शिक्षाशास्त्र / Education

शिक्षा के समाजशास्त्रीय उपागम का अर्थ एंव विशेषताएँ

शिक्षा के समाजशास्त्रीय उपागम का अर्थ एंव विशेषताएँ
शिक्षा के समाजशास्त्रीय उपागम का अर्थ एंव विशेषताएँ

शिक्षा के समाजशास्त्रीय उपागम का क्या अर्थ है? इस उपागम प्रमुख विशेषतायें बताइये।

समाजशास्त्रीय उपागम का तात्पर्य यह है कि शिक्षा में सामाजिकता को अधिक महत्व देना है और छात्र में सामाजिक गुणों का विकास करना है। बालक के व्यक्तित्व का इस “कार विकास किया जाए कि वह समाज के लिए उपयोगी नागरिक सिद्ध हो सके। छात्रों को समाज के कल्याण के लिए कार्य करने की प्रेरणा देना जिससे कि वे सामाजिक जीवन के लिए तैयार हो सकें। इस उपागम में शिक्षा पर सामाजिक नियन्त्रण का विश्लेषण किया जाता है।

यूरोप में मध्यकाल में समाज चर्च के चंगुल में पूरी तरह फंसा हुआ था और धार्मिक रूढ़ियों एवं आडम्बरपूर्ण अन्धविश्वासों में फंसा हुआ था। सत्रहवीं व अठारहवीं शताब्दी में यूरोप में धर्म-सुधार के परिणामस्वरूप व्यक्तिवाद पनपा।

19वीं शताब्दी में मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास हुआ और बालकों के मानसिक अध्ययन पर बल दिया गया।

शिक्षा में समाजशास्त्रीय उपागम का विकास सत्रहवीं शताब्दी से माना जाता है। ‘आगस्ट काम्टे’ ने समाजशास्त्र का विकास किया और तब से शिक्षा में समाजशास्त्रीय विचारधारा जोर पकड़ने लगी। समाजशास्त्र के विकास के साथ-साथ शैक्षिक समाजशास्त्र का भी विकास होता गया।

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शिक्षा में जब सामाजिक उद्देश्य को प्रमुखता मिली तो इस शाखा के विकास को अधिक अवसर मिला। समाज की संस्कृति की रक्षा और सामाजिक परिवर्तन के एक कारक के रूप में शिक्षा को देखा जाने लगा। इस दृष्टि से शिक्षा के सामाजिक पक्ष पर अधिक बल दिया जाने लगा।

यूरोपीय समाज में अठारहवीं शताब्दी में व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्रांति हुई जिसके परिणामस्वरूप समाज में मूल्य बदलने लगे। नये समाज की रचना होने लगी और आदर्शो तथा परम्पराओं में परिवर्तन आने लगे। कवियों, लेखकों साहित्यकारों ने नये आदर्शों की व्याख्या प्रारम्भ कर दी। राजनीतिज्ञों ने नये मूल्यों को अपनाने पर बल दिया। जनसाधारण की ओर लोगों का ध्यान गया। श्रमिकों की दशा को सुधारने की ओर लोग आकृष्ट हुए। इस प्रकार शिक्षा में समाजशास्त्रीय उपागम विकसित होता गया।

इस उपागम के विकास के लिए राजनीतिक विचारों ने भी भूमि तैयार की। चारों ओर जनतन्त्र का बोलबाला हुआ। अठारहवीं व उन्नीसवीं शताब्दी में जनतन्त्र ने जोर पकड़ा तो जनसाधारण की शिक्षा की ओर लोगों का ध्यान गया। अशिक्षित जनता द्वारा जनतन्त्र का सफल संचालन नहीं हो सकता। अतः श्रमिकों, प्रौढ़ों, नारियों तथा सामान्य जनता की शिक्षा की ओर लोगों का बरबस ध्यान गया। इन परिस्थितियों में समाजशास्त्रीय उपागम का विकास हुआ। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्रीय उपागम का विकास निम्नलिखित कारणों से सम्भव हुआ-

  1. शिक्षा में सामाजिक उद्देश्य की प्रधानता,
  2. प्रकृतिवादी विचारधारा और रूसो की प्रेरणा,
  3. मनोवैज्ञानिक तथा वैज्ञानिक प्रवृत्तियों का उदय,
  4. औद्योगिक क्रान्ति,
  5. जनतन्त्र का उदय, और
  6. समाजशास्त्र का उदय।

रूसो ने जनसाधारण की शिक्षा का समर्थन किया था। पेस्तालात्सी ने भी निर्धन बच्चों को शिक्षित करने में रुचि दिखलाई थी और जनसाधारण को शिक्षित करने का प्रयास किया था। इन शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा को कक्षा-भवन तक सीमित करना नहीं चाहा था और इसके अन्तर्गत व्यावहारिकता पर बल दिया था।

हरबार्ट ने चरित्र की शिक्षा की बात करके और बालक के नैतिक विकास की बात करके समाज के सफल संचालन में रुचि दिखाई थी और शिक्षा को समाज जोड़ने का प्रयास किया था। हरबार्ट ने पाठ्यक्रम में सांस्कृतिक तत्वों का समावेश किया। इस प्रकार समाज की क्रियाओं को पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात कही गयी थी।

समाजशास्त्रीय उपागम की मुख्य विशेषताऐं

समाजशास्त्रीय उपागम की मुख्य विशेषताओं को यहाँ पर संक्षेप में दिय जा रहा है-

  1. इस प्रवृत्ति में व्यक्तिवाद का विरोध किया जाता है।
  2. शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य पर बल है।
  3. प्रकृतिवादी विचारधारा से सहयोग |
  4. जनतन्त्र का समर्थन।
  5. जनसाधारण की शिक्षा पर बल ।
  6. मनोवैज्ञानिक तथा वैज्ञानिक प्रवृत्तियों से कुछ समानता और कुछ अन्तर ।
  7. राज्य शिक्षा प्रणाली का विकास ।
  8. शिशु विद्यालयों की स्थापना ।
  9. अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था।
  10. व्यक्ति में सामाजिक गुणों का विकास।
  11. पाठ्यक्रम में सामाजिक विषयों का महत्व ।
  12. जीवन की जटिलताओं से परिचय |
  13. शिक्षा के तीन कार्य
  • (क) ज्ञान का वितरण,
  • (ख) सामाजिक नियन्त्रण,
  • (ग) सामाजिक मन का विकास

14. सामाजिक जीवन के स्तर की उन्नति ।

15. व्यावसायिक शिक्षा पर बल ।

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Anjali Yadav

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