युद्ध के प्रभाव
युद्ध के प्रभाव निम्नलिखित हैं-
1. राजनयिक सम्बन्धों पर प्रभाव- युद्ध आरम्भ होने का सबसे पहला प्रभाव राजनयिक सम्बन्धों पर पड़ता है। जिन देशों के बीच युद्ध छिड़ता है उनके राजदूतों को स्वदेश लौट जाने के लिये कहा जाता है। यह व्यवस्था की जाती है कि राजदूतों को स्वदेश पहुँचने में किसी प्रकार का खतरा न हो। जब तक वे स्वदेश नहीं पहुँच जाते तब तक उनको राजनयिक विशेषाधिकारों का उपयोग करने का भी अधिकार रहता है। राजदूतों के चले जाने पर उनके दूतावास किसी तटस्थ देश को सौंप दिये जाते हैं और उनके कागज पत्रों को मुहरबन्द कर दिया जाता है, ताकि उनका रहस्योद्घाटन न हो। राजनयिक दूतों के अतिरिक्त वाणिज्य दूतों से भी सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया जाता है।
2. व्यापारिक सम्बन्धों पर प्रभाव – युद्ध छिड़ने पर युद्धरत राष्ट्रों के व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त हो जाते हैं। यदि पूरी तरह से समाप्त नहीं होते तो कम से कम युद्ध काल तक के लिये स्थगित तो अवश्य हो जाते हैं। यदि युद्ध के दौरान में योद्धा राष्ट्रों के बीच व्यापार की आवश्यकता पड़ती है तो उसके लिये विशेष व्यवस्था की जाती है और इस प्रकार की गई व्यवस्था के अतिरिक्त अन्य प्रकार के व्यापार को निषिद्ध कर दिया जाता है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान में इंग्लैण्ड की सरकार ने पास करके शत्रु देशों के साथ व्यापार करने की विशेष अनुमति प्रदान की थी। इस अधिनियम में की गई व्यवस्थाओं के अतिरिक्त और सभी प्रकार के हर को निषिद्ध कर दिया गया था। इस प्रकार का कानून यू.एस. भी बनाया था। वहाँ भी शत्रु देशों के साथ सम्पूर्ण व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त कर दिये गये थे। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि युद्ध के दौरान में प्रायः सभी युद्धरत देश आपसी व्यापार को निषिद्ध कर देते हैं।
3. ॠण पर प्रभाव – युद्ध का ऋणों पर भी प्रभाव पड़ता है। युद्ध छिड़ने पर ऋणदाता राज्य का अधिकार सदा के लिये समाप्त नहीं हो जाता। युद्ध के बाद शान्ति स्थापित हो जाने के पश्चात् ऋणदाता राज्य ऋणी राज्य से भुगतान लेने का हकदार हो जाता है। युद्ध के दौरान में किये गये ऋण भुगतान के लिये ऋणी राज्य को बाध्य नहीं किया जाता।
4. समझौते पर प्रभाव – योद्धा राष्ट्रों के बाध्य राजनयिक और व्यापारिक सम्बन्धों के समाप्त हो जाने का परिणाम यह होता है कि इन राज्यों के नागरिकों, कम्पनियों, निगमों आदि द्वारा किये गये आपसी समझौते भी भंग हो जाते हैं। योद्धा राष्ट्रों के व्यक्तियों अथवा कम्पनियों के बीच साझेदारी के समझौते भी टूट जाते हैं। इस संदर्भ में हॉल का कहना है, “युद्ध का प्रभाव केवल युद्धग्रस्त देशा के लोगों के अनुबन्धों पर ही नहीं पड़ता वरन तटस्थ दो के नागरकि तथा युद्धग्रस्त देश के पक्ष में नागरिकों के बीच होने वाले अनुबन्धों पर भी युद्ध का प्रभाव पड़ता है।” फेनविक के अनुसार, ” युद्ध से पूर्व हुए अनुबन्ध या तो समाप्त हो जाते हैं या युद्धकाल तक के लिये स्थगित हो जाते हैं।” युद्ध से कुछ समय पहले किये गये समझौते को यदि तोड़ दिया जाये तो उनके विषय में कोई न्यायिक कार्यवाही युद्ध के दौरान में नहीं की जाती। लेकिन युद्ध के पश्चात् इस प्रकार की कार्यवाही की जा सकती है। युद्ध के छिड़ने का फर्मों आदि पर भी प्रभाव पड़ता है। परस्पर विरोधी राज्यों में यदि एक दूसरे की फर्म हों तो उन पर दूसरे राज्य का अधिकार हो जाता है।
5. शत्रु राज्य के व्यक्तियों पर प्रभाव – युद्ध छिड़ने पर अपने देश में शत्रु देश के व्यक्तियों के साथ शान्तिकाल का-सा व्यवहार नहीं किया जाता। शत्रु देश के जिन व्यक्तियों से यह सम्भावना हो जाती है कि वे उस देश से सम्बन्धित सूचना शत्रु देश को दे रहे हैं, तो उनको बन्दी बना लिया जाता है। इसके अतिरिक्त शत्रु देश के जिन व्यक्तियों पर इस प्रकार का कोई संदेह नहीं होता उनको एक निश्चित समय के अन्दर देश छोड़ देने का आदेश दिया जाता है। प्रथम एवं द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान शत्रु देश के निवासियों को नजरबन्द किया गया था। सन् 1949 के जेनेवा सम्मेलन में यह निश्चय किया गया कि युद्ध आरम्भ होन पर अथवा युद्ध काल में शत्रु में देश में नागरिकों को अपनी इच्छानुसार अपने देश वापस जाने का इस शर्त पर अधिकार होना चाहिये कि उनका जाना राज्य के हितों के प्रतिकूल न हों।
6. शत्रु देश में योद्धा सम्पत्ति पर प्रभाव – कुछ समय पहले यह प्रथा प्रचलित थी. कि युद्ध छिड़ने पर अपने-अपने देश में शत्रु की सभी प्रकार की सम्पत्ति को जब्त कर लिया जाये लेकिन धीरे-धीरे इस प्रथा का अन्त हो गया। अब अपने देश में शत्रु की वैयक्तिक सम्पत्ति को जब्त नहीं किया जाता और न ही उसके ऋणों को समाप्त किया जाता है। युद्ध के दौरान में अचल सम्पत्ति को युद्ध के कार्यों के लिये जब्त किया जाता है लेकिन किसी भी राज्य को इस बात का अधिकार नहीं है कि वह शत्रु की वैयक्तिक सम्पत्ति पर अपना अधिकार स्थापित कर ले। शत्रु राज्यों के जहाजों के विषय में अन्तर्राष्ट्रीय कानून में विशेष व्यवस्था की गयी है। यह कहा गया है कि शत्रु राज्य के व्यापारिक जहाजों को युद्ध के हितों में कोई योद्धा राज्य, यदि वे खुले समुद्र में हों, अधिकृत कर सकता है।
7. सन्धियों पर प्रभाव – युद्ध का सन्धियों पर क्या प्रभाव पड़ता है यह अत्यन्त विवादास्पद विषय है। कुछ विद्वानों का यह मत हे कि युद्ध छिड़ने पर योद्धा राष्ट्रों के मध्य सभी प्रकार की सन्धियाँ समाप्त हो जाती है। इसके विपरीत कुछ विद्वानों का कहना है कि युद्धारम्भ से सभी सन्धियाँ समाप्त नहीं होती।
वस्तु स्थिति यह है कि युद्ध का सब प्रकार की सन्धियों पर एक-सा प्रभाव नहीं पड़ता है। कुछ सन्वियाँ तो युद्ध के दौरान में समाप्त हो जाती है, लेकिन कुछ सन्धियाँ ऐसी भी होती हैं जो युद्ध के दौरान में केवल स्थगित होती है। युद्ध काल में जो सन्धियाँ स्थगित हो जाती हैं, वे शान्ति की स्थापना के पश्चात् पुनः अवतरित हो जाती है।
प्रो. स्टार्क के मतानुसार इस बात का निश्चय करने के लिये कि युद्ध छिड़ जाने पर कोई सन्धि चलती रहेगी या रद्द हो जायेगी, सन्धि के उद्देश्यों को देखना आवश्यक होता है। यदि सन्धि करते समय सन्धि कर्ता राष्ट्रों में यह समझौता हो जाता है कि युद्ध छिड़ने पर भी सन्धि मान्य रहेगी, तो वह युद्धारम्भ के पश्चात् भी चलती रहती है। यदि इस प्रकार का कोई समझौता पहले नहीं हो जाता, तो सन्धि रद्द हो जाती है।
दूसरे यदि कोई सन्धि युद्ध चलते हुए भी बनी रह सकती है, अर्थात् उसका बना रहना युद्ध के साथ संगत होता है, तो उस पर युद्धारम्भ का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और वह पहले की भाँति ही विद्यमान रहती है।
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