Contents
जन-अधिकार क्या है? What is public rights?
जन या लोक अधिकार का तात्पर्य सार्वजनिक संस्थाओं तक आम लोगों तक पहुँच से है। राजनीति विज्ञान इसे लोगों का आय अधिकार माना गया है। समय-समय पर सरकारी संस्थाओं ने इस श्रेणी के अनेक कानून बनायें हैं, जिनमें सूचना का अधिकार महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सूचना का अधिकार-स्वतंत्रता प्राप्ति के 58 वर्षों के पश्चात 12 अक्तूबर, 2005 से सूचना के अधिकार द्वारा नागरिकों के लिए लोकतंत्र में सम्भवतः पहली बार विधिवत तत्र पर लोक की सर्वोच्चता कायम की गई। सार्वजनिक संस्थाओं के पास उपलब्ध सूचनाओं पर नागरिकों की हकदारी जैसे साधारण अधिकार के परिणाम दीर्घ और गहन हैं। इस अधिकार से ई-गवर्नेस और सूचना प्रौद्योगिकी के युग में अपने परम्परागत समस्याओं में उलझे प्रशासनिक ढांचों को नई प्रशासनिक संस्कृति स्थापित करने का अवसर मिलता है। अब भारत भी दुनिया के उन 60 देशों शामिल हो गया है, जिन्होंने अपने नागरिकों को सूचना का अधिकार प्रदान कर पारदर्शी, जवाबदेह एवं गुड गवर्नेस स्थापित करने की चाक चौबंद व्यवस्थाएं की है। पिछले दो वर्षों में इस कानून के कार्यान्वयन के दौरान कानून के दायरे एवं निष्पादन से जुड़े ऐसे मुद्दे आए जिनका समय रहते समाधान आवश्यक है। शायद इसी आकांक्षा को देखते हुए 6 अध्यायों एवं 32 धाराओं के इस छोटे से लेकिन प्रभावशाली कानून की धारा 30 में यह प्रावधान है कि दो वर्ष में कानून का पुनः परीक्षण कर कानून के कार्यान्वयन में आ रही मुश्किलों को दूर करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा निर्देश दिए जाएँगे।
दुर्भाग्यवश यह अवधि समाप्त हुई एवं ऐसे कोई प्रयास नहीं हुए, किन्तु यह नितान्त जरूरी है कि सूचना के अिधकार कानून के कार्यान्वयन से जुड़ी कुछ अस्पष्टताओं को दूर किया जाए। सारे देश के विविध क्षेत्रो, मीडिया, सिविल सोसाइटी के संगठनों को लागू करने के लिए जिम्मेदार सार्वजनिक संस्थाओं में कानून के विविध प्रावधानों के अर्थ, दायरे को लेकर जो भ्रांतियां हैं उनका समाधान आवश्यक है। ऐसे कुछ मुद्दों पर विचार एवं विकल्पों की खोज जरूरी है।
कानून के प्रावधान की स्पष्टता की आवश्यकता
सूचना के अधिकार कानून का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू लोक प्राधिकरण के मुद्दे पर स्पष्टता की आवश्यकता है। कानून की धारा 2 (एच) के तहत लोक प्राधिकरण अथवा सार्वजनिक संस्थाओं के पास उपलब्ध सूचनाओं की मांग कर सकता है।
सार्वजनिक संस्थाओं में संविधान द्वारा स्थापित या गठित, संसद या किसी राज्य विधायिका के कानून द्वारा स्थापित या गठित, केन्द्र या राज्य सरकार की किसी अधिसूचना या आदेश के द्वारा स्थापित या गठित, राज्य व केन्द्र सरकार के स्वामित्व वाली, उनके द्वारा नियंत्रित या पर्याप्त मात्रा में सरकारी धनराशियां पाने वाले निकाय सभी गैर सरकारी संगठनों व निजी क्षेत्रों के निकाय जो सरकार के द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित हैं, शामिल हैं। अब इस लोक प्राधिकरण की व्यापक परिभाषा जिसमें पंचायत से लेकर राष्ट्रपति कार्यालय तक के स्तर शामिल हैं, जिससे सूचना मांग सकते हैं। लेकिन व्यावहारिक रूप से सामान्य नागरिक के लिए यह जान पाना कठिन है कि लोक प्राधिकरण संस्थाओं अथवा पब्लिक ऑथोरिटी में कौन सी संस्थाएं शामिल हैं या कौन-सी नहीं।
एक सामान्य नागरिक के लिए यह जान पाना भी कठिन है कि कब-कब किस प्रशासकीय आदेश अथवा नोटिस से पब्लिक ऑथोरिटी कायम की गई अथवा सरकार के द्वारा नियंत्रित निकाय कौन से है? या फिर ऐसे गैर सरकारी संगठन कौन-से हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित है? इसी प्रकार इस परिभाषा में ‘नियंत्रित’ आंशिक सहायता प्राप्त संगठन’ उलझनपूर्ण शब्द हैं।
अपील अधिकारी की जिम्मेदारी- कानून अपील अधिकारी के सम्बन्ध में भी अस्पष्टता है। सूचना के अधिकार कानून का यह प्रावधान है कि प्रत्येक सार्वजनिक संस्था में सूचना अधिकारी की नियुक्ति होगी। यदि आवेदक लोक सूचना अधिकारी के सूचना के अधिकार के आवेदन पर दिए गए निर्णय से अंसतुष्ट है तो उसे दो स्तरों पर अपील का अधिकार है। प्रथम अपील अधिकारी उसी सार्वजनिक संस्था के लोक सूचना के वरिष्ठ अधिकारी तथा द्वितीय अपील केन्द्रीय अथवा राज्य सूचना आयोग होंगे।