Contents
अधिगम के मुख्य नियम (Primary Laws of Learning)
अधिगम के मुख्य नियम निम्नलिखित हैं-
1) तत्परता का नियम (Law of Readiness) – इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होने के बाद ही सीख सकता है। सीखने के लिए तत्पर रहने से अधिगम शीघ्र व स्थायी होता है। तत्परता व्यक्ति को ध्यान केन्द्रित करने में योगदान देती है जिससे क्रिया आसानी से सम्पन्न हो जाती है। मानसिक रूप से तैयार न होने पर कोई भी कार्य और व्यवहार कष्टदायक होता है। भाटिया के अनुसार, “तत्पर होना मतलब किसी कार्य को आधा कर लेना।”
अधिगम के प्रति बालकों में जिज्ञासा उत्पन्न करना आवश्यक है। कक्षा-कक्ष में नवीन ज्ञान प्रदान करने से पहले बालक को मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए। जबरदस्ती कार्य कराने से उसकी भावनाओं का दमन होता है और सीखने के प्रति इच्छा शक्ति में कमी आती हैं।
2) अभ्यास का नियम (Law of Exercise or Frequency) – थॉर्नडाइक के इस नियम के अनुसार कोई भी क्रिया बार-बार दोहराने से उससे सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। कई बार अभ्यास करने से अधिगम सरल हो जाता है और इससे कुशलता भी प्राप्त होती है। हिलगार्ड एवं बॉयर ने बताया कि अभ्यास करने से उद्दीपक और प्रतिक्रिया में सम्बन्ध प्रगाढ़ होता है। इस नियम में उपयोग का नियम एवं अनुपयोग का नियम के रूप में दो उपनियम भी हैं। इनके अनुसार जो कार्य व्यक्ति के लिए उपयोगी है वो बार-बार किया जाता है। इससे एक प्रकार सम्बन्ध बन जाता है जो आदत के रूप में सम्मिलित हो जाता है। इसके विपरीत अनुपयोगी कार्य न करने से उसको आसानी से भूला जा सकता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि किसी कार्य को याद रखने के लिए उसका अभ्यास आवश्यक है। कॉलसेनिक ने बताया कि अभ्यास का नियम किसी कार्य की पुनरावृति और सार्थकता के औचित्य को सिद्ध करता है। इस सिद्धान्त के अनुसार बालकों में ज्ञान के स्थायीकरण के लिए सिखाए गए ज्ञान का निरन्तर अभ्यास करवाना चाहिए। कक्षा में अध्यापक को पाठ्य सामग्री बार-बार दोहरानी चाहिए। छात्रों में अभिव्यक्ति विकास के लिए मौखिक रूप से विषय वस्तु का अभ्यास आवश्यक है।
3) प्रभाव का नियम (Law of Effect) – इस सिद्धान्त के अनुसार किसी कार्य को करने से अच्छा या धनात्मक प्रतिफल मिलता है तो वह कार्य बार-बार करने की इच्छा होती है। जिस कार्य के परिणाम से व्यक्ति को सुख एवं चैन प्राप्त होता है उसे सीखने में आसानी होती है। असफलता मिलने पर व्यक्ति कार्य को दुबारा करने का प्रयास नहीं करेगा। क्रो एवं क्रो के अनुसार, सीखने की क्रिया में संतोष का स्थान महत्वपूर्ण होता है। कक्षा में सीखने के लिए बालक को निरन्तर अभिप्रेरित एवं प्रोत्साहित करना चाहिए। वैयक्तिक भिन्नता के आधार पर अधिगम प्रदान करने के लिए नवीन शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए जिससे सीखने के प्रति रोचकता बनी रहे। अध्यापक को सकारात्मक सोच के साथ शिक्षण प्रदान करना चाहिए ताकि संतोषप्रद परिणाम प्राप्त हो सके ।
अधिगम की प्रकृति एवं मुख्य विशेषताएँ (Nature and Main Characteristics of Learning)
अधिगम के द्वारा हमारे व्यवहार में जो परिवर्तन होता है वह पूर्णतया अर्जित ही होता है. या यूँ कहें कि यह व्यवहार जन्मजात नहीं होता। अधिगम हमें विरासत में प्राप्त नहीं होता बल्कि वातावरण में निहित कारकों के प्रभाव से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष अनुभव के माध्यम से हमारे द्वारा स्वयं ही अर्जित की जाती है। भाषा जो हम बोलते हैं, कौशल जिनका हम प्रयोग करते हैं एवं रुचियाँ, आदतें और अभिवृत्तियाँ आदि जो हमारे व्यक्तित्व के अंग बरो हुए हैं ये सब अर्जित व्यवहारगत विशेषताएं हैं। अब यहाँ प्रश्न यह उठता है कि किस प्रकार के अर्जित अधिगम व्यवहार की विशेष प्रकृति क्या होती है? तथा उसमें किस प्रकार की विशेषताएँ देखने को मिलती है? इस प्रश्न का बहुत कुछ उत्तर सीखने सम्बन्धी परिभाषाओं एवं उससे सम्बन्धित सामग्री के आधार पर भली-भाँति प्राप्त किया जा सकता है।
योकम एवं सिम्पसन (Yoakam and Simpson) के अनुसार, सीखने की सामान्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1) सीखना सम्पूर्ण जीवन चलता है (Learning is a Life-long Process) सीखने की प्रक्रिया जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त चलती है।
2) सीखना परिवर्तन है (Learning is Change) – व्यक्ति स्वयं दूसरों के अनुभवों से सीखकर अपने व्यवहार विचारों, इच्छाओं, एवं भावनाओं आदि में परिवर्तन करता है। गिलफोर्ड के अनुसार, “सीखना, व्यवहार के परिणामस्वरूप व्यवहार में कोई परिवर्तन हैं।”
3) सीखना सार्वभौमिक है (Learning is Universal) – सीखने का गुण केवल मनुष्य में ही नहीं पाया जाता है। वस्तुतः संसार के सभी जीवधारी जीव-जन्तु, पशु-पक्षी में भी पाया जाता है।
4) सीखना समायोजन है (Learning is Adjustment) – सीखना, वातावरण से अनुकूलन करने के लिए आवश्यक है। सीखकर ही व्यक्ति, नई परिस्थितियों से अपना अनुकूलन कर सकता है। जब वह अपने व्यवहार को नई परिस्थिति एवं वातावरण के अनुकूल बना लेता है, तभी वह कुछ सीख पाता है। गेट्स एवं अन्य के अनुसार, सीखने का सम्बन्ध स्थिति के क्रमिक परिचय से है।
5) सीखना विकास है (Learning is Growth) – व्यक्ति अपनी दैनिक क्रियाओं और अनुभवों के द्वारा कुछ न कुछ सीखता है। फलस्वरूप, उसका शारीरिक और मानसिक विकास होता है।
6) सीखना नया कार्य करना है (Learning is doing Something New)– वुडवर्थ के अनुसार, सीखना कोई नया कार्य करना है। परन्तु उसमें उसने एक शर्त लगा दी, उसने कहा है कि सीखना, नया कार्य करना तभी है, जब यह कार्य जाएँ और अन्य कार्यों में प्रकट हो। पुनः किया
7) सीखना अनुभवों का संगठन है (Learning is Organisation of Experiences) – सीखना न तो नए अनुभवों की प्राप्ति है और न ही पुराने अनुभवों का योग वरन नये और पुराने अनुभवों का संगठन है। जैसे-जैसे व्यक्ति नए अनुभवों द्वारा नई बात सीखता जाता है, वैसे-वैसे वह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने अनुभवों को संगठित करता जाता है।
8) सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है (Learning is Purposive)- सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है। उद्देश्य जितना ही अधिक प्रबल होता है, सीखने की क्रिया उतनी ही तीव्र होती है। उद्देश्य के अभाव में सीखना असफल होता है।
9) सीखना विवेकपूर्ण होता है (Learning is Rational) – मर्सेल (Mursell) का कथन है कि सीखना, यांत्रिक कार्य नहीं बल्कि विवेकपूर्ण कार्य है। उसी बात को शीघ्रता और सरलता से सीखा जा सकता है, जिसमें बुद्धि या विवेक का प्रयोग किया जाता है। बिना सोचे-समझे किसी बात को सीखने में सफलता नहीं मिलती है।
10) सीखना सक्रिय है (Learning is Active) सक्रिय सीखना ही वास्तविक सीखना है। बालक तभी कुछ सीख सकता है, जब वह स्वयं सीखने की प्रक्रिया में भाग लेता है। यही कारण है कि डॉल्टन विधि, प्रोजेक्ट विधि आदि शिक्षण की प्रगतिशील विधियाँ हैं जो बालक की क्रियाशीलता पर बल देती है।
11) सीखना खोज है (Learning is Discovery) – वास्तविक सीखना किसी बात की खोज करना है। इस प्रकार के सीखने में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के प्रयास करके स्वयं एक परिणाम पर पहुँचता है। मर्सेल ने कहा है, सीखना उस बात को खोजने और जानने का कार्य है, जिसे एक व्यक्ति खोजना और जानना चाहता है।
12) सीखना वातावरण की उपज है (Learning is a Product of Environment)- सीखना रिक्तता में न होकर, सदैव उस वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में होता है, जिसमें व्यक्ति रहता है। बालक का सम्बन्ध जिस प्रकार के वातावरण से होता है, वह वैसी ही बातें सीखता है। यही कारण है कि आजकल इस बात पर बल दिया जाता है कि विद्यालय इतना उपयुक्त और प्रभावशाली वातावरण उपस्थित करें कि बालक अधिक से अधिक अच्छी बातों को सीख सकें।
13) सीखना व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों है (Learning is both Individual and Social)— सीखना व्यक्तिगत कार्य तो है ही, परन्तु इससे भी अधिक सामाजिक कार्य है । योकम एवं सिम्प्सन के अनुसार, सीखना सामाजिक है, क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असम्भव है।
Important Link…
- अधिकार से आप क्या समझते हैं? अधिकार के सिद्धान्त (स्रोत)
- अधिकार की सीमाएँ | Limitations of Authority in Hindi
- भारार्पण के तत्व अथवा प्रक्रिया | Elements or Process of Delegation in Hindi
- संगठन संरचना से आप क्या समझते है ? संगठन संरचना के तत्व एंव इसके सिद्धान्त
- संगठन प्रक्रिया के आवश्यक कदम | Essential steps of an organization process in Hindi
- रेखा और कर्मचारी तथा क्रियात्मक संगठन में अन्तर | Difference between Line & Staff and Working Organization in Hindi
- संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले संयोगिक घटक | contingency factors affecting organization structure in Hindi
- रेखा व कर्मचारी संगठन से आपका क्या आशय है ? इसके गुण-दोष
- क्रियात्मक संगठन से आप क्या समझते हैं ? What do you mean by Functional Organization?