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शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास

शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास
शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास

शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक)  के शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्ध

शिशु के शारीरिक विकास तथा क्रियात्मक विकास का घनिष्ठ सम्बन्ध है। शारीरिक विकास जितना अच्छा होगा क्रियात्मक योग्यतायें उतनी अधिक होंगी। क्रियात्मक विकास माँसपेशियों की क्रियाओं से सम्बन्धित होता है। माँसपेशियों पर नियन्त्रण ही क्रियात्मक विकास है। बिना माँसपेशियों तथा नाड़ी के समन्वय के क्रियात्मक योग्यतायें नहीं पाई जा सकती हैं। क्रियात्मक विकास में माँसपेशियों के एकीकरण, नियन्त्रण तथा नाड़ियों के साथ समायोजन में मस्तिष्क का पूरा-पूरा योगदान रहता है। वहीं बच्चे की सभी क्षमताओं, आवश्यकताओं तथा भावनाओं का आधार तथा बच्चे का समान्तर व्यवहार भी शारीरिक विकास पर ही निर्भर करता है।

शारीरिक विकास का विस्तार बालक को एक विशेष आयु में क्या-क्या करने के योग्य होना चाहिये, को निश्चित करता है। जैसे-जैसे बालक आकार तथा शक्ति में बढ़ता जाता है। उसमें अनुभव का सीमा क्षेत्र निश्चित करता है। वहीं क्रित्यामक विकास में लघु मस्तिष्क के द्वारा ही माँसपेशियों की गति में ऐच्छिक नियन्त्रण लाया जा सकता है। जन्म के बाद प्रथम डेढ़ वर्षों में मस्तिष्क का विकास तीव्र गति से होता है। इसी कारण जन्म के पश्चात् शिशु धीरे-धीरे विकास की ओर अग्रसर होता है और इसी में बढ़ते हुए लगभग 5-6 वर्ष की आयु तक अपनी सभी क्रियाओं पर नियन्त्रण रखना सीख जाता है।

जहाँ तक क्रियात्मक व शारीरिक विकास में दिशा सम्बन्ध है तो दोनों ही विकास अन्तर्सम्बन्धित होने के कारण दोनों का विकासक्रम सिर से पैर की ओर होता है।  अर्थात् सबसे पहले सिर, फिर धड़ और फिर क्रमानुसार शरीर के निचले अंगों में क्रियात्मक विकास होता है।

‘शैशवावस्था में शारीरिक विकास दृश्यगत होता है। शिशु का वजन उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। दूसरे वर्ष में बच्चे के भार में वृद्धि काफी कुछ शरीर की रचना के अनुसार होती है। वजन के साथ ही शरीर की लम्बाई बढ़ती है। हड्डियों का विकास भी तीव्र गति से होता है। माँसपेशियों तथा वसा में वृद्धि होती है। बच्चे की माँसपेशियाँ जितनी मोटी होती है उसमें शारीरिक शक्ति उतनी अधिक होती है। जबकि शैशवावस्था में बालक के क्रियात्मक विकास सिर, भुजाओं तथा हाथों, धड़ तथा पैरों में क्रियात्मक विकास से सम्बन्ध करके देखा जाता है। 2 माह की उम्र में बच्चा अपने सिर को 2 मिनट तक उठाये रख सकता है। 6 माह का शिशु पूरी करवट ले सकता है। 7-8 माह में बिना सहारे के बैठ सकता है। इसी प्रकार पैरों के क्रियात्मक विकास के अर्न्तगत वह सर्वप्रथम चलना सीखता है। चलने की क्रिया के अतिरिक्त दौड़ना, उछलना, कूदना, सीढ़ियों पर चढ़ना आदि क्रियायें भी इसके अन्तर्गत आती हैं। परन्तु ये सभी क्रियात्मक योग्यतायें अच्छे शारीरिक विकास पर ही निर्भर करती है। अतः यह कहा जा सकता है कि क्रियात्मक विकास व शारीरिक विकास आपस में अन्तर्सम्बन्धित है।

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Anjali Yadav

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