राजनीति विज्ञान / Political Science

आदर्शवाद क्या है? (What is idealism? )

आदर्शवाद क्या है? (What is idealism? )
आदर्शवाद क्या है? (What is idealism? )

आदर्शवाद क्या है? इसके विकास का वर्णन कीजिए।

‘आदर्शवाद’ अंग्रेजी शब्द ‘ आइडियल्जिम’ का अनुवाद है। ‘आइडियल’ शब्द ‘आइडिया’ से बना है जिसका अर्थ है ‘सचार’  ‘आइडियल’ शब्द का अर्थ है ‘विचार से सम्बन्धित’ । ये सभी वस्तुएँ जो पूर्णता रखती है, उन्हे ‘आदर्श’ की संज्ञा दी जाती है। आदर्शवाद का सम्बन्ध बाह्रा जगत न होकर अर्न्तजगत से होता है। राजनीतिव चिन्तन के सन्दर्भ मं आदर्शवाद एक ऐसे आदर्श राज्य की व्याख्या करता है जो पूर्ण हो। यह विचारधारा इस दुनिया में प्रलित राज्यों की प्रकृति से असन्तुष्ट है। इसीलिए इसे राज्य का ‘आदर्शवादी सिद्धान्त’ कहते है। यूनानी दार्शनिकों- अरस्तु और प्लेटो ने सबसे पहले आदर्शवाद की चर्चा की थी।

आदर्शवाद की व्याख्या विभिन्न चिन्तकों ने भिन्न-भिन्न ढंग से की है। हॉबहाउस का कहना है कि आदर्शवाद राज्य के दृश्यमान भौतिक तत्वों पर जोर न देकर आध्यात्मिक स्वरूप पर बल देता है। अतः उन्होने इसे ‘अध्यात्मिक सिद्धान्त’ कहकर पुकारा है। जोड़ का कहना है कि आदर्शवाद राज्य को पूर्ण और निरंकुश अधिकार प्रदान करता है। अतः उन्होंने आदर्शवाद को ‘निरंकुशतावादी सिद्धान्त’ कहा है। गैटल का कहना है कि आदर्शवाद नैतिकता पर अत्यधिक बल देता है। अतः उन्होने इसे ‘नैतिक सिद्धान्त’ की संज्ञा प्रदान दी है। डॉ. महोदव प्रसाद के मतानुसार, “आदर्शवाद उस दृष्टिकोण का नाम है जो दृश्य-जगत के स्तर पर पायी जाने वाली वास्तविकता से आगे बढ़कर विवेच्य वस्तु के पूर्ण अथवा उत्कृम स्वरूप का अन्वषण करता है एवं तदनुसार उस विषय को विवेचन करता है। “डॉ प्रसाद ने आदर्शवाद को ‘विचारवाद’ भी कहा है।

आदर्शवाद का अभ्युदय वस्तुतः व्यक्तिवाद की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हुआ इसका उदय अङ्गारहवी शताब्दी के अन्त में जर्मनी में हुआ। आदर्शवाद ने राज्य के कार्य-क्षेत्र, महत्व एवं सर्वोच्चता का प्रतिपादन किया है। आदर्शवाद के सिद्धान्त एवं विचार की चर्चा हीगल, ग्रीन काण्ट, ब्रडले आदि चिन्तकों ने अपने-अपने राज्य दर्शन में की हैं।

राजनीतिक चिन्तन के क्षेत्र में आदर्शवाद ने राज्य से सम्बन्धित विविध धारणाओं का विवेचन दार्शनिक आधार पर किया है। चूँकि इसकी उत्पत्ति Idea (प्रत्यय) शब्द से हुई है, अतः विभिन्न विद्वान और विचारक इसे ‘प्रत्ययवाद’ या ‘विचारवाद’ कहना उपयुक्त मानते है। चूंकि इस विचारधारा के लिए’आदर्शवाद’ शब्द का प्रयोग सामान्यतया होता आया है, अतः भ्रम से बचने के लिए ‘आदर्शवाद’ शब्द का ही प्रयोग उचित है।

आदर्शवाद का दार्शनिक आधार अद्वैवतादी विचार पद्धति है। दार्शनिकों के सम्मुख यह समस्या रही है कि इस दृश्य-जगत की मूल प्रकृति क्या है? दार्शनिकों का एक वर्ग यह मानता है कि इस जगत में जो कुछ भी पदार्थ हम देखते है, वही सत्य और वास्तविक है। पदार्थ को ‘भूत’ भी कहते हैं जिससे भौतिक शब्द बनता है। अतः विचारकों का यह वर्ग जो पदार्थ जगत की सत्यता पर विश्वास करता है, ‘भौतिकवादी’ कहलाता है। इसके विपरीत, दार्शनिकों का दूसरा वर्ग पदार्थ-जगत की सत्यता पर विश्वास करता है, ‘भौतिकवादी’ कहलाता है। इसके विपरीत, दार्शनिकों का दूसरा वर्ग पदार्थ जगत की सत्यता तथा वास्तविकता पर विश्वास नहीं करता। दूसरे वर्ग के दार्शनिकों के मतानुसार जगत की सत्यता ‘प्रत्ययगत’ या ‘विचारगत’ है। उनका तक है कि जड़ पदार्थ सत्य नही हो सकता। जगत वास्तविक स्वरूप को चेतन तत्व द्वारा ही समझा जा सकता है। यही चेतन तत्व ‘विचार’ या ‘प्रत्यय’ या ‘आत्मा’ है। पदार्थगत ज्ञान अपूर्ण है, इसके विपरीत, विचारगत ज्ञान पूर्ण है और इस विचारगत ज्ञान को आध्यात्मिक चिन्तन द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। आध्यात्मिक चिन्तन का मूल स्त्रोत विचार (Idea) है। अतः विचारगत चिन्तन के लिए Ideal शब्द का प्रयोग किया गया है। इसी Ideal शब्द से Idealism की उत्पत्ति हुई है। Ideal को हिन्दी में आदर्श कहते है, अतः Idealism का अर्थ ‘आदर्शवाद’ हुआ चिन्तन की इस शैली को जो प्रत्यय या विचार (Idea) शब्द से उत्पन्न हुई है, आदर्शवाद कहा जाता है।

राजनीतिक चिन्तन के क्षेत्र में आदर्शवाद का आशय यह है कि राजनीतिक जगत सम्पूर्ण जगत का ही एक भाग है। अतः राजनीतिक जगत की सत्यता तथा वास्तविकता को समझने के लिए भी चेतन तत्व का आश्रय लिया जाना चाहिए अर्थात् राज्य की उत्पत्ति, उसके स्वरूप, क्रिया-कलाप एवं विविध राजनीतिक संगठनों का अध्ययन दार्शनिक ढंग से किया जाना चाहिए। मनुष्य की आत्मा, मन तथा बुद्धि आदि के साथ राज्य तथा उससे सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन भी विचार तत्व का आशय लेकर किया जाना चाहिए। इस दृष्टि से आदर्शवाद को अनेक नामों से सम्बोधित किया जाता है, यथा- दार्शनिक चिन्तनात्मक (Speculative), आध्यात्मिक (Metaphysical), रहस्यात्मक (Mystical) एवं आर्शवादी ( Idealistic) आदि। प्रोफेसर जोड ने इसे निरंकुशतवादी (Absolutist) सिद्धान्त भी कहा है। इसका कारण है यह है कि आदर्शवादी विचारधारा के अन्तर्गत, राज्य को सर्वोच्च तथा निरंकुश संस्था माना गया है। आदर्शवाद के अन्तर्गत राज्य का अध्ययन किसी यथार्थ (Real) राज्य के सन्दर्भ में नहीं किया जाता है वरन् एक आदर्श (Ideal) राज्य (अर्थात जैसा उसे होना चाहिए) का अध्ययन किया जाता है। अतएवं राजनीतिक आदर्शवाद का आधार दार्शनिक अद्वैतवाद है जिसके अनसार यह विश्वास किया जाता है कि इस जगत में वास्तविक वस्तु आत्मा या चेतन (Spirit) अन्य वस्तुएँ उसकी छाया मात्र है। राज्य का आधार भी आत्मा या चेतना है। दैवी स्वीकृति या शक्ति या संविदा या क्रमिक विकास इसका आधार कभी नही हो सकते।

आदर्शवादी विचाराधारा का विकास- राजनीतिक आदश्रवाद की परम्परा पाश्चात्य जंगत में प्राचीन यूनानी दार्शनिक प्लेटो तथा अरस्तु के राजनीतिक चिन्तन से ही प्रारम्भ हो गयी थी। यह यूनानी दार्शनिक राज्य को आत्म-निर्भर संस्था मानते थे। प्लेटो राज्य को मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब मानता है, वह उसे मानव मस्तिष्क की उपज बताता है। उसका कथन था कि राज्य में वही सब तत्व तथा सिद्धान्त निहित हैं जो कि प्रत्येक मानव आत्मा में विद्यमान हैं। राज्य मानव का ही विशाल रूप (Magnified Individual) है। जिस प्रकार मानव-आत्मा में विवेक, उत्साह तथा वासना तीन तत्वेंतव पाये जाते है, उसी प्रकार राज्यों में भी तीनों तत्वों का प्रतिनिधित्व क्रमशः दार्शनिक, राजा, शासक वर्ग एवं उत्पादक वर्ग द्वारा होता है। प्लेटो के मतानुसार, “राज्यों की उत्पत्ति ओक के वृक्ष या चट्टान (भौतिक पदार्थों) से नही होती वरन् वह उसमें होने वाले मानवों के मस्तिष्क की उपज है।” प्लेटो राज्य को एक नैतिक संस्था मानता है जिसका उद्देश्य समाज में नैतिक गुणों का विकास करना है। प्लेटो के पश्चात् अरस्तू ने भी राज्य को एक प्राकृतिक संस्था माना है। उसके मतानुसार मनुष्य स्वभावतः एक राजनीतिक प्राणी है। वह राज्य में रहकर ही अपने जीवन की पूर्णता को प्राप्त कर सकता है। “राज्य का अस्तित्व जीवन के लिए है और वह उत्तम जीवन के लिए ही बना रहता है।” राज्य व्यक्ति को सामाजिक न्याय तथा सुरक्षा प्रदान करता है। राज्य से पृथक रहकर व्यक्ति न तो भौतिक जीवन का समुचित उपभोग कर सकता है और न आध्यात्मिक जीवन का आनन्द ही ले सकता है। इस प्रकार प्लेटो तथा अरस्तु राज्य के आदर्शात्मक स्वरूप का निरूपण करने वाले सर्वप्रथम विचारक है।

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Anjali Yadav

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