‘बादलराग’ निराला के विराट व्यक्तित्व का प्रतीक है।’ इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
बादल विराट्, विशाल एवं दसों दिशाओं में व्याप्त होते हुए सर्व-वत्सल एवं परोपकारी हुआ करता है। महाकवि कालिदास ने इसकी महानता को ध्यान में रखते हुए इसकी तुलना शिव खण्ठ से की है। निराला जी ने अपनी रचनाओं में बादल को ‘ऐ त्रिलोकीजीत’, इन्द्र धनुर्धर, सुरबालाओं के स्वागत विजय, विश्व भर में नवजीवन भर, उतरो अपने रथ से भारत जैसे महिमा-मंडित शब्दों के प्रयोग द्वारा बादल का स्मरण किया है। बादल समस्त संतप्त लोक को शीतलता तथा शान्ति प्रदान करता है। बादल का जलवर्षण अमृत-द्रव है। बादल की आकर्षण आकृति, वर्णमयी रंगमयी रंगमयता, ध्वनि, गीत और वृष्टि सभी सबके लिए स्फूर्तिप्रद एवं परमप्रिय है। कृषकों का तो यह जीवनाघार है ही। कृषक इस अकारण परोपकारी आगन्तुक का परम प्रेम से स्वागत करते हैं। वे जानते हैं कि कृषि के प्रवर्तन का श्रेय बादल को ही है। निराला ने इस ओर संकेत किया है-
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर, तुझे बुलाता कृषक अधीर
ऐ विप्लव के वीर।
बादल की ममता का कोष सर्वदा सबके लिए खुला होता है। बादल का सम्पूर्ण संचय त्याग के लिए होता है। इस अर्थ में बादल प्रजापति होता है। उसके उपहार से सभी पुष्ट और प्रसन्न होते हैं। अपने प्रजापतित्व की सार्थकता के लिए उसे दण्ड का भी विधान करना पड़ता है। प्रजाओं के उद्भव, स्थिति व संहार तीनों का वह अधिकारी है। वस्तुतः अमृत-जीवन जल-वर्षा के साथ वह ओलों का ही नहीं, वज्र की भी वर्षा करता है। उसका यह कठोर रूप भी अपने उद्देश्य में कल्याणकारी ही होता है। ओले तो जैसे उसकी व्यंग्य-बौछार हैं और वज्रशक्ति के गर्व में ऊपर उठे हुए पर्वतों के अभिमानांकुरों को भंजन करने का अमोध अस्त्र । प्रकृति-पुरुष होने के नाते वह स्वयं प्रकृति के भीषण, उग्र तथा कठोर एवं मृदु, कोमल और शान्त रूपों का समीकरण है। निराला ने उसे कुसुम कोमल, कठोर कवि कहकर सम्बोधित किया है। बादल अपनी इस द्विविध प्रक्रिया से प्रकृति की द्वन्द्वमयी स्थिति को प्रकट करता है।
महाप्राण निराला के विराट् व्यक्तित्व का पूर्ण तादात्म्य इसी प्रकृति-पुरुष बादल से ही सम्भव है। बादल पर लिखित उनकी दर्जनों कविताएँ उसका ज्वलंत और जीवन्तसाक्ष्य उपस्थित करती हैं। मनीषियों की मान्यता है कि कवि की प्रतिभा का ही अन्तःस्वरूप व्यक्तित्व और उनकी प्रतिभा में एक साम्य पाया जाता है, जो विश्व के बहुत कम कवियों में मिलता है। इस व्यक्तित्व का बहुविध प्रवृत्ति रूप उनकी ‘बादल-राग’ कविताओं में पूर्णतया स्पष्ट है। निम्नलिखित पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं, जिसमें निराला ने भैरव घोष-भरे बादल के व्यक्तित्व का सजीव चित्रण किया है—
“ऐ निर्बन्ध!
मन्द-चंचल- समीर- रथ पर उच्छृंखल ।
ऐ उद्दाम!
अपार कामनाओं के प्राण।
बाधा रहित विराट् !
विश्व-विभव को लूट-लूट लड़ने वाले अपवाद
श्री बिखेरे, मुखफेर कली के निष्ठुर पीड़न छिन्न-छिन्नावर पत्र-
पुष्प-पादप वन उपवन, वज्रघोष से ऐ प्रचण्ड ।
आतंक जमाने वाले।
कम्पित जंगल-नीड़ विहंगम,
ऐ न व्यथा पाने वाले।
भय के मायामय आँगन पर
गरजो विप्लव के नव जलधर।”
इस कविता में बादल के लिए प्रयुक्त सम्बोधन निराला के लिए भी उपयुक्त ठहरते हैं। निराला किसी बँधी-बँधाई परम्परा पर चलने के आदी नहीं थे।
इस प्रकार निराला ने अपनी ‘बादल-राग’ कविता में संकीर्ण अवरुद्ध तथा जीवन में परिवर्तन, परिष्करण तथा गति लाने के लिए ही विप्लवकारी बादल का स्वरूप चित्रित किया है, जो कवि के व्यक्तित्व की बाह्य प्रकृति मात्र है। सामूहिक मुक्ति ही इस कविता की, इस विप्लवी मेघगीत की मूल प्रेरणा है। निराला को यह भली-भाँति मालूम है कि ‘निर्दय विप्लव की प्लावित माया’ के बिना संसार में सामूहिक उन्मेष न कभी हुआ, न होगा। इसी बात को ध्यान में रखते हुए कवि विप्लवी बादलों का आह्वान करता है। निम्नलिखित पंक्तियाँ निभालनीय हैं—
तिरती है समीर सागर पर अस्थिर दुःख पर सुख की छाया
जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया।
यह तेरी रणतरी
भरी आकांक्षाओं से
घन भेरी गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के आशाओं से
नवजीवन का ऊँचा कर सिर
ताक रहे हैं विप्लव के बादल
फिर-फिर।
बादल की घोर गर्जना सुनकर धनी-मानी लोग काँप उठते हैं; क्योंकि वे क्रान्ति से भयभीत होते हैं, लेकिन जीर्ण बाहु, शीर्ण शरीर, कृषक उनका स्वागत बहुत उत्सुकतापूर्वक करते हैं, क्योंकि यही बादल उनका जीवनाधार है। यह विप्लवी बादल निराला के चिरविप्लवी व्यक्तित्व का पूर्ण प्रतीक है, यह निर्विवाद सत्य है। निराला अपने व्यक्तित्व के विविध परीक्षणों के अनुरूप बादल को विविध स्वरूपों में रूपायित करते हैं। जब विप्लवी बादल गरजता है, मूसलाधार बरसता है, तब सारा संसार काँप उठता है। वज्रपात से बड़े-बड़े अभिमानी अटल पर्वतों के शरीर चूर-चूर हो जाते हैं, केवल छोटे पौधे अर्थात् साधारण जन प्रसन्न होते हैं, क्योंकि, ‘विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।’ निराला ने बादल को क्रान्ति के रूप में चित्रित किया है।
निराला ने बादल के बाह्य रूप और अपने व्यक्तित्व के स्वरूप को एक ऐसी विराटता में विलीन कर दिया है। सभी वस्तुओं में आत्मतत्त्व और आत्मा में ममत्व का यही सिद्धान्त मनुष्य और प्रकृति में एक ही आध्यात्मिक स्पन्दन की स्थापना करता है, जिसके अनुसार प्रकृति और मनुष्य एक ही व्यापक सत्य के अंश बन जाते हैं। वास्तव में, आनन्द की प्रतीति तभी होती है जब हम अपनी आत्मा का संसार से और संसार की आत्मा से, विराट् भूमा की आत्मा से सहज एकत्व का अनुभव करते हैं। निम्न पंक्तियाँ अवलोक्य हैं-
‘मुक्त तुम्हारे मुक्त कंठ में
स्वरारोह, अवरोह, विधात
मधुर मन्द, उठ पुनः पुनः ध्वनि
छा लेती है गगन, श्याम कानन
सुरभित उद्यान
झर झर रव भूधर का मधुर प्रपात
अन्यत्र भी उन्होंने लिखा है-
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से, सदा झलकता नीर।
रोग-शोक में भी हँसता है, शैशव का सुकुमार शरीर।”
इन पंक्तियों में कवि ने अपने शिशु-सुलभ, सरल एवं निश्छल हृदय, वाणी के स्वर-ताल, मुक्त स्वभाव तथा लय को नाद-साधन का सजीव चित्रण किया है। ‘बादल राग’ कविता निराला के सर्वस्वदानी- करुणामय स्वरूप को उद्घाटित करती है। इस कविता में कवि ने अपनी अनन्तधार अन्तर्बादल प्रतिभा से सर्वमंगलमय रस बरसा कर समूचे विश्व को सिंचित कर देने की कामना व्यक्त की है।
उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि निराला के व्यक्तित्व और प्रतिभा की विराट् बहुमुखता और गहन-गम्भीरता का मूल प्रतीक उनकी बादलराग कविताएँ हैं, जिनको पूर्णतया हृदयंगम कर लेने के पश्चात् कवि का विराट् बादल-व्यक्तित्व सम्पूर्ण रूप से उभरकर सामने आ जाता है। ‘बादल-राग’ की रनचा निराला ने बड़े मनोयोगपूर्वक किया है। निराला के व्यक्तित्व की कठोर एवं कोमल दोनों पक्षों की अभिव्यक्ति ‘बादलराग’ के माध्यम से हुई है। निराला जी के ‘परिमल’ संग्रह में ‘बादल राग’ छह कड़ियों में चित्रित है, जिसमें बादल के भिन्न-भिन्न स्वरूपों का मार्मिक एवं सजीव वर्णन निराला ने किया है।
अस्तु, ‘बादलराग’ में निराला का विराट् व्यक्तित्व अभिव्यक्त हुआ है।
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