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मानव विकास का महत्व एवं उपयोगिता (UTILITY AND IMPORTANCE OF HUMAN DEVELOPMENT)
बाल्यावस्था से सामान्यतः यह अभिशाप लगाया जाता है। कि जन्म से लेकर बारह वर्ष तक की अवस्था शैशव, पूर्व बाल्यकाल तथा उत्तर बाल्यकाल कहलाती है।
इसके सम्बन्ध में श्री लॉक महोदय का यह विचार है कि- “शिशु का मस्तिष्क एक कोरी स्लेट के समान होता , समाज जो चाहे इस पर लिख सकता है।”
महान शिक्षाशास्त्री रूसो की यह धारणा है कि जन्म के समय शिशु न तो सामाजिक होता है और न ही असामाजिक। वह पूर्णतः निर्दोष होता है। उसकी संगति जैसी होगी, वह वैसा ही बनेगा अर्थात् उनकी संगति उसके भावी व्यक्तित्व को निर्धारित करती है।
विभिन्न विद्वानों एवं मनोवैज्ञानिकों द्वारा बाल्यावस्था का महत्व स्वीकार करने से यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि बाल विकास का अध्ययन अत्यधिक महत्वपूर्ण है। संक्षेप में बाल विकास के महत्व को निम्नलिखित शीर्षकों के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं-
(1) व्यक्तित्व के सन्तुलित विकास के लिए (For balanced and harmonious development of personality) –
बालकों के व्यक्तित्व के सन्तुलित एवं सर्वांगीण विकास के लिए बाल विकास अत्यन्त महहत्वपूर्ण मार्गदशक है। बालक के विकास में परिवार, समाज तथा विद्यालय का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अत माता-पिता, अभिभावक तथा शिक्षक आदि बाल विकास की सहायता से बालक के सन्तुलित एवं सर्वागीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। व्यक्तित्व विकास में विभिन्न पहलुओं शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक, चारित्रिक एवं नैतिक आदि सभी का बाल विकास में अध्ययन किया जाता है।
(2) बालकों के आचार-विचार को समझने में (To understand the nature of children) –
बालकों के स्वस्थ विकास के लिए माता-पिता, अभिभावक, शिक्षक एवं चिकित्सक आदि के लिए बालक के स्वभाव को समझना बहुत ही आवश्यक है। बालक के स्वभाव, उनकी प्रकृति को समझकर ही उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इस प्रकार बालक के स्वभाव को समझने में बाल-विकास हमारी सहायता करता है।
(3) स्वास्थ्य विज्ञान एवं चिकित्सा के क्षेत्र में (In the field of mental hygiene and medicine)-
वर्तमान समय में मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान एवं चिकित्सा के क्षेत्र में बाल-विकास की उपयोगिता बहुत बढ़ गयी है। बालकों में पाये जाने वाले मानसिक वेग, मानसिक न्यूनता तथा कुसमायोजन आदि असामान्यताओं का निराकरण करने के लिए बाल विकास का अध्ययन बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है।
(4) निर्देशन के क्षेत्र में (In the field of guidance) –
वर्तमान युग में शिक्षा, व्यवसाय, मनोरंजन, स्वास्थ्य एवं नेतृत्व आदि विभिन्न क्षेत्रों में बालकों को निर्देशन देने की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। यदि रुचि एवं योग्यता के अनुसार शिक्षा तथा व्यवसाय आदि का चुनाव न किया जाये तो बालक को अनेक समस्याओं का सामना पड़ता है। बाल विकास बालक की रुचियों, अभिरुचियों, मानसिक योग्यताओं एवं बौद्धिक स्तर आदि को समझने में सहायता प्रदान करता है और इसका अध्ययन करके बालकों को उनकी मानसिक तथा शारीरिक योग्यताओं के अनुरूप ही शिक्षा के विषयों का चुनाव, व्यवसाय के क्षेत्र का चुनाव आदि से सम्बन्धित निर्देशन दिया जाता है।
(5) शिक्षा के क्षेत्र में (In the field of education) –
बाल-विकास की सहायता, शिक्षा के विभिन्न पहलुओं जैसे-शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम, अनुशासन तथा शिक्षक एवं विद्यालय आदि को निर्धारित तथा व्यवस्थित करने में ली जाती है। बालकों को कब और कैसे शिक्षित किया जाये, उन्हें शिक्षा के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक विकास के लिए कैसा वातावरण प्रदान किया जाये, कक्षा के अन्दर तथा बाहर किस प्रकार की गतिविधियाँ रखी जायें, जिससे बालक के व्यक्तिगत का सर्वागीण विकास हो सके आदि पक्षों की जानकारी बाल-विकास के अध्ययन द्वारा ही सम्भव है।
(6) खेलकूद एवं मनोरंजन के क्षेत्र में (In the field of play and recreation) –
आज के प्रतियोगी युग की दौड़ में बालकों पर प्रारम्भिक अवस्था से ही शिक्षा का बोझ लाद दिया जाता है। विद्यालयों में पढ़ाई के पश्चात् गृहकार्य बालकों के साथ-साथ माता-पिता को भी परेशान कर देता है। ऐसे में बालक की खेलने की नैसर्गिक प्रवृत्ति समाप्त होती जा रही है। दूसरी ओर दूरदर्शन की दुनिया में हुए क्रांतिकारी परिवर्तनों ने बच्चों को कमरे में कैद हो जाने पर बेबस कर दिया है। बालकों को शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ एवं अनुकूल केवल खेलकूद के द्वारा रखा जा सकता है। अतः खेलना बालक के लिए बहुत आवश्यक है। बालकों के खेल जीवन में खेल का महत्व बाल विकास के ज्ञान के द्वारा ही जाना जा सकता है।
(7) पारिवारिक जीवन को सुखी बनाने में (To make family life happy) –
प्रत्येक परिवार में बालक के पालन-पोषण सम्बन्धी, भिन्न-भिन्न प्रतिमान होते हैं तथा इनका प्रभाव बालक के व्यक्तित्व पर पड़ता है। बालकों के प्रति माता-पिता द्वारा अपनाई गयी अभिवृत्तियाँ माता-पिता और बच्चों के आपसी सम्बन्धों तथा बालकों के व्यक्तित्व का निर्धारण करती है। माता-पिता के आपसी सम्बन्धों का भी बालक पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जब परिवार में सभी सदस्यों के आपसी सम्बन्धों में मधुरता होगी, तो सम्पूर्ण परिवार का वातावरण आनंदमय होगा तथा पारिवारिक जीवन में सुख शांति रहेगी।
(8) बाल अपराध को रोकने में (Prevention of junvenile delinquency) –
माता-पिता, अभिभावक एवं शिक्षक आदि जिन बालकों को मारते-पीटते हैं या डॉट-डपट करते हैं, बालकों की रुचियों तथा इच्छाओं की पूर्ति की उपेक्षा करते हैं, उनमें अपराधी प्रवृत्तियों का विकास हो जाता है। अपराध बालक का जन्मजात स्वभाव नहीं होता वरन् परिवार, पड़ोस एवं मित्र आदि का बुरा वातावरण मिलने के कारण वे अपराध की ओर अग्रसर होते हैं। बालक की स्वाभाविक रुचियों, आवश्यकताओं, अभिवृतियों आदि के अनुसार यदि उनसे व्यवहार किया जाये तो उनमें अच्छे गुणों तथा अच्छी आदतों का विकास होता है। इस प्रकार बाल विकास का ज्ञान, बाल अपराध को रोकने में उपयोगी सिद्ध होता है।
(9) समाज तथा राष्ट्र की प्रगति एवं विश्व शांति में महत्व (Utility in the progress of society, nation and world peace) –
परिवार समाज की एवं समाज राष्ट्र की इकाई है। बाल विकास बालकों के सर्वागीण तथा सन्तुलित विकास करने में, उन्हें उचित शिक्षा एवं व्यवसाय प्राप्त करने में, पारिवारिक जीवन को सुखी बनाने आदि में अत्यन्त उपयोगी है। इन्ही सब बातों पर समाज तथा राष्ट्र की प्रगति पर निर्भर है, अतः यह कहना कोई अतिशोक्ति नहीं होगी, कि बाल विकास बालकों को समाज के योग्य सदस्य तथा राष्ट्र का कुशल नागरिक एवं नागरिक एवं कर्णधार बनाने में सहायता प्रदान करता है तथा ये कुशल नागरिक एवं कर्णधार समाज तथा राष्ट्र की उन्नति के आधारस्तम्भ हैं एवं ये सम्पूर्ण विश्व के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। अतः सभी देशों के भावी का विकास किया जाये कि वे भविष्य में ऐसे नागरिक बनें, जो अन्य देशों के नागरिकों से अच्छे सम्बन्ध स्थापित करें एवं मानवता की श्रेष्ठ भावना को अपनायें। ऐसा होने से विश्व-शांति एवं विश्व बन्धुत्व की कल्पना साकार हो उठेगी।
(10) न्याय के क्षेत्र में उपयोग (In the field of justice) –
बाल-विकास के अध्ययन के फलस्वरूप आजकल बालकों को अपराध करने पर कठोर दण्ड नहीं दिया जाता है। बल्कि उन्हें सुधारने के लिए प्रयत्न किये जाते हैं। आधुनिक समय में बालकों में अपराध-प्रवृति बढ़ती जा रही है, क्योंकि उनमें कुंठा, आक्रामकता आदि जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं। न्याय के क्षेत्र में बाल विकास इस प्रकार महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम बाल-अपराधों के कारणों का पता लगाया जाता है तथा कारण ज्ञात हो जाने पर उनके निराकरण का प्रयास किया जाता है। और यदि आवश्यक हुआ तो उन्हें सुधारगृह में भेज दिया जाता है, जहाँ सुधारने का प्रयास किया जाता है।
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