शिक्षाशास्त्र / Education

शिक्षा मनोविज्ञान की विभिन्न विधियाँ एंव इसके गुण-दोष

शिक्षा मनोविज्ञान की विभिन्न विधियों के नाम बताइये। इसके गुण-दोषों पर प्रकाश डालिये। 

शिक्षा मनोविज्ञान की विधियाँ- शिक्षा मनोविज्ञानिकों द्वारा तथ्यों को एकत्र करने के लिए जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है वे विधियाँ निम्नलिखित है-

  • (क) आत्मनिष्ठ विधि (या पद्धति)
  • (ख) वस्तुनिष्ठ विधि (पद्धति)

(क) आत्मनिष्ठ विधि

आत्मनिष्ठ पद्धति दो प्रकार की होते है–

  1. आत्म निरीक्षण या अन्तदर्शन विधि
  2. गाथा वर्णन विधि

आत्म निरीक्षण विधि मस्तिष्क के द्वारा अपनी स्वयं की क्रियाओं का निरीक्षण आत्म निरीक्षण है। पहले मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन के लिए इसी विधि का प्रयोग करते थे। स्काउट का कथन है “अपने मस्तिष्क के कार्य-कलापों का एक क्रमबद्ध रीति से अध्ययन करना ही अर्न्तदर्शन या आत्म-निरीक्षण है।”

आत्म-निरीक्षण पद्धति की विशेषतायें- आत्म निरीक्षण पद्धति की निम्नलिखित विशेषताये हैं-

(i) बालक को अपने मस्तिष्क के बारे में शीघ्र अन्तः दृष्टि एवं सम्यक जानकारी लेनी पड़ती है।

आत्म निरीक्षण पद्धति के दोष –

(i) इसमें मस्तिष्क का ही अध्ययन किया जाता है जिसमें व्यावहारिक कठिनाई आती है। कभी-कभी मानसिक अनुभूति जिसका अध्ययन हो रहा है, मस्तिष्क के अवधान को इतना आकर्षित कर लेती है कि मस्तिष्क उसका अनुभव करना ही बन्द कर देता है।

(ii) भाव एवं संवेगों की भली-भाँति अनुभूति नहीं होती है।

गाथा वर्णन विधि – पूर्व अनुभव या व्यवहार का लेखा तैयार करना गाथा विधि कहलाती है। इस विधि में व्यक्ति अपने अनुभवों का वर्णन करता है और परीक्षणकर्ता इन अनुभवों आधार पर एक लेखा तैयार करता है और फिर निष्कर्ष निकालता है।

गाथा विधि के गुण – इस विधि के निम्न गुण या विशेषताएँ है-

  1. इस विधि से किसी भी व्यक्ति का अध्ययन किया जाता है।
  2. यह विधि सरल है, अतः प्रयोग करने में आसानी रहती है।
  3. इस विधि में मनोवैज्ञानिक को अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता हैं।

गाथा विधि के दोष – इस विधि के प्रमुख दोष निम्नलिखित है-

(i) व्यक्ति कुछ तथ्यों को जान-बूझकर छिपा जाता है।

(ii) सभी व्यक्ति अनुभवों का ठीक-ठीक स्मरण नहीं कर पाते।

(iii) यह विधि अविश्वसनीय है क्योंकि कुछ तथ्य गलत जोड़ दिए जाते हैं।  स्किनर का कथन हैं, “गाथा वर्णन विधि की आत्मनिष्ठता के कारण इस विधि के द्वारा निकाले गये परिणामों पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। “

(ख) वस्तुनिष्ठ पद्धतियाँ (विधियाँ)

वस्तुनिष्ठ पद्धति के अन्तर्गत निम्नलिखित विधियाँ सम्मिलित की जाती हैं-

(1) साक्षात्कार विधि- इस विधि के अन्तर्गत भिन्ना-भिन्ना व्यक्तियों से साक्षात्कार कर समस्या से सम्बन्धित तथ्य एकत्रित किए जाते है तथा उनके विचार जाने जाते हैं।

साक्षात्कार विधि के गुण- इस विधि के निम्नलिखित गुण हैं-

  1. यदि उत्तरदाता की समझ में कोई प्रश्न नहीं आता है तो उसे समझाया जा सकता है।
  2. इसमें व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन किया जाता है।
  3. साक्षात्कार में प्रश्नों को समझने में कठिनाई नहीं होती।
  4. साक्षात्कार द्वारा सही-सही तथ्य प्राप्त होते हैं।

साक्षात्कार विधि के दोष— इस विधि के निम्नलिखित दोष हैं- है।

  1. इस विधि में वस्तुनिष्ठता का अभाव होता है।
  2. सभी अनुसंधान करने वालों में साक्षात्कार करने की कला नहीं होती। इसके लिए प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।
  3. साक्षात्कार करने हेतु हर व्यक्ति के पास अलग-अलग जाना पड़ता है, इसमें धन एवं समय अधिक खर्च होता है अतः यह विधि महँगी है।

( 2 ) प्रश्नावली विधि- इसमें एक प्रश्नावली का प्रयोग किया जाता। । प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करके किसी समस्या से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित किया जाता है। जब किसी समस्या की जानकारी अनेक व्यक्तियों से करनी होती है और वे व्यक्ति दूर बसे होते हैं। इस विधि में तथ्यों का संकलन अनेक व्यक्तियों से किया जाता है।

प्रश्नावली विधि के गुण – इस विधि के निम्न गुण या विशेषतायें हैं-

  1. इस विधि का प्रयोग आसानी से किया जा सकता है।
  2. यह विधि अधिक सस्ती है।
  3. इस विधि में कई व्यक्तियों की राय ली जाती है।

प्रश्नावली विधि के दोष- इस विधि निम्नलिखित दोष अथवा कमियाँ हैं-

  1. इसमें प्रश्नों की रचना करना कठिन है।
  2. इस विधि के अन्तर्गत जिन व्यक्तियों को प्रश्न भेजे जाते हैं, कभी-कभी वे प्रश्नों के उत्तर नहीं देते और उत्तर भी देते हैं तो अध्ययनकर्ता की समझ में नहीं आते।
  3. कभी-कभी उत्तरदाता प्रश्नावली को वापिस ही नहीं करते।
  4. मनोवैज्ञानिक इस विधि को वैज्ञानिक नहीं मानते।

( 3 ) जीवन इतिहास विधि – इस विधि के अन्तर्गत जीवन इतिहास के आधार पर मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इस विधि में व्यक्ति के जीवन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्यों का संकलन किया जाता है। क्रो एवं क्रो ने इस विधि का उद्देश्य निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है “जीवन इतिहास विधि का मुख्य उद्देश्य किसी कारण का निदान करना है।”

जीवन- इतिहास विधि के गुण- इस विधि के गुण निम्न हैं

  1. यह विधि सरल है।
  2. इसका प्रयोग आसानी से किया जा सकता है।
  3. इस विधि से अध्ययन के पश्चात् कारण का निदान भी किया जा सकता है।

जीवन-इतिहास विधि के दोष- इस विधि के निम्न दोष है

  1. इस विधि द्वारा निष्कर्ष निकाले जाने के लिए एक प्रशिक्षित व्यक्ति की आवश्यकता होती है।
  2. मानव व्यवहार परिवर्तनशील होता है इसका अध्ययन करना आसान नहीं है।

(4) प्रयोगात्मक विधि- प्रयोगात्मक विधि से आशय है “पूर्व निर्धारित दशाओं में मानव व्यवहार का अध्ययन करना।” एक निश्चित वस्तु का चयन करके इस पद्धति से उसका परीक्षण किया जाता है। इस विधि में मनोवैज्ञानिक का पर्यावरण पर पूर्ण नियंत्रण रहता है। इस पद्धति का प्रयोग विशेष रूप से बालक तथा पशुओं के व्यवहार के अध्ययन के लिए किया जाता है।

प्रयोगात्मक विधि के गुण- इस विधि के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-

  1. इस विधि से निकाले गये निष्कर्षो में विश्वसनीयता होती है।
  2. इस विधि से जो निष्कर्ष निकले जाते हैं उनकी परीक्षा की जा सकती है।।

प्रयोगात्मक विधि के दोष- इस विधि के दोष निम्नलिखित हैं-

  1. जब इस विधि का प्रयोग किया जाता है तो पर्यावरण में कृत्रिमता आ जाती है।
  2. उस व्यक्ति की जिसका अध्ययन किया जा रहा है, आन्तरिक दशाओं पर नियंत्रण करना असम्भव होता है।

( 5 ) परीक्षण विधि- परीक्षण विधि का प्रयोग व्यक्ति की विभिन्न योग्यताओं की जानकारी करने के लिए किया जाता है। इस विधि में निम्नलिखित परीक्षण प्रयोग में लाये जाते हैं

(i) बुद्धि परीक्षण, (ii) निष्पत्ति परीक्षण, (iii) रूचि परीक्षण, (iv) अभिरूचि परीक्षण, (v) व्यक्तित्व परीक्षण |

परीक्षण विधि के गुण- इस विधि के गुण निम्नलिखित हैं-

(i) यह विधि आधुनिक समय की देन है।

(ii) यह विधि वैज्ञानिक है।

परीक्षण विधि के दोष- इस विधि के दोष निम्नलिखित हैं-

(i) इस विधि में अधिक समय व्यय होता है।

(ii) यह विधि किसी विशेषज्ञ द्वारा ही की जा सकती है सामान्य व्यक्ति के लिए इस विधि से अध्ययन बहुत मुश्किल है।

( 6 ) निरीक्षण विधि- निरीक्षण का अर्थ है ध्यानपूर्वक देखना। इस विधि के अन्तर्गत किसी व्यक्ति की मानसिक दशा ज्ञात करने के लिए उसके व्यवहार एवं आचरण का अध्ययन किया जाता है। इसके लिए उनके आचार-विचार एवं आचरण का अध्ययन किया जाता है।

निरीक्षण विधि के गुण- इस विधि के प्रमुख गुण निम्न है-

  1. बालकों के जन्मजात गुणों को देखकर बालक के व्यक्तित्व के विकास में सहायता दी जा सकती है।
  2. इस विधि से बालकों के व्यवहार का अध्ययन सरलता से किया जा सकता है।
  3. निरीक्षण के आधार पर परिस्थितियों में उचित परिवर्तन किया जा सकता है।

निरीक्षण विधि के दोष- इसके दोष निम्न है—

  1. इस विधि में आत्मनिष्ठता तो होती हैं, परन्तु विश्वसनीयता नहीं होती है।
  2. यदि कोई अस्वाभाविक ढंग से व्यवहार कर रहा है तो उसके व्यवहार के अध्ययन करने हेतु यह विधि उपयोगी नहीं है।

(7) सांख्यिकीय विधि- इस प्रणाली से प्राप्त सामग्री का सांख्यिकीय विश्लेषण किया जाता है। इस पद्धति को आधुनिक समय में विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है।

सांख्यिकीय विधि के गुण- इस विधि के गुण निम्नलिखित हैं-

  1. शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन को विश्वसनीय तथा प्रमाणित बनाने के लिए इस पद्धति को प्रयोग में लाया जाता हैं।
  2. प्रयोगात्मक परिणामों की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए इस पद्धति का प्रयोग किया जाता है।

सांख्यिकीय विधि के दोष- इस विधि के कुछ दोष हैं जो निम्नलिखित हैं-

  1. इस विधि का प्रयोग प्रशिक्षित व्यक्तियों के लिए ही होता है।
  2. इस विधि में समय भी अधिक लगता है।

( 8 ) तुलनात्मक विधि – इस विधि में किसी व्यक्ति की व्यवहार सम्बन्धी समानताओं तथा असमानताओं का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत दो व्यक्तियों व्यवहार का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

तुलनात्मक विधि के गुण- इस विधि के निम्नलिखित गुण है—

  1. केवल इसी विधि से व्यक्तियों के व्यवहार की तुलना की जाती है।
  2. पशुओं के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

तुलनात्मक विधि के दोष- इस विधि के दोष निम्नलिखित हैं।

  1. मानव व्यवहार परिवर्तनशील होता है। उसका अध्ययन करना कठिन होता है।
  2. इस विधि से अध्ययन करने में समय अधिक लगता है।

( 9 ) मनोविश्लेषण विधि – इस विधि के जन्मदाता फ्रायड हैं, जिसमें कि अचेतन मन का अध्ययन किया जाता है। उसके अचेतन मन के अध्ययन से ही उसके विषय में सही जान की जाती है।

मनोविश्लेषण विधि के गुण– इस विधि के गुण निम्नलिखित हैं-

  1. इसी विधि के अन्तर्गत अचेतन मन का अध्ययन किया जाता है।
  2. अध्ययन के पश्चात् उसका उपचार भी किया जाता है।
  3. यदि इस विधि से किसी व्यक्ति का उपचार किया जा रहा है और रोगी मध्य में ही उपचार छोड़ देता है तो उसकी दशा और अधिक खराब हो जाती है।

(10) विकासात्मक विधि- किसी बालक की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन करना इस विधि का कार्य है। इस विधि में भी निरीक्षण किया जाता है। परीक्षणकर्ता, बालक के शारीरिक एवं मानसिक विकास का अध्ययन करके उसे लिख लेता है। इस रिकार्ड के आधार पर मनोवैज्ञानिक उस बालक की विशेषताओं का अध्ययन करते है।

विकासात्मक विधि के गुण- इस विधि के निम्नलिखित गुण हैं-

  1. बालक के विकास का अध्ययन करके महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।
  2. यह वैज्ञानिक विधि कही जाती है।

विकासात्मक विधि के दोष— इस विधि प्रमुख दोष निम्न है-

  1. यह विधि कठिन विधि है। इस विधि के अन्तर्गत यह पता लगाने का प्रयास किया जाता है कि बालक के शारीरिक, मानसिक संवेगात्मक तथा सामाजिक विकास पर पर्यावरण एवं आनुवांशिकता का क्या प्रभाव पड़ता है। एक कठिन कार्य है।
  2. इस विधि में समय अधिक लगता है तथा यह विधि अधिक महँगे भी है।

(11) उपचारात्मक विधि- इस विधि द्वारा किसी व्यक्ति की आचरण सम्बन्धी जटिलताओं को दूर करने का प्रयास किया जाता है। इस विधि में इस बात की जानकारी का प्रयास किया जाता है कि किसी व्यक्ति की आवश्यकता क्यों नहीं पूरी हो पाती, उसकी इस प्रकार की कठिनाई दूर करने के लिए किस प्रकार सहायता की जा सकती है।

उपचारात्मक विधि के गुण- उपचारात्मक विधि के प्रमुख गुण निम्न है-

  1. यह विधि वैज्ञानिक हैं।
  2. इस विधि से अध्ययन करने के साथ-साथ एक व्यक्ति की सहायता भी की जाती है

उपचारात्मक विधि के दोष- इसके निम्न दोष भी है।

  1. इस विधि से अध्ययन करना आसान नहीं है।
  2. किसी व्यक्ति की आचरण सम्बन्धी जटिलताओं का अध्ययन करना आसान नहीं हैं।

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Anjali Yadav

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