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मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 | Human Rights Protection Act 1993 in Hindi

मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 | Human Rights Protection Act 1993 in Hindi
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 | Human Rights Protection Act 1993 in Hindi

मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 | Human Rights Protection Act 1993

यद्यपि मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 का भारत में पारित होना एक ऐतिहासिक घटना है परन्तु अनेक कमियों के कारण इस अधिनियम की समय-समय पर आलोचना भी होती रहती है। इस अधिनियम की आलोचना के प्रमुख बिन्दु निम्न हैं-

(1) राष्ट्रीय मानव अधिकार कमीशन की स्वायत्तता एवं क्षमता के बारे में कई बार अस्पष्टतायें हैं। अपनी पहली वार्षिक रिपोर्ट जो 31 मार्च, 1994 की अवधि तक के लिऐ थी, कमीशन ने संस्तुति दी थी कि अधिनियम की धाराओं 2 (1) (घ) तथा 2 (1) (च), 11 (ख) तथा 11 (2) (धारा 32 के साथ साथ) धारा 13 (1), धाराओं 18, 30, एवं 36 में संशोधन करके कमीशन की क्षमता एवं स्वायत्तता के बारे में अस्पष्टतायें एवं अवरोधों को हटाया जाय। कमीशन ने 1994-1995 वर्ष की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में दुबारा उक्त संस्तुतियों का उल्लेख किया। कमीशन ने खेद प्रकट किया कि संस्तुतियों को कार्यान्वित करने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की गयी तथा प्रार्थना की कि बिना विलम्ब इन्हें कार्यान्वित करने की कार्यवाही की जाय। दुर्भाग्यवश यह भी सरकार को इस सम्बन्ध में उसको गहरी निन्द से जगा नहीं पायी। सरकार का यह रवैया देश में मानव अधिकारों के उचित पालन एवं संरक्षण के लिए साधक एवं हितकारी नहीं है। राष्ट्रीय मानव अधिकार कमीशन ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए०एम० अहमदी की अध्यक्षता में मानव अधिकार संरक्षण, 1993 में पुनरीक्षण हेतु सुझाव देने के एक सलाहकारी समिति स्थापित की थी।

(2) अधिनियम की धारा 2 (घ) में “मानव अधिकारों” की परिभाषा बड़ी संकीर्ण है। मानव अधिकारों को केवल व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं गरिमा से सम्बन्धित अधिकारों तक सीमित करना उचित नहीं है यद्यपि यह अधिकार महत्वपूर्ण मूल अधिकार हैं।

(3) अधिनियम की एक गम्भीर त्रुटि यह है कि राज्य मानव अधिकार कमीशनों की स्थापना को आदेशात्मक एवं अनिवार्य नहीं बताया गया है। इस त्रुटि को शीघ्र दूर किया जाना चाहिये।

(4) अधिनियम में प्रत्येक जिले में मानव अधिकार न्यायालय की अधिकारिता को अधनियम में स्पष्ट नहीं किया गया है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि जब ऐसे न्यायालयों में मानव अधिकारों के उल्लंघन के मुकदमे चलाये तो क्या प्रक्रिया अपनायी जायेगी।

(5) इस बात की आलोचना की गयी है कि राष्ट्रीय मानव अधिकार कमीशन (NHRC) के पास अनुशास्ति का सर्वथा अभाव है। यद्यपि कमीशन को मानव अधिकारों के संरक्षण एवं अनुपालन का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है, इसे दी गयी शक्तियाँ समुचित नहीं है। इसे बाध्यकारी निर्णय लेने की शक्ति प्राप्त नहीं है। यद्यपि कमीशन यह निष्कर्ष निकालती है कि मानव अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, इसे बाध्यकारी निर्णय देने का अधिकार नहीं है। यह केवल संस्तुति दे सकती है। यह केवल सरकार को संस्तुति दे सकती है कि अभियोजन या अन्य कार्यवाही प्रारम्भ की जाय या यह उच्चतम न्यायालय से ऐसे निदेशों, आदेशों या रिटों के लिए प्रार्थना कर सकती है। कमीशन यह भी संस्तुति दे सकती है कि मानव अधिकार के उल्लंघन के शिकार या पीड़ित व्यक्ति को उसके परिवार को कुछ अन्तरिम अनुतोष प्रदान किया जाय। सरकार कमीशन की संस्तुतियों को मानने को बाध्य नहीं है। वह संस्तुतियों को वैसे ही या कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार कर सकती है। यदि सरकार वास्तव में देश में मानव अधिकारों के संरक्षण एवं अनुपालन के विषय में गम्भीर है तो उसे कमीशन को अनुशास्तियों एवं वास्तविक शक्ति देकर उसे एक प्रभावी एवं उपयोग निकाय या संस्था बनाना चाहिए।

(6) राष्ट्रीय मानव अधिकार कमीशन के पास कोई स्वतन्त्र एवं पृथक खोजबीन एजेन्सी नहीं है तथा इसके लिए इसके सरकारी अधिकारियों एवं खोजबीन एजेन्सी पर निर्भर रहना पड़ता है तथा इन्हें भी वह केन्द्रीय या राज्य सरकार जैसे मामला हो, की सहमति से ही प्राप्त कर सकती है।

यद्यपि अधिनियम में उपर्युक्त कमियाँ एवं दुर्बलतायें हैं, यह कहना अनुचित होगा कि इनके कारण अधिनियम पारित करना एक निरर्थक प्रयास सिद्ध हुआ है। उपर्युक्त वर्णित कमियों एवं दुर्बलताओं के बावजूद, राष्ट्रीय मानव अधिकार कमीशन ने थोड़े समय में ही प्रशंसनीय कार्य किया है। इसने कुछ मामलों में, विशेषकर हिरासत में होने वाली हिंसा एवं मृत्यु, बलात्कार, यंत्रणा, पुलिस द्वारा झूठे मुठभेड़ तथा पुलिस ज्यादतियों आदि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि अधिनियम में उपर्युक्त संशोधन करके इसकी कमियों, त्रुटियों एवं दुर्बलताओं को दूर किया जाना चाहिए जिससे मानव अधिकारों के संरक्षण एवं अनुपालन की व्यवस्था को सशक्त बनाया जा सके। यदि मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की उपर्युक्त दुर्बलताओं, कमियों एवं त्रुटियों को दूर कर दिया जाय तो यह अधिनियम देश के मानव अधिकारों के संरक्षण एवं अनुपालन के लिए एक आदर्श अधिनियम बन सकता है।

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Anjali Yadav

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