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वंशानुक्रम के सिद्धान्त क्या हैं?
वंशानुक्रम का निर्धारण निम्नलिखित सिद्धान्तों द्वारा होता है—
(1) मेण्डल का नियम — मेण्डल के नियमानुसार माता और पिता की ओर से बालक में एक-एक सूत्र आता है। यह केवल संयोग मात्र ही है कि बालक में किस गुणसूत्र की अभिव्यक्ति होती है। यदि इन गुणसूत्रों का प्रभाव-समान होता है तो बालक में उसी प्रकार की अभिव्यक्ति दिखाई देती है।
(2) अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम- इसे अर्जित गुणों के हस्तान्तरण का नियम भी कहते हैं। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन लेमार्क ने किया है। सन्तान में अर्जित गुणों का संक्रमण होता है। यह नियम इस बात की व्याख्या करता है। सन्तानों में माता-पिता द्वारा अर्जित गुणों का नहीं वरन् जन्म गुणों का हस्तान्तरण होता है। आज का वातावरण ही कल का वंशानुक्रम बन जाता है। उदाहरण- यदि किसी परिवार में कोई काश्तकारी पीढ़ियों से चली आ रही है, तो वह गुण बालक को वंशानुक्रम से प्राप्त होता है। वह जन्मजात उस कार्य में कुशल होता है।
( 3 ) प्रत्यागमन का नियम- इस नियम के अनुसार बालक में पाये जाने वाले गुण माता-पिता के गुणों के विपरीत होते हैं। इसका कारण प्रत्येक का मिश्रण ठीक से न हो पाना है। इसके कारण कई बार माता-पिता के गुणों का बालक में आविर्भाव नहीं होता है। वंशानुक्रम का निर्धारण करने वाले गुण दो प्रकार के होते हैं- (i) जाग्रत गुण, (ii) सुप्त गुण।
(4) समानता का नियम – समानता के नियम से आशय है कि जैसा जीव होता है, वैसी ही उसकी सन्तानें होती हैं। साथ ही माता-पिता के अनुसार ही बालक की शारीरिक रचना एवं बौद्धिक स्तर होता है।
( 5 ) उत्पादक सूत्रों की निरन्तरता का नियम — इस सिद्धान्त को सर्वप्रथम गाल्टन ने प्रतिपादित किया। इस सिद्धान्त के अनुसार वह बीजकोष जो बालक को जन्म देता है, वह कभी नष्ट नहीं हो सकता। इस सिद्धान्त के अनुसार बीच कोष का प्रमुख कार्य उत्पादन कोषों को बनाना है। बालक अपने पूर्वजों के लक्षणों को इसी के द्वारा प्राप्त करता है, साथ ही आने वाले सन्तति प्राणी के लिये इसे संभाल कर रखता है। इस सिद्धान्त के समर्थकों में बीजमैन प्रमुख है।
बालक के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव
(1) बुद्धि पर प्रभाव – गोडार्ड नामक वैज्ञानिक के मतानुसार मंद बुद्धि माता-पिता की सन्तान मन्द बुद्धि तथा तीव्र बुद्धि वाली माता-पिता की सन्तान तीन बुद्धि वाली होती है।
(2) प्रजाति की श्रेष्ठता – इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि की श्रेष्ठता का कारण प्रजाति है। इसी कारण से अमेरिका की श्वेत प्रजाति नीग्रो जाति से श्रेष्ठ है।
(3) शारीरिक लक्षणों पर प्रभाव – इस सिद्धान्त के अनुसार यदि माता-पिता की लम्बाई कम है तो उनके बालको की लम्बाई कम होगी। यदि माता-पिता की लम्बाई अधिक है, तो उनके बच्चों की लम्बाई भी अधिक होगी।
(4) चरित्र पर प्रभाव – इस सिद्धान्त के प्रवर्तक डुग्डेले थे। इनके मतानुसार निम्न श्रेणी के माता-पिता की सन्तान निम्न श्रेणी की होगी।
(5) मूल शक्तियों पर प्रभाव – इस सिद्धान्त के प्रवर्तक थौर्नडिक थे। इस सिद्धान्त के अनुसार बालक की मूल शक्तियों का प्रधान उसका वंशानुक्रम है।
(6) व्यवसायिक योग्यता पर प्रभाव- इस सिद्धान्त के प्रवर्तक कैटिल थे। उनके मतानुसार व्यवसायिक योग्यता का प्रमुख कारण वंशानुक्रम हैं। उन्होंने अमेरिका के 885 वैज्ञानिकों के परिवारों का अध्ययन करने के बाद अपना मत प्रस्तुत किया। उनके अनुसार इन परिवारों के 2/5 व्यवसायी वर्ग के, 1/2 उत्पादक वर्ग के और केवल 1/4 कृषि वर्ग के थे।
(7) महानता पर प्रभाव – इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति की महानता का कारण वंशानुक्रम है। व्यक्तियों के शारीरिक और मानसिक लक्षणों में विभिन्नता दिखाई देती है। व्यक्ति का कद, वजन, स्वास्थ्य एवं बौद्धिक क्षमता आदि वंशानुक्रम पर आधारित है।
( 8 ) सामाजिक प्रतिष्ठा – इस सिद्धान्त को विशिप द्वारा दिया गया। इसके अनुसार गुणवान एवं प्रतिष्ठित माता-पिता की सन्तान प्रतिष्ठा को प्राप्त करती है। उन्होंने रिचर्ड एडवर्ड के परिवार का अध्ययन किया। रिचर्ड एक प्रतिभावन व्यक्ति थे। उन्होंने एलिजाबेथ नामक स्त्री से विवाह किया जो उन्हीं के समान थी। दोनों के वंशजों ने उच्च प्रतिष्ठित पद प्राप्त किए।
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