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गर्भाधान से क्या अभिप्राय है?
गर्भाधान (Conception)- पुरुष के शुक्राणु (Sperm) तथा स्त्री के अण्डाणु (Ovum) के निषेचन से नये जीव का निर्माण होता है। इस नये जीव का निर्माण ही गर्भाधान कहलाता है। स्त्री- प्रजनन कोशिका अण्डाणु एवं पुरुष प्रजनन कोशिका शुक्राणु के परस्पर संयोग से गर्भाधान प्रक्रिया सम्पन्न होती है। नये जीव की सृजनात्मक क्रिया गर्भाधान से प्रारम्भ होती है।
महिलाओं की तैयारी की अवस्थाएँ
गर्भधारण से पूर्व महिलाओं की तैयारी की निम्न तीन अवस्थाएँ होती हैं-
(1) प्रजनन कोशिका की परिपक्वता –
इसका तात्पर्य है कोशिका विभाजन द्वारा क्रोमोसोम्स के विघटन की प्रक्रिया। प्रत्येक प्रजनन कोशिका में 23 जोड़े क्रोमोसोम के होते हैं। क्रोमोसोम पतले धागे की तरह की रचनाएँ होती हैं जिनके अन्दर छोटे-छोटे अंग (गुणसूत्र) होते हैं। ये गुणसूत्र माता-पिता से बच्चों में हस्तान्तरित होते हैं और बालक का वंशानुक्रम निर्धारित करते हैं। परिपक्वता क्रिया के समय प्रत्येक कोशिका के क्रोमोसोम स्वयं को कोशिका के केन्द्रक की विपरीत स्थिति में जोड़े में व्यवस्थित कर लेते हैं। प्रत्येक जोड़े में एक क्रोमोसोम माँ का होता है और एक क्रोमोसोम पिता का होता है। जब ये जोड़े अलग होते हैं तो एक क्रोमोसोम नयी बनी हुई कोशिकाओं में चला जाता है और दूसरा क्रोमोसोम दूसरी कोशिका में चला जाता है। इस प्रकार बनी कोशिकाएँ पुन: लम्बाई में विखर जाती हैं और दूसरा क्रोमोसोम दूसरी कोशिका में चला जाता है। इस प्रकार बनी कोशिकाएँ पुन: लम्बाई में बिखर जाती हैं और मूल क्रोमोसोम में से आधे बचे रहते हैं। परिपक्वता क्रिया समाप्त होते ही पुरुष जनन कोशिकाओं में चार तथा स्त्री प्रजनन कोशिकाओं में से एक कोशिका प्रजनन के योग्य हो जाती है।
(2) अण्डपात-
ग्रेफियन फोलिकल की परिपक्वता तथा अण्डाणु की निष्पत्ति को अण्डपात कहते हैं। किशोरावस्था में फोलिकल परिपक्व हो जाता है। फोलिकल से अण्डाणु के बाहर आने से पूर्व फोलिकल में परिवर्तन होने लगते हैं। इसमें एक मोटी तह वाली दीवार बन जाती है और एक द्रव भी बन जाता है। इस द्रव के बनने से फोलिकल का आकार बहुत बढ़ जाता है तथा फोलिकल परिपक्व हो जाता है। अब फोलिकल की सतह फट जाती है और अण्डाणु बाहर निकलकर पेरिटोनियल गुहा में आ जाते हैं। ग्रेफियन फोलिकल के फटने से रक्तपात होने लगता है। फोलिकल के खाली स्थान में एक थक्का सा जम जाता है तथा फोलिकल की दीवार से एक पीला सा ऊतक उभर जाता है। यह कार्पस लुटिमन अण्डाणु निषेचित हो जाने की स्थिति में प्लासेण्टा बनने से पहले प्लासेण्टा का कार्य करता है।
(3) निषेचन-
निषेचन गर्भाधान के समय होता है। अण्डाणु के डिम्बवाहिनी नलिका में प्रवेश करने के 12 से 36 घण्टों के अन्दर ही शुक्राणु मिल जाने की स्थिति में वह निषेचित हो जाता है। सम्भोग की स्थिति में गर्भाशय के मुख्य द्वार पर अनेक शुक्राणु जमा हो जाते हैं। एक गन्ध द्वारा ये डिम्बवाहिनी नलिका की ओर खिंचे चले जाते हैं। इनमें से एक शुक्राणु अण्डाणु की सतह भेदकर अन्दर प्रवेश कर जाता है। उसकी पूँछ का भाग बाहर ही रह जाता है। दोनों कोशिकाओं के केन्द्रक एक-दूसरे से मिल जाते हैं। दूसरा शुक्राणु प्रवेश नहीं कर पाता है।
गर्भाधान के समय निर्धारित होने वाले स्थितियाँ
गर्भाधान के समय निम्नलिखित महत्वपूर्ण स्थितियाँ तय होती हैं-
(1) वंशानुक्रम-
माता-पिता की प्रजनन कोशिकाओं में 23-23 क्रोमोसोम पाये जाते हैं। जो बालक के 23 जोड़े क्रोमोसोम बनाते हैं। इन सूत्रों में असंख्य जीन्स पाये जाते हैं जो बालक के शारीरिक, मानसिक गुण असमान्यताएँ, विशिष्ट योग्यताएँ, आदि तय करते हैं। एक बालक सामान्यतः 80,000 से 1,20,000 तक जीन्स गर्भाधान के समय प्राप्त करता हैं जिनमें माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी तक के गुण सकते हैं। वंशानुक्रम का निर्धारण संयोगवश होता है।
(2) यौन-निर्धारण –
गर्भस्थ शिशु लड़का होगा या लड़की, यह भी गर्भाधान के समय ही निश्चित हो जाता है। अण्डाणु एवं शुक्राणु में एक-एक यौन निर्धारण करने वाला क्रोमोसोम पाया जाता है। यौन क्रोमोसोम 2 प्रकार के होते हैं- (1) X क्रोमोसोम जो तुलनात्मक रूप में बड़ा होता है- (2) Y क्रोमोसोम का आधा भाग होता है।
सभी परिपक्व शुक्राणुओं में आधे X क्रोमोसोम होते हैं और आधे Y क्रोमोसोम । स्त्री परिपक्व कोशिकाओं में सभी केवल Y क्रोमासोम पाये जाते हैं। यदि पुरुष का शुक्राणु X यौन क्रोमोसोम से युक्त है और स्त्री के Y क्रोमोसोम से संयोग करता है तो गर्भस्थ शिशु लड़का होता है।
किन्तु Y क्रोमोसोम वाले शुक्राणु के Y क्रोमोसोम से संयोग करने पर लड़की की उत्पत्ति होती है।
(3) बालकों की संख्या-
बालक अकेला उत्पन्न होगा अथवा एक से अधिक उत्पन्न होगा, यह भी गर्भाधान के समय निर्धारित हो जाता है। मेरोडिथ के अनुसार 80 अकेले बालक (Single Birth) में एक जुड़वाँ बालक (Twins) होते हैं। 9000 बालकों में एक तीन बालक के जन्म की स्थिति होती है। 5,70,000 बालकों में एक चार बालकों के जन्म की स्थिति होती है। पशु, पक्षी, जानवरों में कई-कई बच्चे उत्पन्न होते हैं।
(4) बालकों में परिवार का क्रम-
बालक का परिवार में कौन-सा क्रम है, यह भी गर्भाधान के समय निश्चित होता है।
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