बाल मनोविज्ञान की उपयोगिता तथा महत्त्व का वर्णन कीजिए।
बाल मनोविज्ञान की उपयोगिता और महत्त्व
आधुनिक युग में बाल-विकास का अध्ययन कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। इस दिशा में हुए अध्ययनों से न केवल बालकों का ही कल्याण हुआ है, माता-पिता को बालकों को समझने में बहुत सुविधा भी मिली है तथा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मानव-समाज का भी कल्याण हुआ है। मनोविज्ञान की इस शाखा के अध्ययन से बालकों के जीवन को सुखी ही नहीं बनाया जा सकता है, बल्कि उनके व्यवहार को प्रशंसनीय और उनके जीवन को समृद्धिशाली भी बनाया जा सकता है। इस विषय के अध्ययनों से शिक्षक, बाल-चिकित्सक, बाल-सुधारक आदि सभी लाभान्वित हुए हैं। इस विषय की उपयोगिता और महत्त्व के सम्बन्ध में कितना ही लिखा जाय, कम है। संक्षेप में, इस विषय की उपयोगिता और महत्त्व निम्नलिखित हैं-
1. बालकों के शिक्षण और शिक्षा में उपयोगी- बालक में सीखने की प्रक्रिया का प्रारम्भ जन्म के कुछ दिनों बाद ही हो जाता है। जैसे-जैसे उसकी शारीरिक और मानसिक, परिपक्वता बढ़ती जाती है, उसमें सीखने की क्षमता उतनी ही बढ़ती जाती है; साथ-ही-साथ वह जटिल चीजों को सीखने के लिए अधिक तथा और अधिक योग्य होता जाता है। प्रारम्भ में वह अपनी माँ के चेहरे को पहचानना सीखता है, फिर अन्य परिवारीजनों अथवा उसके निकट रहने वाले लोगों को। इस प्रक्रिया के द्वारा उठना, बैठना, दौड़ना, कूदना, बोलना आदि सब कुछ सीखता है। विभिन्न कौशलों का अधिगम भी वह करता है। कुछ विशेषताएँ वह परिपक्वता के साथ-साथ सामाजिक अन्तःक्रियाओं के कारण सीखता है, परन्तु अन्य विशेषताओं और गुणों को बालक को सिखाना भी पड़ता है। बालकों को सिखाने में, उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण में बाल विकास का ज्ञान बहुत उपयोगी है।
2. बालकों के स्वभाव को समझने में उपयोगी – बालकों के व्यवहार विकास का अध्ययन बाल मनोविज्ञान में किया जाता है। बालक के विभिन्न आयु-स्तरों पर बालक की विभिन्न व्यवहार विशेषताओं का अध्ययन तथा विभिन्न व्यवहारों में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों का अध्ययन बाल मनोविज्ञान में किया जाता है। बाल विकास के ये सभी प्रकार के अध्ययन बालकों के स्वभाव को समझने में बहुत अधिक सहायक हैं; क्योंकि बाल विकास के अध्ययन से उनकी विभिन्न शारीरिक, मानसिक योग्यताओं का तथा विभिन्न मनोवैज्ञानिक विशेषताओं तथा बालक की अन्तःक्रियाओं का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। वास्तव में, इस ज्ञान के आधार पर ही बालकों की प्रकृति को अच्छी तरह समझा जा सकता है। विज्ञान की अन्य और कोई भी शाखा नहीं है, जिससे बालकों के स्वभाव और विकास आदि का ज्ञान प्राप्त किया जा सके। माता-पिता, शिक्षकों, बाल-सुधारकों एवं बाल-निर्देशनकर्त्ताओं आदि के लिए इस विषय का ज्ञान बहुत उपयोगी है, क्योंकि इस विषय के ज्ञान के आधार पर वह प्रत्येक आयु के बालक की व्यवहार प्रकृति को सरलता से समझ सकते हैं।
3. बालकों के विकास को समझने में सहायक- सभी बालकों का विकास कुछ विशेष सिद्धान्तों और नियमों के आधार पर होता है, परन्तु बालकों का विकास समान प्रकार का न होकर उनमें कुछ-कुछ वैयक्तिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं। एक बालक कब चलना सीखता है, कब बोलना सीखता है, कब कपड़े पहनना सीखता है, कब कपड़ों में बटन लगाना और उतारना सीखता है ? किस विकास अवस्था में यौन परिपक्वता उत्पन्न होती है ? गेसेल (1950) ने विकासात्मक कार्यों (Development Tasks) की एक सूची बनाई है। इस सूची से ज्ञात किया जा सकता है कि विभिन्न विकास अवस्थाओं और आयु-स्तरों पर बालक में किन विशिष्ट व्यवहारों की अभिव्यक्ति होती है। भिन्न-भिन्न आयु-स्तरों पर बालकों की शारीरिक और मानसिक विशेषताओं के मानक (Norms) भी उपलब्ध हैं। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि बाल-विकास के अध्ययन के द्वारा भिन्न-भिन्न आयु के बालकों के विकास को समझाया जा सकता है।
4. बालकों के व्यक्तित्व विकास को समझने में उपयोगी (Useful in Understanding Personality Development of Children) – बाल विकास के अध्ययनों में व्यक्तित्व सम्बन्धी अध्ययन भी सम्मिलित हैं। इन अध्ययनों से बालकों के व्यक्तित्व विकास की भी जानकारी प्राप्त होती है। भिन्न-भिन्न आयु-स्तरों पर बालकों के व्यक्तित्व विकास को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं, व्यक्तित्व विकास किन कारणों से असामान्य हो जाता है, आदि प्रश्नों को समझने में बाल-विकास का ज्ञान सहायक है। इस विषय के ज्ञान के आधार पर यह भी ज्ञात हो जाता है कि व्यक्तित्व विकास में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों की क्या-क्या प्रक्रियाएँ हैं।
5. बाल-निर्देशन में सहायक (Useful in Child Guidance)- बालकों का निर्देशन समय-समय पर माता-पिता भी करते हैं और आवश्यकतानुसार बाल-निर्देशनकर्त्ता की भी सहायता ली जा सकती है। निर्देशन चाहे व्यक्तिगत हो या सामूहिक, दोनों प्रकार के निर्देशन में बाल-विकास का ज्ञान सहायक है। बाल-विकास के नियमों और सिद्धान्तों आदि के आधार पर बालकों को शैक्षिक, व्यावसायिक, व्यक्तिगत, निर्देशन तो दिया ही जा सकता है, साथ ही साथ रुचियों एवं कौशलों (Skills) के अधिगम के लिए भी उन्हें निर्देशित कर योग्य तथा कुशल बनाया जा सकता है।
6. सुखी पारिवारिक जीवन बनाने में सहायक (Useful in Making Happy Family Life) – बच्चे परिवार की शोभा होते हैं। बच्चे यदि चरित्रवान, गुणवान, आकर्षक तथा आज्ञापालक हैं तो निश्चय ही ऐसे बच्चे माता-पिता और घर वालों को सुख, शान्ति तथा समृद्धि के लिए सहायक होते हैं। बाल-विकास अध्ययनों के आधार पर बच्चों में वांछित व्यवहारों को उत्पन्न किया जा सकता है और सुखी पारिवारिक जीवन की स्थापना की जा सकती है।
7. बालकों के लिए उपयुक्त वातावरण बनाने में उपयोगी (Useful in Creating Good Environment for Children) – किस आयु के बालकों को क्या-क्या पसन्द होता है ? भिन्न-भिन्न आयु-स्तरों पर उनकी क्या-क्या रुचियाँ होती हैं ? इस सबका ज्ञान बाल विकास अध्ययनों से प्राप्त होता है। इस विषय के ज्ञान के आधार पर उनके खेलने की उपयुक्त सुविधा, उनकी पसन्द के अनुसार रंग-बिरंगी वस्तुएँ तथा उपयुक्त सामाजिक वातावरण को निर्मित करने में बाल-विकास का ज्ञान सहायक है। कई बार इसी विषय के ज्ञान के आधार पर रेडियो, टेलीविजन पर मनोरंजन कार्यक्रम दिये जाते हैं।
8. बालकों के व्यवहार के नियन्त्रण में सहायक (Useful in Controlling the Behaviour of Children) – बाल-विकास अध्ययनों के आधार पर बालकों के बुरे व्यवहार और आदतों को कम या दूर किया जा सकता है। समय-समय पर लगभग हर बच्चे में थोड़ा बहुत प्रतीकात्मक भाषा बोलने, गाली बकने, जिद करने, मारपीट करने सम्बन्धी व्यवहार देखे गये हैं। झूठ बोलने और चोरी करने जैसे लक्षण भी बच्चों में अक्सर देखे जाते हैं। बाल विकास के अध्ययनों, नियमों .और सिद्धान्तों के आधार पर बालकों के इस प्रकार के व्यवहार को नियन्त्रित किया जा सकता है।
9. बाल-व्यवहार के सम्बन्ध में पूर्वकथन करने में सहायक (Useful in Prediction)- बाल विकास का एक व्यावहारिक उपयोग यह भी है कि इस विषय के ज्ञान के आधार पर भिन्न-भिन्न आयु के बालकों के सम्बन्ध में पूर्वकथन किया जा सकता है कि भिन्न-भिन्न आयु-स्तरों पर लड़के तथा लड़कियों की लम्बाई, भार, बुद्धि तथा व्यवहार सम्बन्धी विशेषताएँ क्या-क्या होंगी।
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