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अन्वेषणात्मक या निरूपणात्मक अनुसंधान प्ररचना | Exploratory or Formulative Research Design in Hindi

अन्वेषणात्मक या निरूपणात्मक अनुसंधान प्ररचना | Exploratory or Formulative Research Design in Hindi
अन्वेषणात्मक या निरूपणात्मक अनुसंधान प्ररचना | Exploratory or Formulative Research Design in Hindi

अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्ररचना पर संक्षिप्त लेख लिखिये।

अन्वेषणात्मक या निरूपणात्मक अनुसंधान प्ररचना (Exploratory or Formulative Research Design)

इस प्रकार की अनुसंधान प्ररचना का उद्देश्य शोधकर्ता को विषय या समस्या परिचित कराना है, जिससे वह समस्या का अन्वेषण एवं निरूपण कर सके। साथ ही, इसके आधार पर उपकल्पना का निर्माण भी किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि जब शोधकर्ता को अपनी समस्या या विषय का कम या नहीं के बराबर ज्ञान रहता है, तब अन्वेषणात्मक अनुसंधान किया जाता है। यह शोधकर्ता को अपने ‘अनुसंधान-लक्ष्य’ से परिचित कराता है। इस प्रकार का. ‘अनुसंधान नवीन तथ्यों एवं विचारों की खोज तथा अंतर्दृष्टि प्रदान करने में सहायक होता है, जिसके आधार पर शोधकर्ता को समस्या को समझने एवं उपकल्पना के निर्माण में सहायता मिलती है। इसके द्वारा अस्पष्ट एवं अनिश्चित अवधारणाएँ स्पष्ट और निश्चित होती हैं और आगे चलकर यह समस्या के चुनाव में सहायक होता है। साथ ही, यह परवर्ती अनुसंधान की दिशा निर्धारित करने की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। संक्षेप में, अन्वेषणात्मक अध्ययन तीन प्रमुख उद्देश्यों की पूर्ति करता है-

  • (क) विषय एवं समस्या का निरूपण,
  • (ख) उपकल्पना का निर्माण,
  • (ग) परवर्ती शोध की दिशा एवं स्वरूप का निर्धारण।

अन्वेषणात्मक अनुसंधान की संरचना अधिक लचीली (flexible) होती है, जिससे किसी भी समस्या या विषय के विभिन्न पक्षों को सरलता से सम्मिलित किया जा सके। यह शोध किसी उपकल्पना के परीक्षण के उद्देश्य से नहीं किया जाता हैं, बल्कि मुख्य रूप से समस्या एवं उपकल्पना का निर्माण ही इसका उद्देश्य हो सकता है, विज्ञत्रान जितना ही अपनी शैशवावस्था में होता है, उतना ही उसे इस प्रकार की शोध प्ररचनाओं की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी स्थिति में कभी-कभी समाजवैज्ञानिक प्रयोगात्मक अध्ययन की तुलना में अन्वेषणात्मक अध्ययन को महत्त्वहीन समझते हैं। लेकिन, वास्तविकता यह है कि अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्रयोगात्मक एवं वर्णनात्मक अनुसंधान के लिए प्रारंभिक आधार प्रस्तुत करता है। किसी भी अध्ययन में, बाद में की गई अधिक-से-अधिक सतर्कता भी व्यर्थ हो जाती है, यदि उसका प्रारंभ ही गलत एवं असंगत हुआ हो। अन्वेषणात्मक अध्ययन का महत्त्व इसी में है कि यह अन्य अधिक संरचित अनुसंधान के लिए प्रारंभिक एवं संगत आधार प्रदान करता है।

जहोदा आदि (Jahoda et al.) ने अन्वेषणात्मक अध्ययन के लिए निम्नलिखित प्रमुख विधियों की चर्चा की है-

(i) संबद्ध साहित्य का अध्ययन (Review of pertinent literature)- किसी भी समस्या के प्रारंभिक ज्ञान के लिए उससे संबद्ध साहित्य एवं शोध का अध्ययन अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। इसका एक लाभ तो यह है कि हम समस्या के कई पक्षों की जानकारी प्राप्त करते हैं। दूसरे, हम पुनरावृत्ति के दोष से भी बच सकते हैं, क्योंकि अध्ययन-सर्वेक्षण हमें पहले किए गए अध्ययनों की जानकारी प्रदान करता है।

(ii) अनुभव-सर्वेक्षण (Experience survey)- प्रायः, अनुसंधान-कार्य में शोधकर्ता एवं अन्य व्यक्तियों के अनुभव महत्त्वपूर्ण होते हैं। ये अनुभवी व्यक्ति अनुसंधान के लिए सूचना के महत्त्वपूर्ण स्रोत होते हैं। अतः, अनुसंधान विषय से संबद्ध व्यक्तियों से पूछताछ इस प्रकार की शोध-प्ररचना में अंतर्दृष्टि प्रदान करने में सहायक होती है। इसके लिए शोध-विषय के विभिन्न स्तरों एवं पक्षों से संबद्ध व्यक्तियों से संपर्क स्थापित करना चाहिए।

(iii) अंतर्दृष्टि-प्रेरक घटनाओं का विश्लेषण (Analysis of insight stimulating cases) – जब विषय पूर्णतः प्रतिपादित न हो, और उससे संबद्ध अध्ययन एवं अनुभव का भी अभाव हो, तब वैसी स्थिति में कुछ विशेष घटनाओं का विशलेषण महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है। फ्रॉयड (Freud) ने अपने मानसिक रोगियों के विश्लेषण के आधार पर ‘मनोविश्लेषण’ के संबंध में महत्त्वपूर्ण खोज की। इस प्रकार के स्रोत की सफलता-

  • (क) अध्ययनकर्ता की जागरूक ग्रहण- शक्ति,
  • (ख) विशेष घटनाओं के विश्लेषण की गहनता और
  • (ग) विविध तथ्यों को अर्थपूर्ण ढंग से व्यवस्थित करने की शोधकर्ता की क्षमता पर निर्भर करती है।

सामाजिक विज्ञान में ऐसी कई प्रकार की प्रेरक घटनाएँ हो सकती हैं, जैसे-

  1. किसी समुदाय या समूह के बारे में बाह्य एवं अपरिचित व्यक्ति का अवलोकन एवं विचार;
  2. ऐसे सीमांत व्यक्तियों (Marginal cases) का अध्ययन, जो एक समूह से दूसरे समूह में वितरण करते हैं और दोनों समूहों के प्रभाव की तुलनात्मक भिन्नता बता सकते हैं।
  3. संक्रांतिकालीन व्यक्ति भी, जो विकास के एक स्तर से दूसरे स्तर की ओर उन्मुख हैं, प्रेरक अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।
  4. समस्यामूलक एवं विघटनकारी भिन्न घटनाओं तथा व्यक्तियों का विश्लेषण आदि।

इस तरह, अन्वेषणात्मक अध्ययन का उद्देश्य मूलतः समस्या की खोज एवं उपकल्पना निर्माण के संबंध में अंतर्दृष्टि प्रदान करना है, जिसके लिए मुख्यतः संबद्ध साहित्य का सर्वेक्षण, अनुभवी व्यक्तियों से सूचना का संकलन एवं प्रेरक घटनाओं का विशलेषण किया जाता है।

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Anjali Yadav

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