मानव विकास की प्रक्रिया में वंशानुक्रम का अर्थ, प्रकृति व विभिन्न धारणाओं का उल्लेख कीजिए ।
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आनुवंशिकता या वंशानुक्रम : अर्थ (Heredity : Meaning)
सामान्य अर्थो में वंशानुक्रम (Heredity) से आशय है कि जैसे माता-पिता हैं, वैसी ही सन्तान होगी। यदि माता-पिता बुद्धिमान तथा स्वस्थ हैं तो सन्तान भी बुद्धिमान तथा स्वस्थ होनी चाहिए। परन्तु इसके अपवाद स्वरूप बुद्धिमान माता-पिता की सन्तान मन्दबुद्धि भी देखी गयी है और मन्दबुद्धि माता-पिता की बुद्धिमान सन्तान भी।
वंशक्रम या वंशानुक्रम एक भावात्मक (Abstract) शब्द है क्योंकि हम न तो इसे देख सकते हैं, न ही छू सकते हैं, इसे केवल अनुभव कर सकते हैं। प्रकृति का यह सामान्य नियम है कि समान से समान जीव ही उत्पन्न होता है। ये समानता का गुण वंशानुक्रम द्वारा प्राप्त किया जाता है। व्यक्ति या प्राणी में जो भी गुण या क्षमतायें (Quality or Capacities) विद्यमान होती हैं उनमें से कुछ वह अपने पूर्वजों एवं माता-पिता से प्राप्त करते हैं। कुछ उसे जाति (Race) के माध्यम से प्राप्त होती है। कुछ अनुभूतिजन्य (Instinctive) होती है तथा शेष वह स्वयं अर्जित करता है।
वंशानुक्रम की परिभाषायें ( Definitions of Heredity)
अनेक विद्वानों ने निम्न परिभाषायें दी हैं-
एच. ए. पीटरसन – “वंशक्रम की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है कि व्यक्ति अपने माता-पिता के माध्यम से पूर्वजों से जो भी विशेषतायें प्राप्त करता है, यह वंशक्रम कहलाता है।”
जेम्स ड्रेवर के अनुसार- “माता-पिता की शारीरिक एवं मानसिक विशेषताओं का सन्तानों में हस्तान्तरण होना वंशानुक्रम हैं।”
पीटरसन के अनुसार – “व्यक्ति अपने माता-पिता के माध्यम से अपने पुरखों की विशेषताओं में जो कुछ प्राप्त करता है, उसे वंशानुक्रम है।”
रूथ बेनीडिक्ट के अनुसार- “वंशानुक्रम माता-पिता से सन्तानों को प्राप्त होने वाला मूल्य है।”
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि वंशानुक्रम में प्रजनन द्वारा अपने ही समान जीव की उत्पत्ति होती है तथा माता-पिता एवं पुरखों द्वारा शारीरिक व मानसिक गुणों का हस्तांतरण होता है और इन गुणों को हम ‘आनुवांशिक गुण’ कहते हैं।
वंशानुक्रम की प्रक्रिया –
मनुष्य के शरीर में उत्पादक कोश (Germ Cell) होते हैं। इन उत्पादक कोशों की रचना विभिन्न जीन्स (Genes) से मिलकर हुई है। ये जीन्स ही वंशक्रम को सन्तति दर सन्तति प्रवाहित करते हैं। जनन-कोश का आकार छड़ी की तरह (Rodlike) होता है। इसे गुणसूत्र (Chromosome) कहते हैं। यह धागे की तरह होते हैं। जीन्स ही वंशक्रम की विशेषताओं को अगली पीढ़ी में संक्रान्त करते हैं। गुणसूत्रों का विभाजन अमीबा की तरह होता रहता है। एक से दो, दो से चार, चार से आठ इसी तरह उनकी उत्पत्ति होती रहती है। इनको उत्पादक कोश कहा जाता है। माता पक्ष के उत्पादक कोश को मातृसूत्र (Ova) तथा पितृ पक्ष के उत्पादक कोश को पितृ सूत्र (Sperm) कहते हैं। ये सूत्र कोशिका कहलाते हैं। इसमें अनेक जोड़े। जीन्स के होते हैं। जो पति-पत्नी में आपसी सहयोग से संयोग स्थापित कर सन्तान उत्पन्न करते हैं। संक्षेप में वंशक्रम की प्रक्रिया को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-
वंशानुक्रम से सम्बन्धित विभिन्न धारणायें या वंशक्रम के नियम
(1) उत्पादक गुणसूत्रों की निरन्तरता का नियम- 1745 ई. में फ्रांसिस फ्रायड ने विचार प्रकट किया कि बालक भी उतना ही बड़ा है जितना कि उनका पूर्वज । इनके अनुसार वंशक्रम का निर्धारण 50% माता पक्ष से तथा 50% पिता के पक्ष से होता है। दादा परदादा आदि पूर्वजों के गुण, निश्चित मात्रा में होते हैं तथा संतति-दर संतति ये कम होते हैं जैसे- 1/2, 1/4, 1/8, 1/16, 1/32 आदि।
(2) अर्जित गुणों के हस्तान्तरण का नियम- लैमार्क ने कहा कि अर्जित गुणों का संक्रमण भी संतति में होता है। इनके अनुसार माता-पिता अपने वातावरण तथा सीखने की प्रक्रिया से जो भी गुण दोष अपनाते हैं, इन गुण दोषों का भी हस्तान्तरण होता है। पर इनमें से जो गुण दोष बीजकोषों पर प्रभाव डाल पाते हैं वही हस्तान्तरित होते हैं।
(3) प्रत्यागमन का नियम- प्रत्यागमन से आशय संतान में विपरीत गुणों का पाया जाना है। मन्द बुद्धि माता-पिता के यहाँ प्रतिभाशाली संतान का होना प्रत्यागमन का उदाहरण है। माता-पिता में दो प्रकार के गुणसूत्र होते हैं- जागृत गुण सूत्र (Dominant) – यह गुणसूत्र माता-पिता के समान गुण हस्तान्तरित करते हैं। सुप्तगुण सूत्र (Recessive) – ये माता-पिता के विपरीत गुण हस्तान्तरित करते हैं। यही कारण है कि तीव्र बुद्धि वाले माँ-बाप के बच्चे मन्द बुद्धि, मन्द बुद्धि माँ-बाप के बच्चे तीव्र बुद्धि वाले हो जाते हैं।
(4) समानता का नियम- बच्चा माँ-बाप के पूर्वजों के समान शारीरिक, मानसिक गुण प्राप्त करता है।
(5) विभिन्नता का नियम- अलग-अलग वंशसूत्रों के मिलने के कारण एक ही माँ-बाप के बच्चों में शारीरिक, मानसिक, विभिन्नता होती हैं।
(6) जीव सांखिकीय नियम- इस नियम के अनुसार बच्चा अपने माता-पिता से 50% गुण, दादा-दादी व नाना-नानी से 25% गुण, परदादा परदादी तथा परनाना-परनानी से 12% गुण प्राप्त करता है।
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