राजनीति विज्ञान / Political Science

राजनयिक उन्मुक्तियों के आधार | Basic of Diplomatic Immunities in Hindi

राजनयिक उन्मुक्तियों के आधार | Basic of Diplomatic Immunities in Hindi
राजनयिक उन्मुक्तियों के आधार | Basic of Diplomatic Immunities in Hindi

राजनयिक प्रतिनिधियों की उन्मक्तियों एवं विशेषाधिकारों का क्या आधार है? राजनयिक प्रतिनिधियों की मुख्य उनमुक्तियों एवं विशेषाधिकारों का वर्णन कीजिए।

परिभाषा – “राजनीतिक अभिकर्ता ऐसे राजदूत होते हैं जो विदेश में राज्य के प्रतिनिधि की हैसियत से रहते हैं और जिनका मुख्य उद्देश्य अपने राज्य के राजनीतिक स्वत्वों की रक्षा करना होता है। ”

राजनयिक उन्मुक्तियों के आधार (Basic of Diplomatic Immunities)

राजनयिक अभिकर्ताओं को अन्तर्राष्ट्रीय विधि के द्वारा उन्मुक्तियाँ प्रदान की जाती हैं। उनको दी जाने वाली उन्मुक्तियों के आधार के सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायविदों के मत भिन्न-भिन्न हैं। उनके मत में विभिन्नता के कारण तीन विभिन्न सिद्धान्तों का विकास हुआ, जो निम्न प्रकार है

(1) बाह्य राज्यक्षेत्रीय सिद्धान्त (Extra-territorial Theory) – इस सिद्धान्त के अनुसार, राजनयिक अभिकर्ता उस राज्य की राज्यक्षेत्रीय अधिकारिता के अन्तर्गत नहीं आते, जिसमें वे भेजे जाते हैं। बल्कि उन्हें सदैव प्रेषक राज्य की राज्यक्षेत्रीय के अन्तर्गत होना माना जाता है। ग्रोशियस इस मत के थे कि राजनयिक अभिकर्ताओं की बाह्य राज्यक्षेत्रीय का तात्पर्य है कि यद्यपि वे शारीरिक रूप से उस राज्य में रहते थे, जिसमें वे भेजे जाते हैं, फिर भी ऐसा समझा जाता है कि सभी प्रयोजनों के लिए वह उस राज्य में रहते हैं, जिसका वे प्रतिनिधित्व करते हैं। इस सिद्धान्त को काल्पनिक सिद्धान्त (fictional theory) भी कहा जाता है क्योंकि बाह्य राज्यक्षेत्रीय मात्र कल्पना पर आधारित है। बाह्य राज्यक्षेत्रीयता के सिद्धान्त को उन्नीसवीं शताब्दी के कई लेखकों द्वारा स्वीकार किया गया था किन्तु, इस सिद्धान्त को आधुनिक न्यायविदों द्वारा अमान्य कर दिया गया है। इनके अनुसार, राजनयिक अभिकर्ताओं को उन्मुक्तियाँ और विशेषाधिकार प्रदान करने का आधार बाह्य राज्यक्षेत्रीयता नहीं है। यह कल्पना है और अधिकतर विधिक कल्पनाओं की तरह, इसकी भी सीमित उपयोगिता है। विभिन्न राष्ट्रीय न्यायालयों के विनिश्चयों ने भी इस सिद्धान्त को अमान्य कर दिया है।

(2) प्रतिनिधित्वात्मक सिद्धान्त (Representational Theory) – इस सिद्धान्त के अनुसार, राजनयिक अभिकर्ता को प्रेषक राज्य के राज्य प्रमुख का अभिकर्ता या व्यक्तिगत प्रतिनिधि माना जाता है। इसलिए, इन्हें वही विशेषाधिकार प्रदान किया जाता है, जो राज्य प्रमुख को प्रदान किया जाता है। यह सिद्धान्त 1815 के वियना कांग्रेस में राजनयिकों की श्रेणी से सम्बन्धित विनियमों में शामिल किया गया था। लेकिन इस सिद्धान्त की इस आधार पर आलोचना की जाती है कि किसी भी तरह से राजनयिक अभिकर्ताओं को राज्य प्रमुख की उन्मुक्तियों को प्रदान करना तर्क संगत नहीं है। इसलिए न्यायालयों ने प्रभुसत्ताधारी तथा राजनयिक उन्मुक्तियों के बीच समानता को स्वीकार नहीं किया है।

(3) कार्यात्मक सिद्धान्त (Functional Theory) – इस सिद्धान्त के अनुसार राजनयिक अभिकर्ताओं को उन्मुक्तियों तथा विशेषाधिकार उनके कार्यों की प्रकृति के कारण दिया जाता है। जिन कार्यों के अनुपालन की अपेक्षा राजनयिक अभिकर्ताओं से की जाती है, वे विशेष ही नहीं वरन् काफी कठिन भी हैं। दूसरे शब्दों में, उनका कार्य विशिष्ट (Typical) प्रकृति का होता है। जिस राज्य में उन्हें भेजा जाता है उस राज्य की विधिक तथा अन्य प्रक्रियाओं से उन्मुक्तियाँ इसलिए दी जाती है, जिससे से स्वतन्त्रतापूर्वक अपने कार्य को कर सकें। जिन विशेष कार्यों के अनुपालन की अपेक्षा राजनयिक अभिकर्ताओं से की जाती है, उसके लिए उन्मुक्तियाँ तथा विशेषाधिकार प्रदान करना आवश्यक होता है। यदि उन्हें उन्मुक्तियाँ नहीं प्रदान की जाती हैं अर्थात् यदि उन्हें उनके कार्यों में स्थानीय प्रशासन द्वारा मध्यक्षेप किया जाता है, तो उनके लिए • अपने कार्यों का निष्पादन करना असम्भव हो जाएगा। इस प्रकार कार्यात्मक सिद्धान्त व्यावहारिक आवश्यकता पर आधारित है।

निष्कर्ष – यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बाह्य राज्यक्षेत्रीय सिद्धान्त को सभी प्रयोजनों के लिए अमान्य किया जाता है। फिर भी राजनयिक अभिकर्ताओं को उन्मुक्तियाँ अनन्य रूप से कार्यात्मक सिद्धान्त के कारण ही नहीं प्रदान की जार्ती। उन्मुक्तियाँ प्रदान करने का आधार पर प्रतिनिधित्वात्मक सिद्धान्त तथा कार्यात्मक सिद्धान्त दोनों ही है। वियना अभिसमय की उद्देशिका इन दोनों सिद्धान्तों को निर्दिष्ट करती है। स्टार्क ने उचित ही कहा है कि राजनयिक अभिकर्ताओं की उन्मुक्तियाँ तथा विशेषाधिकार प्राथमिक रूप से राजनयिक मिशनों के कर्तव्यों के दक्षतापूर्ण

पालन को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर तथा दूसरे इस सिद्धान्त पर आधारित है कि राजनयिक मिशन प्रेषक राज्य का प्रतिनिधित्व करता है। विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ- राजनीतिक दूतों को कुछ विशेषाधिकार, उन्मुक्तियाँ एवं छूटें उपलब्ध होती है, ये उन्मुक्तियाँ निम्नलिखित हैं

1. व्यक्तिगत सुरक्षा – राजनयिक प्रतिनिधि को राज्याध्यक्ष के समकक्ष सुरक्षित माना जाता है और उसके शरीर को विदेश में वही आदर एवं सम्मान सुरक्षा मिलती है जो कि राज्याध्यक्ष को प्रदान की जाती है। यदि वह विदेश में जहाँ पर कि वह राजनयिक, प्रतिनिधि को हैसियत से नियुक्त है, वहाँ की सरकार का तख्ता पलटने का प्रयत्न करता है तो उसके गिरफ्तार करके स्वदेश लौटाया जा सकता है। सन् 1718 में फ्रांस में नियुक्त स्पेन के राजदूत को गिरफ्तार किया था क्योंकि उसने फ्रांस की सरकार के विरुद्ध षड्यन्त्र में भाग लिया था। वर्तमान समय में राजनयिक प्रतिनिधियों को उन्मुक्ति वियना सन्धि 1961 के अनुच्छेद 29 के अन्तर्गत दी जाती है।

2. अपराधी क्षेत्राधिकार से उन्मुक्ति – राजनयिक प्रतिनिधियों को उस देश के अपराधी क्षेत्राधिकार से उन्मुक्ति प्राप्त होती है जिसमें वे इस हैसियत से भेजे जाते हैं। यदि उसके विरुद्ध न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया जाता है तो उसका केवल यह बताना ही पर्याप्त है कि वह उसके क्षेत्राधिकार से मुक्त है। परन्तु यदि ऐसा प्रतिनिधि स्वयं चाहे तो वह अभिव्यक्त रूप से उन्मुक्ति को त्याग करके न्यालय में प्रस्तुत हो सकता है।

3. दीवानी क्षेत्राधिकार से उन्मुक्ति- राजनयिक प्रतिनिधि उस देश के न्यायालय के दीवानी क्षेत्राधिकार से मुक्त होते हैं जिस देश में वे प्रतिनिधि की हैसियत से नियुक्त किये जाते हैं। पर यदि प्रतिनिधि स्वयं ही उस उन्मुक्ति का त्याग करना चाहे तो वह ऐसा कर सकता है।

4. साक्षी के रूप में उन्मुक्ति – किसी भी राजनयिक दूत को जिस देश में वह इस हैसियत से नियुक्त है, उस देश के न्यायालयों के समक्ष साक्षी के रूप में प्रस्तुत होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता परन्तु यदि प्रतिनिधि स्वयं ही उस उन्मुक्ति का त्याग करके न्यायालय में देने के लिए उपस्थित होना चाहे तो वह साक्ष्य दे सकता है।

5. पूजन का अधिकार – साक्ष्य राजनयिक प्रतिनिधियों को यह अधिकार होता है कि ये चाहे जिस धार्मिक रीति से पूजा कर सकते हैं। उन्हें अपने धार्मिक उत्सवों आदि को भी मनाने की स्वतन्त्रता होती है।

6. सूचना भेजने व प्राप्त करने की स्वतन्त्रता – राजनयिक दूतों को अपने देश में सूचना भेजने तथा वहाँ सूचना मँगाने की स्वतन्त्रता होती है। उसके पत्रों, तारों व अन्य सूचना को मार्ग में खोलकर नहीं देखा जा सकता है। अर्थात् उसका निरीक्षण नहीं किया जा सकता।

7. करों से छूट – राजनयिक दूतों को विभिन्न करों से छूट होती है। वे उन करों को देने के लिए बाध्य नहीं किये जा सकते जिनका वर्णन वियना सन्धि, 1961 के अनुच्छेद 34 से 36 में किया गया है। परन्तु जो सुविधायें न राज्यों द्वारा प्रदान की जाती है जहाँ वे इस हैसियत से रह रहे हैं कि उन सुविधाओं से सम्बन्धित करों की कोई व्यवस्था वियना सन्धि में नहीं है अर्थात् ये कर लिये भी जा सकते है और नहीं भी। यह निर्भर उस राज्य पर करता है कि वे राजनयिकों को ऐसी छूट दें या नहीं।

8. अनुयायी वर्ग सम्बन्धित उन्मुक्तियाँ – जो व्यक्ति राजनयिक प्रतिनिधि के आवश्यक सहायकों के अन्तर्गत आते हैं उनको भी आपराधिक तथा दीवानी उन्मुक्तियाँ इस कारण प्रदान की जाती है कि वे अपने कर्तव्यों को निर्भयतापूर्वक तथा बिना किसी प्रकार के हस्तक्षेप के कर सकें। राजनयिक दूतों को सम्बन्धियों के जो कि उसी के साथ रह रहें हो, दीवानी तथा फौजदारी क्षेत्राधिकार से उन्मुक्ति रहती है।

राजनयिक दूतों के निजी नौकरों को उन्मुक्ति के विषय में कोई सुनिश्चित नियम नहीं है। कुछ विद्वानों का मानना है कि इन नौकरों को पूर्ण दीवानी उन्मुक्ति प्राप्त होती है। यह फौजदारी उन्मुक्ति असीमित न होकर सीमित होती है। इसी तरह कुछ का मानना है कि जो नौकर राजदूतों के साथ उनके अपने देश से आये होते हैं, उन्हें ये उन्मुक्तियाँ प्राप्त होती हैं, अन्य नौकरों को नहीं।

9. पुलिस के क्षेत्राधिकार से उन्मुक्ति – राजनयिक दूतों को जिस देश में वे इस हैसियत से भेजे गये हैं, वहाँ की पुलिस के क्षेत्राधिकार से भी छूट प्राप्त होती है उनको परन्तु स्थानीय पुलिस के आदेशों को पालन करना आवश्यक है।

10. भ्रमण करने का अधिकार – वियना सुन्धि, 1961 के अनुच्छेद 26 के अनुसार राजनयिक दूतों को स्वतन्त्र रूप से भ्रमण करने का अधिकार होता है, परन्तु वे उस क्षेत्र में नहीं जा सकते जिन्हें राज्य सरकार ने प्रतिबन्धित घोषित किया हो अथवा जो सुरक्षा की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान हो।

11. आवास सम्बन्धी उन्मुक्ति – राजदूत का आवास भी उस देश के स्थानीय क्षेत्राधिकार से उन्मुक्त माना जाता है जहाँ कि वह स्थित होता है।

12. स्थानीय एवं मिलिटरी बाध्यताओं से उन्मुक्ति – राजनयिक दूत स्थानीय तथा मिलिटरी बाध्यताओं से उन्मुक्त होते हैं। इस सम्बन्ध में वियना सन्धि (Vianna Convention on Diplomatic Relations, 1961) के अनुच्छेद 35 में दिये गये हैं।

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Anjali Yadav

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