अध्यापक शिक्षा के अभिकरण तथा कार्यक्रमों को लिखिए।
अध्यापक शिक्षा के अभिकरण तथा कार्यक्रम
आज किसी जनतान्त्रिक देश का विकास वहाँ के शिक्षकों के स्तर पर निर्भर करता है। भारत की शिक्षा का इतिहास अधिक प्राचीन है। परन्तु अध्यापक शिक्षा विकास अनेक अवस्थाओं को पार कर चुका है, परन्तु स्वतन्त्रता के बाद ही इन क्षेत्रों में अधिक विकास हुआ। अनेक आयोग तथा समितियाँ गठित की गई। सर्वप्रथम प्राथमिक स्तर के अध्यापकों के प्रशिक्षण हेतु सन् 1802 में सीरमपुर में प्रशिक्षण संस्था खोली गई। इसके साथ-साथ सेवारत अध्यापक प्रशिक्षण की महत्वता को जानकर अनेक संस्थाओं- आई.ए.एस.ई., सी.टी.ई., जिला शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान, एस.सी.ई.आर.टी. जैसे आदि को प्राथमिक स्तर पर सेवारत अध्यापक प्रशिक्षण प्रदान करने की जिम्मेदारी प्रदान की गई। इन सभी संस्थाओं का कार्य प्राथमिक विद्यालयों में सेवारत अध्यापकों को शिक्षा सम्बन्धी तथ्यों सिद्धान्तों से समय-समय पर अवगत कराते रहना है।
हमारे देश में एन.पी.ई. 1986 के द्वारा अध्यापक प्रशिक्षण के लिए जिला शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान, सी.टी.ई.आई.ए.एस.ई. आदि संस्थाओं के विकसित करने की बात कही गई तथा इसी कारण 500 जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, 87 सी.टी.ई. तथा 38 आई.ए.एस.ई. और 30 एस.सी.ई.आर.टी. की स्थापना की गई। पिछले दशकों में एस.ओ. पी.टी. कार्यक्रम के तहत अध्यापकों के लिए सेटेलाइट इंटरेक्शन टेलीविजन आधारित क्रियाओं का भी आयोजन किया गया है। यह सभी संस्थाएँ अध्यापकों के लिए समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करती है जैसे-
सम्मेलन प्रविधि – शिक्षा के क्षेत्र में उच्च अधिगम के लिए यह एक महत्वपूर्ण प्रविधि है। इस प्रविधि का उपयोग अनुदेशन व अधिगम परिस्थितियों को उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। शिक्षा के ज्ञानात्मक एवं भावात्मक उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है। इसमें एक बड़े समूह की सभा का आयोजन होता है। इसके अंतर्गत तत्कालिक गम्भीर समस्याओं पर विचार किया जाता है। इस प्रकार –
“सम्मेलन व्यक्तियों की एक सभा होती है, जिसमें उन्हें एक साथ किसी विशिष्ट कार्य या समस्या पर चिन्तन तथा वाद-विवाद एक निश्चित समय में करना होता है। ” संगठन के स्थायी सदस्य होते है।
इससे ऐसी अधिगम परिस्थितियों को उत्पन्न किया जाता है जिससे समस्या समाधान, आलोचनात्मक विश्लेषण, संश्लेषण तथा मूल्यांकन की योग्यता का विकास किया जाता है।
कार्यशाला प्रविधि – अध्यापकों को नवीन प्रकार की परीक्षाओं की रचना, अनुदेशन के निर्माण, नवीन प्रकार की पाठ योजनाओं की रचना तथा शिक्षण अधिगम उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, इसके लिए कार्यशाला प्रविधि का उपयोग किया जाता है। कार्यशाला प्रविधि का प्रयोग क्रियात्मक पक्ष के विकास के लिए किया जाता है।
कार्यशाला अनुदेशन व अधिगम परिस्थितियों को उत्पन्न करने की एक प्रभावशाली प्रविधि है जिससे ज्ञानात्मक एवं क्रियात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है। इससे शिक्षकों को नवीन आयामों व प्रत्ययों को अवगत कराया जाता है।
विचार गोष्ठी प्रविधि – विचार गोष्ठी अनुदेशन की ऐसी प्रविधि है जिससे चिन्तन स्तर के अधिगम के लिए अन्तः प्रक्रिया की परिस्थिति उत्पन्न की जाती है। यह प्रविधि . विभिन्न स्तरों पर अनुदेश-परिस्थितियों के लिए प्रयुक्त किया जाता है। विचार गोष्ठी का प्रकरण पूर्व नियोजित होता है वक्ता अपने प्रपत्र की प्रतियाँ भी तैयार करा लेते है और सेमीनार के आरम्भ में उनका वितरण कर देता है। सेमीनार के कार्य संचालन के लिए सेमीनार के भागीदारों में से ही अध्यक्ष का चयन उसी समय किया जाता है। यह प्रविधि स्वतन्त्र अध्ययन को प्रोत्साहित करती है, सामान्य इन गोष्ठियों का कार्यक्रम एक सप्ताह से छः सप्ताह तक होता है।
अध्यापकों के लिए अवकाशकालीन संस्थाएँ – विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं अवकाशकालीन विश्वविद्यालय के सहयोग से विशेष रूप से विज्ञान में देश के विभिन्न भागों में गर्मी के अवकाश में अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है क्योंकि ऐसी संस्थाओं की समय सीमा छः सप्ताह तक होती है। जिसमें उन्हें विषयों का ज्ञान दिया जाता है।
पुनश्चर्या पाठ्यक्रम – नये पाठ्यक्रमों की सहायता से अध्यापकों के मध्य से नये विचारों को समाहित करते है, शिक्षा आयोग ने सुझाव दिया कि प्रत्येक शिक्षक के लिए पाँच वर्ष बाद तीन माह के लिए आवश्यक रूप से इस प्रकार की व्यवस्था की जानी चाहिए। इस क्षेत्र में क्षेत्रीय शिक्षा विद्यालय ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
इस प्रकार उपर्युक्त वर्णित प्रविधियों के माध्यम से अध्यापकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। जिससे अध्यापकों का गुणात्मक सुधार किया जा सके। तथा विभिन्न दक्षताओं का विकास किया जा सके। यह प्रविधियाँ ही अध्यापकों के बहुआयामी विकास में सहायता प्रदान करती है तथा यही प्रविधियाँ सेवारत अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम के मुख्य आयाम है। जिससे अध्यापकों के व्यावसायिक कौशलों में सतत् विकास किया जाता है। जिसमें विभिन्न कार्यक्रमों जैसे रेडियों ब्रोडकास्टिंग, सिनेमा कार्यक्रम, प्रदर्शनी, क्षेत्र भ्रमण आदि को भी सम्मिलित किया जाता है। यह सभी कार्यक्रम अध्यापकों की अभिवृत्ति, अभिरूचि, समय, स्थान आदि के आधार पर क्रमबद्ध रूप से आयोजित किए जाते है।
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