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मानव विकास का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Human Development)
मानव विकास का अर्थ मनुष्य के विकसित होने से है, उचित वातावरण पाकर मनुष्य अपनी आनुवंशिक योग्यताओं में वृद्धि करता है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि मानवीय सम्भावनाओं का विकास ही मानव विकास है।
मानव विकास की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषायें इस प्रकार हैं-
वॉटसन के शब्दों में, “मनुष्य का वैज्ञानिक अध्ययन ही मानव विकास की आधारशिला है।”
डार्विन के अनुसार, “मानव एवं उसकी प्रवृत्ति के विषय में वैज्ञानिक ढंग से सूचनायें प्राप्त करने का मुख्य स्रोत बालक है।”
वुडवर्थ के अनुसार, “मानव विकास के अध्ययन के अन्तर्गत व्यक्ति के व्यवहार द्वारा उत्तेजनाओं को दी गयी अपनी क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं का योग सम्मिलित है।”
क्रो एवं क्रो के शब्दों में, “बालक की भ्रूणावस्था से प्रारम्भ होकर मृत्युपर्यन्त विकास का अध्ययन ही मानव विकास है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मानव के जीवन का प्रारम्भ जन्म से नहीं होता है बल्कि जीवन का प्रारम्भ गर्भधारण के समय से होता है। इस प्रकार मानव का जन्म तो मानव विकास के क्रम में घटित होने वाला एक परिवर्तन है। यह वह परिवर्तन है जिसमें मानव प्राणी आन्तरिक वातावरण को त्यागकर बाह्य वातावरण में पदार्पण करता है। आन्तरिक वातावरण को त्यागना और बाह्य वातावरण में पदार्पण होना एक प्राकृतिक या स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस प्रकार मानव का विकास जीवनपर्यन्त चलता रहता है।
बाल्यावस्था मानव जीवन की प्रारम्भिक अवस्था है। इस अवस्था में व्यक्ति की समस्त शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं तथा योग्यताओं का उदय, प्रस्फुटन तथा विकास होता है। बालक के जीवन का यह विकास काल ही व्यक्ति के भावी जीवन का आधार तैयार करता है। एक मासूम तथा कोमल बालक आगे जाकर पूर्ण परिपक्व, पूर्णतः, विकसित वयस्क के रूप में समाज तथा राष्ट्र का कर्णधार बनता है। अतः बाल्यकाल को जीवन का शिक्षण काल कहना अधिक उचित ही है, क्योंकि इस अवस्था में बालक अनेक प्रकार का ज्ञान प्राप्त करता है, उसकी भाषा तथा कौशल का विकास होता है, जिसके आधार पर ही उसका सम्पूर्ण भावी जीवन नियंत्रित तथा निर्देशित होता है।
अतः यह आवश्यक है कि बालक के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों जैसे-शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, नैतिक तथा चारित्रिक आदि का समुचित और सर्वागीण विकास हो । किन्तु ऐसा तभी सम्भव है जब बालक के माता-पिता, अभिभावक तथा परिवार के अन्य सदस्य और शिक्षक को उसके प्रति ‘मनोविज्ञान व्यवहार’ करने का पर्याप्त ज्ञान हो। बालक के प्रति इस प्रकार के मनोवैज्ञानिक व्यवहार का ज्ञान प्राप्त करने के लिए बाल-मनोविज्ञान का मनोवैज्ञानिक की एक स्वतंत्र शाखा के रूप में विकास हुआ। समय के साथ-साथ बाल मनोविज्ञान पर और अधिक अनुसन्धान होने तथा अधिक अनुसन्धान करने की आवश्यकता का अनुभव होने के फलस्वरूप बाल मनोविज्ञान का नाम बाल विकास में परिवर्तित कर दिया गया। एक प्रसिद्ध बाल मनोवैज्ञानिक तथा बाल विकास विशेष डॉ. एलिजाबेथ हरलॉक ने इस परिवर्तन के सन्दर्भ में अपने विचार प्रकट करते हुए लिखा है कि, ” विकास के कुछ पहलुओं की अपेक्षा बाल-विकास के सम्पूर्ण प्रतिमान तथा समस्त प्रक्रिया पर ध्यान केन्द्रित करने के साथ-साथ अब बाल मनोविज्ञान का नाम बाल विकास में परिवर्तित हो गया है। “
मानव या बाल विकास की विशेषताएँ / तत्व
मानव विकास की विशेषताओं को निम्नाकिंत के आधार पर प्रस्तुत किया जा सकता है-
(1) गर्भावस्था से परिपक्वावस्था तक बालक का अध्ययन करता (Child development is study of the child form his conception to maturity) – सामान्यतः आम लोगों की यह धारणा है कि बाल विकास का अध्ययन उसके जन्मकाल से बाल्यावस्था तक ही होता है किन्तु वास्तविकता में बाल विकास विषय के अर्न्तगत बालक का अध्ययन उसके गर्भाधान हो जाने से प्रारम्भ होकर परिपक्व होने तक चलता रहता है। इस प्रकार शिशु के माँ के गर्भ में आने से लेकर उसके परिपक्व हो जाने तक की अवस्था का अध्ययन करता है।
(2) बाल विकास बालक के शारीरिक विकास का अध्ययन करता है (Child development studies the physical development of the child) – प्रारम्भ में बाल मनोवैज्ञानिक एवं अन्य विद्वान बाल विकास के अर्न्तगत केवल बालक के मानसिक विकास के अध्ययन पर ही जोर देते थे, परन्तु आज बाल विकास के अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया है कि बाल जीवन के अध्ययन में बालक के मानसिक विकास का जितना महत्व है उतना ही महत्व बालक के शारीरिक विकास का भी है। अतः बाल जीवन के अध्ययन में इन दोनों में से किसी की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती है। अतः बाल मनोविज्ञान या बाल विकास, बालक की समस्त शारीरिक क्रिया की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन करता है।
(3) बाल विकास बालक के मानसिक विकास का अध्ययन करता है (Child development studies the mental development of the child) – बाल विकास बालक के मानसिक विकास के विभिन्न चरणों का अध्ययन करता है। इसके अन्तर्गत इस तथ्य का अध्ययन किया जाता है कि बालक में वृद्धि, मानसिक क्रिया तथा संवेगों का विकास किस प्रकार होता है। इनके अन्तर्गत ज्ञानात्मक एवं संवेगात्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं का समावेश होता है। इस तरह बाल विकास बालक के मानसिक विकास से सम्बन्धित समस्त क्रियाओं का अध्ययन करता है।
(4) बाल विकास का अध्ययन विकासात्मक दृष्टिकोण से किया जाता है। (Child development studies from the development point of view)- बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ जैसे-गर्भावस्था, शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, एवं प्रौढ़ावस्था आदि प्रमुख है; जो एक व्यक्ति के जीवन में क्रमानुसार एक के बाद एक आती हैं। इस प्रकार मानव विकास, बालक के शारीरिक एवं मानसिक विकास का अध्ययन विकासात्मक दृष्टिकोण से करता है।
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