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किशोरों का परिवार एवं शिक्षक के साथ सम्बन्ध

किशोरों का परिवार एवं शिक्षक के साथ सम्बन्ध
किशोरों का परिवार एवं शिक्षक के साथ सम्बन्ध

किशोरों का परिवार एवं शिक्षक के साथ सम्बन्धों पर टिप्पणी लिखिए।.

किशोरों का परिवार के साथ सम्बन्ध

 किशोरावस्था (13 से 18 वर्ष) में किशोरों में व्यापक शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक परिवर्तन होते हैं। फिर भी उनका परिवार के साथ भावनात्मक संबंध बना रहता है। उनका जीवन परिवार के मुखिया के अनुदेशों से संचालित होता है। प्रायः किशोरों एवं किशोरियों के परवरिश में अन्तर पाया जाता है फिर भी वे परिवार के साथ घुल-मिलकर रहते हैं। किशोर प्रायः माँ एवं अन्य भाई-बहनों से अधिक भावनात्मक रूप से जुड़े रहते हैं। किशोर एवं किशोरी प्रायः माता-पिता के अनुदेशों का पालन करते हैं। किशोरावस्था विद्यालयी अवस्था होती है।

शिक्षक के साथ सम्बन्ध

शिक्षक के साथ निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है-

1. विषय का ज्ञान- अध्यापक का किसी विषय का ज्ञान अनुभव तथा योग्यता आदि के सीखने पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं। यदि अध्यापकों को अपने विषय का ज्ञान नहीं है तो वे विद्यार्थी को सीखने के लिए उत्साहित नहीं कर सकेंगे। यदि अध्यापक को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान है तो वह आत्मविश्वास के साथ विद्यार्थियों को नया ज्ञान सीखने के लिए प्रेरित कर सकता है।

2. अध्यापक का व्यवहार- अधिगम प्रक्रिया में अध्यापक का महत्वपूर्ण स्थान होता है। अध्यापक के आचार-विचार और व्यवहार को बालकों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है तथा वह उनका अनुकरण करने का भी प्रयास करता है। विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने अध्यापक को एक पथ-प्रदर्शक, माली तथा कलाकार की संज्ञा दी है।

3. शिक्षण विधि- शिक्षण विधि का सीधा सम्बन्ध अधिगम प्रक्रिया से है। सभी बालक एक-सी विधि से नहीं सीख सकते। शिक्षण की विधि जितनी अधिक प्रभावशाली तथा वैज्ञानिक होगी, उतनी ही सीखने के लिए लाभदायक सिद्ध होगी। करके सीखना, निरीक्षण द्वारा सीखना, प्रयोग द्वारा सीखना, खेल विधि आदि का अपना अलग-अलग महत्व है।

4. अध्यापक का मानसिक स्वास्थ्य एवं समायोजन स्तर- एक अध्यापक अपने व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक जीवन में किस सीमा तक सामाजिक जीवन में समायोजित अनुभव करता हुआ मानसिक स्वास्थ्य का परिचय देता है। यह बात अध्यापक के शिक्षण व्यवहार और शिक्षण प्रभावशीलता को प्रभावित करती है। वे अध्यापक जो मानसिक रूप से अशान्त तथा अस्वस्थ रहते हैं। अथवा जो अपने आपको अध्यापक के रूप में समायोजित नहीं कर पाते, वे शिक्षण के क्षेत्र में सदैव ही अपना संतुलन खोये रहते हैं और उनसे जितना अहित बालकों का हो सकता है उसकी कोई सीमा नहीं। इसके विपरीत भली-भाँति समायोजित और मानसिक रूप से स्वस्थ अध्यापक, अध्यापन और विद्यार्थियों के लिए वरदान सिद्ध होते हैं। इस प्रकार यह निश्चित रूप में कहा जा सकता है कि अधिगम एवं शिक्षण प्रक्रिया को सकारात्मक और नकारात्मक दिशा प्रदान करने में अध्यापक के मानसिक स्वास्थ और समायोजन स्तर का बहुत बड़ा हाथ होता है।

5. सिखाने की इच्छा- जिन अध्यापकों में सिखाने की इच्छा होती है, वही सफलतापूर्वक बालकों को सिखा पाते हैं। इच्छा न रखने वाले व्यक्ति सिखाने के लिए विविध प्रयास नहीं करते। वे विद्यार्थियों में सीखने की रुचि और जिज्ञासा जाग्रत नहीं कर सकते। अध्यापक द्वारा कक्षा में स्थापित अंतःक्रिया का स्तर, व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान, मनोविज्ञान का ज्ञान आदि भी अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक हैं।

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Anjali Yadav

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