यधिक मुलायम एवं लचीली होती है।

(2) बच्चों के ओठों पर स्वाभाविक लालिमा सी छायी रहती है।

(3) बच्चों का सीना आगे की ओर निकला रहता है तथा उनके कन्धे पीछे की तरफ तने रहते हैं।

(4) बच्चे के चेहरे पर अत्यधिक प्रसन्नता और ताजगी उपस्थित है।

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Anjali Yadav

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