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व्यक्तिगत प्रलेख की उपयोगिता एवं सीमाएं | Value and limitations of personal document in Hindi

व्यक्तिगत प्रलेख की उपयोगिता एवं सीमाएं | Value and limitations of personal document in Hindi
व्यक्तिगत प्रलेख की उपयोगिता एवं सीमाएं | Value and limitations of personal document in Hindi

व्यक्तिगत प्रलेख की उपयोगिता एवं सीमाएं | Value and limitations of personal document

व्यक्तिगत प्रलेखों की उपयोगिता (Value of Personal Documents)

सामाजिक अनुसन्धान में व्यक्तिगत प्रलेखों का काफी महत्त्व है। मनोवैज्ञानिक शोध में तो इनकी विशेष उपयोगिता है क्योंकि इनसे व्यक्तियों की मनोवृत्तियों व दृष्टिकोणों को समझने में मदद मिलती है। सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध में ये प्रलेख विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। यदि पत्र, डायरियां, जीवन-इतिहास एवं संस्मरण प्रकाशन के उद्देश्य से नहीं लिखे गये हैं तो उनकी विश्वसनीयता व वस्तुनिष्ठता काफी बढ़ जाती है। मोजर ने लिखा है, “व्यक्तिगत प्रलेख उस समय ज्यादा महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं जब ये सम्बन्धित व्यक्ति का बिना अनुरोध के प्राप्त हो जाएं। कुछ विशिष्ट सर्वेक्षणों में ये (व्यक्तिगत प्रलेख) प्रारम्भिक खोज के स्तर पर प्राक्कल्पना का निर्माण करने और अध्ययन कार्य को आगे बढ़ाने के लिए शोधकर्ता के लिए पृष्ठभूमि तैयार करने में महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं।” जहोदा एवं उनके सहयोगियों ने बताया है, “साधारणतः व्यक्तिगत प्रलेखों की उपयोगिता अवलोकन विधियों की उपयोगिता के समान है। बाह्य व्यवहार के अध्ययन में अवलोकन विधियों के प्रयोग से जो कुछ प्राप्त किया जा सकता है, वही सब. आन्तरिक अनुभवों के अध्ययन में पत्रों के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।”

स्पष्ट है कि जिस प्रकार कोई अवलोकनकर्ता अपनी सहभागिता के आधार पर किसी समूह का गहराई के साथ अध्ययन कर सकता है, उसी प्रकार सामाजिक शोधकर्ता को पत्रों व अन्य व्यक्तिगत प्रलेखों के माध्यम से किसी घटना या दशा से सम्बन्धित आन्तरिक बातों का पता चल जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्तिगत प्रलेख अध्ययन के लिए उपयोगी आधार प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

व्यक्तिगत प्रलेखों की सीमाएं (Limitations of Personal Documents)

व्यक्तिगत प्रलेखों के उपयोग की निम्नलिखित सीमाएं हैं-

(1) व्यक्तिगत प्रलेखों को प्राप्त करना बहुत कठिन है। यह पता लगाना आसान नहीं है। कि कौन से प्रलेख कहां से प्राप्त होंगे, वे किसके पास हैं। यदि यह पता चल भी जाय तो भी यह आवश्यक नहीं है कि वे शोध-कार्य के लिए मिल ही जायेंगे।

(2) व्यक्तिगत, प्रलेखों की एक सीमा इनकी प्रामाणिकता का पता लगाने की है, इनकी सत्यता की जांच करने की है। कई व्यक्तिगत प्रलेख कई बार अतिशयोक्तिपूर्ण होते हैं अर्थात् उनमें घटनाओं या व्यक्तिगत अनुभवों को बढ़ा-चढ़ा कर चित्रित किया जाता है। फिर यह ज्ञात करना और भी कठिन है कि कौन-सा व्यक्तिगत प्रलेख कितना सही है और कितना गलत है।

(3) व्यक्तिगत प्रलेखों की एक सीमा यह है कि इनके आधार पर वैज्ञानिक सामान्यीकरण निकालना काफी कठिन है। इसका कारण यह है कि व्यक्तिगत प्रलेख व्यक्ति-विशेष के विचारों एवं दृष्टिकोण का परिचायक होता है। वह डायरी, पत्र, संस्मरण या आत्मकथा में किसी समूह, समाज, सामाजिक घटना, सामाजिक समस्या आदि के सम्बन्ध में जो कुछ लिखता है, क्या वह सम्पूर्ण समूह या समाज का प्रतिनिधित्व करता है। क्या ऐसे प्रलेख के आधार पर निष्कर्ष निकालना वैज्ञानिक दृष्टि से उचित है।

(4) व्यक्तिगत प्रलेखों के आधार पर प्राप्त सामग्री का सांख्यिकीय विश्लेषण करना भी सामान्यतः सम्भव नहीं है। जहोदा एवं उनके सहयोगियों ने लिखा है, “व्यक्तिगत प्रलेख सांख्यिकीय प्रविधियों की सहायता से उपयोग में लाये जाने के लिए ज्यादा उपयुक्त नहीं होते।”

(5) कई व्यक्तिगत प्रलेखों में व्यक्तिगत पक्षपात (अभिनति) काफी मात्रा में पाया जाता है जो शोध-सामग्री के रूप में उनकी उपयोगिता पर प्रश्न-चिह्न लगा देता है।

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Anjali Yadav

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