राष्ट्रीय साक्षरता मिशन से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन “राष्ट्रीय साक्षरता मिशन” की स्थापना 5 मई, 1988 को की गई थी यह मिशन भारत में निरक्षरता उन्मूलन के लिए किये जाने वाले प्रयासों की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। इसकी स्थापना के बाद देश में साक्षरता की गति में पर्याप्त तेजी आ गई थी। यह इस तेजी का ही प्रभाव था कि सन् 2011 की जनगणना में भारत में साक्षरता का जो प्रतिशत पहले की तुलना में पर्याप्त अधिक प्रदर्शित किया गया हैं। 1991 में साक्षरता का जो प्रतिशत 52.21 था, वह 2011 में बढ़कर 74.04 हो गया। पुरुषों और स्त्रियों की साक्षरता वृद्धि का अध्ययन करे तो इसे निम्न रूप में प्रदर्शित किया जा सकता हैं।
लिंग | साक्षरता 1991 | साक्षरता 2001 | साक्षरता 2011 |
पुरुष | 64.1 | 75.8 | 82.14 |
महिला | 39.3 | 54.16 | 65.46 |
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना के बाद ही केरल में पूर्ण साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया। इस मिशन के द्वारा अब तक लगभग नौ करोड़ व्यक्तियों का साक्षर बनाया जा चुका हैं। तथा इसके कार्यक्रम देश के 561 जिलों में संचालित हो रहे हैं। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के इण्डिया, 2002 के प्रकाशन के अनुसार उक्त जिलों में से 166 में पूर्ण साक्षरता अभियान चलाया गया तथा इसके साथ 105 जिलों का चयन सतत् शिक्षा कार्यक्रम के लिए किया गया हैं। उक्त के साथ 290 जिलों में उत्तर साक्षरता कार्यक्रम भी चलाया गया हैं। इस प्रकार से उक्त विवरण के आधार पर कम से कम आंकड़ों के रूप में यह निश्चित रूप से कहा जा सकता हैं कि राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के द्वारा देश में निरक्षर व्यक्तियों को साक्षर बनाने में पर्याप्त प्रगति की गई हैं।
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राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के उद्देश्य
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) सतत शिक्षा योजना की सम्पूर्ण सफलता के लिए साक्षरता कार्यक्रमों प्राप्त करना तथा लोगो को लक्ष्य सतत् अधिगम प्रदान करना।
(2) नव साक्षर लोगों को आगे अधिगम के अवसर उपलब्ध कराने के लिए अनवरत शिक्षा के केन्द्रों की स्थापना करना ।
(3) मूल साक्षरता, साक्षरता कौशल में सुधार, वैकल्पिक शिक्षा कार्यक्रमों और व्यावसायिक कौशल की खोज करना ।
(4) सामाजिक और पेशागत विकास के प्रोत्साहन के लिए क्षेत्रीय मांग की जरूरत अनुसार अवसर उपलब्ध कराना।
(5) विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम चलाना; जैसे-प्रतिभागियों में व्यावसायिक कौशल बढ़ाना, अन्य उत्पादक गतिविधियाँ शुरू करना, सहयोग प्रदान करने वाला सामतुल्य कार्यक्रम, जीवन गुणवत्ता कार्यक्रम, नये लोगों का जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिए आवश्यक ज्ञान, ऐसा दृष्टिकोण जिससे कौशल प्राप्त कर सकें, आदि।
उपर्युक्त उद्देश्यों के अतिरिक्त दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / महिलाओं तथा वहाँ के लोगों को आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विशेष साक्षरता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं सतत शिक्षा कार्यक्रम के अन्तर्गत अब तक लगभग 400 जिले सम्मिलित किए जा चुके हैं।
निरक्षरता उन्मूलन कार्यक्रम
(1) अनिवार्य निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था शिक्षा का प्रारम्भ सही उम्र में ही होना चाहिए। बचपन की उम्र शिक्षा के लिए सबसे उपयुक्त हैं। अतः सभी बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 1 से 5 तक) अनिवार्य बना देनी चाहिए। शिक्षा सिर्फ अनिवार्य ही नहीं निःशुल्क भी हो। भारत जैसे गरीब देश में जहाँ लोगों का पास खाने को पैसे नहीं हैं वे फीस, ड्रेस, किताबों व कापियों का खर्च नहीं उठा सकते हैं। अतः यदि बच्चों को प्राथमिक शिक्षा की ओर आकर्षित करना हैं, तो यह शिक्षा निःशुल्क भी होनी चाहिए।
(2) मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था भारत जैसे देश में अभी भी अनेक लोग गरीबी रेखा से भी नीचे रह रहे हैं। उनके साथ शिक्षा की बात भी करना बेमानी हैं। अतः यदि सभी बच्चों को शिक्षा की परिधि में लाना हैं, तो मुफ्त कॉपी-किताब, फीस, ड्रेस के साथ मुफ्त भोजन की व्यवस्था भी करनी होगी। दोपहर में बच्चों को सरकार की ओर से भोजन की व्यवस्था शिक्षा प्रक्रिया को आकर्षक बना देगी। खाने के लालच में ही माँ-बाप अपने बच्चों को विद्यालय भेजेंगे।
(3) प्रौढ़ो की शिक्षा की व्यवस्था निरक्षरता की समस्या जितनी बालको का साथ हैं। उससे कही ज्यादा प्रौढ़ो के साथ हैं। वे व्यक्ति जो पढ़ने की उम्र में किसी कारण से पढ़ पाये हो निरक्षर प्रौढ़ कहलाते हैं। उन्हें पढ़ने की इच्छा होने पर भी विद्यालय जाना उचित नहीं लगता। अतः उनके लिए प्रौढ़ विद्यालयों की स्थापना की जाये।
(4) साक्षरता शिवरों का आयोजन निरक्षरता उन्मूलन तभी सम्भव हो सकता हैं जब इसे एक राष्ट्रीय आन्दोलन के रूप में लिया जाये । इस प्रक्रिया में सरकारी प्रयासों के अलावा गैर-संगठनों की भी महती भूमिका होनी चाहिए। सरकारी संस्थाएँ या स्वयसेवी संस्थाए ग्रामीण या शहरी क्षेत्रों में समय-समय पर कुछ दिवसों के लिए साक्षरता शिवरों का आयोजन कर सकती हैं। इन शिवरों में कार्यकर्ता न सिर्फ निरक्षरों को साक्षर बनायें बल्कि उन्हें पढ़ने-लिखने की सामग्री निःशुल्क वितरित कर स्वंय पढ़ने के लिए प्रेरित करे। जिस क्षेत्र में शिविर लगाया गया हैं वहाँ के लोगों के अनुरूप मनोरंजन की व्यवस्था भी इन शिवरों में ही की जानी चाहिए। यथा गाँव में यदि प्रौढ़ो के लिए शिविर हो तो नाटक, नौटंकी, भजन, कीर्तन, आदि की व्यवस्था हो। बच्चों के लिए शिविर में खेल-कूद व मनोरंज साधनों की व्यवस्था हो । इन शिवरों में कार्यक्रमों के रूप में शिक्षक व छात्र भी जा सकते हैं।
(5) स्वयंसेवी संस्थाओं का महत्त्व निरक्षरता उन्मूलन का कार्यक्रम बिना सामाजिक सहभागिता के सफल नहीं हो सकता हैं। स्वयंसेवी संस्थाएँ यदि पहल करें, तो वे एक विशेष गाँव या शहरी क्षेत्र का अपना कार्यस्थल बना सकती हैं। वे तब तक उस स्थल को अपने संरक्षण में रखती हैं, जब तक वह साक्षर न हो जाये। फिर उस स्थान के ही किसी कार्यकर्त्ता को अपना प्रतिनिधि बनाकर जनसहयोग से साक्षरता कार्यक्रम को जीवित रखती हैं। आवश्यकता पड़ने पर पुनः संरक्षण के लिए प्रस्तुत हो जाती हैं। इससे लोगों में आत्मविश्वास आता हैं और साक्षरता अभियान का वास्तविक उद्देश्य शिक्षित बनने की प्रेरणा भी प्राप्त जाती हैं।
(6) जनसंचार माध्यमों का प्रयोग साक्षरता आन्दोलन को सफल बनाने में जनसंचार के माध्यमों का प्रयोग भी किया जाता हैं टी॰वी॰ रेडियो इस दिशा में अपना योगदान दे सकते हैं। कभी-कभी दैनिक अखबारों व पत्रिकाओं की रोचक खबरें भी साक्षर बनने की प्रेरणा देती हैं। इन माध्यमों का प्रयोग सरकार द्वारा अच्छी तरह किया जा सकता हैं।
(7) साक्षरता अभियान को स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना साक्षरता अभियान को स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने से भी इस अभियान को बढ़ावा मिल सकता है। सभी स्नातक अंतिम वर्ष के छात्र-छात्राओं के लिए साल में 15 दिन तक साक्षरता अभियान में भाग लेना अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम का हिस्सा हो। यह या तो साक्षरता शिविरों का माध्यम से हो या Each One Teach One (प्रत्येक एक दो) अभियान के माध्यम से हों शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में भी इसे स्थान दिया जाना चाहिए।
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