बाल मनोविज्ञान से आप क्या समझते हैं ? बाल-मनोविज्ञान का अर्थ तथा परिभाषा दीजिए। बाल-मनोविज्ञान एवं बाल विकास में क्या अन्तर है ?
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बाल मनोविज्ञान
मनोविज्ञान एक व्यावहारिक विज्ञान है। इस व्यावहारिक विज्ञान की अनेक प्रकार से व्याख्या की गई है। डम्बिल ने मनोविज्ञान को प्राणियों के व्यवहार का विधायक विज्ञान कहा है। वुडवर्थ अपने वातावरण के सम्बन्ध में व्यक्ति की क्रियाओं से सम्बन्धित विज्ञान को मनोविज्ञान की संज्ञा दी है। जेम्स ड्रेवर ने-मनोविज्ञान की परिभाषा प्राणियों के मानसिक तथा शारीरिक व्यवहार की व्याख्या करने वाली विज्ञान के रूप में की है और इसका सम्बन्ध भौतिक अनुबन्ध से है। मनोविज्ञान की उपर्युक्त परिभाषाएँ जीवित प्राणी के व्यवहार का अध्ययन, व्याख्या, उन पर पड़ने वाले प्रभाव आदि सभी का अध्ययन करती हैं। मनोविज्ञान, चूँकि मानव व्यवहार का अध्ययन करता है तो वह उन सभी तथ्यों, घटकों का भी अध्ययन करता है जो मानव व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
मनोविज्ञान व्यावहारिक विज्ञान है, इसलिए जीवन के जिन-जिन क्षेत्रों में मनोविज्ञान के सिद्धान्त तथा व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है, वे सब उसी की शाखाएँ बन जाती हैं। बालकों का अध्ययन जब मनोविज्ञान के आधार पर किया जाता है, तो वह बाल-मनोविज्ञान कहलाने लगता है।
बाल मनोविज्ञान के विषय में कुछ प्रश्न निम्न प्रकार उठाये जाते हैं-
1. क्या बाल मनोविज्ञान का अध्ययन व्यक्ति में इस क्षमता का विकास करता है कि वह विकास एवं परिवर्तन की सामान्य दिशा को तथा इसे पहचान सके ?
2. क्या यह विज्ञान बालकों में वांछित व्यावहारिक परिवर्तन की दिशाओं को स्पष्ट करता है ?
3. क्या बाल मनोविज्ञान का अध्ययन बालक को सफल मार्गदर्शन प्रदान करता है ?
सामान्यतः यह माना जाता रहा है कि मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति से बालक की आवश्यकतायें सन्तुष्ट की जा सकती हैं, किन्तु यह भी उतनी ही सही है कि स्नेह, प्रेम, दया, ममता आदि मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति न होने से उसके विकास तथा अभिवृद्धि में दोष आ जाता है।
1. क्रो एवं क्रो- “बाल-मनोविज्ञान एक वैज्ञानिक अध्ययन है, जिसमें बालक के जन्म के पूर्व काल से लेकर किशोरावस्था तक का अध्ययन किया जाता है। “
2. थाम्पसन– “बाल मनोविज्ञान सभी को एक नई दिशा में संकेत करता है। यदि उसे उचित रूप में समझा जा सके तथा उसका उचित समय पर उचित ढंग से विकास हो सके तो हर बच्चा एक सफल व्यक्ति बन सकता है। “
बाल-मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक शाखा के रूप में विकसित हुआ है। इसके अन्तर्गत बालकों के व्यवहार, स्थितियों समस्याओं तथा उन सभी कारणों का अध्ययन किया जाता है, जिसका प्रभाव बालक के व्यवहार एवं विकास पर पड़ता आज के युग में अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक कारक मनुष्य तथा उसके परिवेश को प्रभावित कर रहे के हैं। परिणामस्वरूप बालक, जो भावी समय की आधार शिला होता है, प्रभावित होता है।
बाल-विकास और बाल-मनोविज्ञान में अन्तर (Difference between Child Development & Child Psychology)
बीसवीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थांश तक अधिकांश मनोवैज्ञानिकों के अध्ययन बाल-व्यवहार के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों से सम्बन्धित थे। अधिकांश अध्ययन संवेग, रुचि, खेल, भाषा, बालकों की विभिन्न क्रियाएँ, नवजात शिशुओं की शारीरिक तथा मानसिक विशेषताएँ आदि। इन क्षेत्रों से सम्बन्धित अधिकांश अध्ययन नवजात शिशुओं या स्कूल के छोटे-छोटे बच्चों तक सीमित थे। इस प्रकार के अध्ययन जिस शाखा द्वारा किये जाते थे, उसे बाल-मनोविज्ञान (Child Psychology) कहा जाता था। धीरे-धीरे बाल-मनोविज्ञान की लोकप्रियता बढ़ने लगी। परिणामस्वरूप, इस दिशा में मनोवैज्ञानिकों की रुचि बढ़ी और इस दिशा में अनेक महत्त्वपूर्ण अध्ययन होने लगे। इन अध्ययनों के परिणामस्वरूप मनोवैज्ञानिकों ने अनुभव किया कि केवल भिन्न-भिन्न आयु-स्तरों पर बाल-व्यवहार के विभिन्न क्षेत्रों में अध्ययन करना ही पर्याप्त और उपयुक्त नहीं है। इन मनोवैज्ञानिकों ने यह भी अनुभव किया कि इस प्रकार के अध्ययनों से पता नहीं चलता है कि बालकों की आयु में वृद्धि के साथ-साथ उनकी व्यवहार-विशेषताओं में क्या-क्या तथा किन कारणों से परिवर्तन होते हैं। इस प्रकार के ज्ञान के अभाव की पूर्ति हेतु बाल-मनोविज्ञान में दो अध्ययन प्रणालियों (समकालीन और दीर्घकालीन अध्ययन प्रणालियाँ) का प्रचलन प्रारम्भ हुआ और ‘बाल-मनोविज्ञान’ शब्द के स्थान पर ‘बाल-विकास’ शब्द का उपयोग किया जाने लगा।
हरलाॅक (1978) ने बाल-मनोविज्ञान और बाल-विकास के सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, “The name Child Psychology was changed to Child Development to emphasize that the focus was now on the pattern of the child development rather than certain aspects of development.” मनोवैज्ञानिकों ने बाल-मनोविज्ञान को बाल-विकास उस समय कहना प्रारम्भ किया जब बाल-मनोविज्ञान का क्षेत्र बाल्यावस्था से युवावस्था तक हो गया। यहाँ युवावस्था के व्यक्ति का अभिप्राय उस व्यक्ति से है, जो यद्यपि सेक्स की दृष्टि से परिपक्व होता है, परन्तु उसे प्रौढ़ावस्था से सम्बन्धित उत्तरदायित्वों, अधिकारों और सुविधाओं को रखने की दृष्टि से परिपक्व नहीं समझा जाता है। उपर्युक्त वर्णन से अब स्पष्ट हो गया है कि बाल-मनोविज्ञान की अपेक्षा बाल-विकास बहुत अधिक विस्तृत और व्यापक है। ‘Child Psychology’ के स्थान पर ‘Child Development’ शब्द का प्रयोग मुख्यतः इस कारण होने लगा कि बाल मनोविज्ञान में अधिक अनुसंधानों की आवश्यकता थी।
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