अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास हेतु शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए।
अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए शिक्षा के उद्देश्य
अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावन का विकास शिक्षा के माध्यम से किया जा सकता है। प्रश्न यह उठता है कि यदि यह कार्य शिक्षा के द्वारा किया जा सकता है तो इस शिक्षा के लिए कुछ उद्देश्यों का निर्माण करना होगा। यूनेस्को के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डा० वाल्टर लेब्ज ने अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास हेतु निम्नलिखित उद्देश्य बताए हैं-
(1) अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास करने के लिए आवश्यक है कि छात्रों को एक ही देश की राष्ट्रीयता के दल-दल में न फँसाया जाय। अतएव छात्रों को विश्व-नागरिकता का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए जिससे कि बालक यह सोच सकें कि उसे आगे चलकर केवल अपने ही देश के विषय में नहीं योचना है, अथवा केवल अपने ही देश के लिए कार्य नहीं करना है बल्कि विश्व-कल्याण के लिए भी कार्य करना है। यह कार्य शिक्षा के द्वारा किया जाना चाहिए अतएव यह शिक्षा का एक उद्देश्य होना चाहिए।
(2) दूसरा उद्देश्य यह है कि बालकों में संकीर्णता की भावना का विकास नहीं होना चाहिए। यहाँ संकीर्णता से तात्पर्य है राष्ट्रीय संकीर्णता से। प्रायः देखा जाता है कि लोग अपने ही देश के हित की बात करते हैं अन्य देशों के हित की नहीं। अतएव अपने देश के कल्याण की चिन्ता के साथ ही साथ अन्य देशों के कल्याण की भी चिन्ता करनी चाहिए।
(3) छात्रों को उन सभी आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक तथ्यों से पूर्णरूपेण परिचित कराना चाहिए क्योंकि इन्हीं पर संसार के सभी देशों की प्रगति संभव हैं अतएव प्रत्येक देश के बच्चों को विश्व के सभी देशों की आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों से उनका परिचय कराया जाना चाहिए।
(4) संसार की उन सभी समस्याओं से छात्रों को परिचित कराया जाना चाहिए जो समस्याएँ प्रायः सभी देशों के सामने आया करती हैं। इन समस्याओं का समाधान करने के तरीकों से छात्रों को आरम्भिक अवस्था में ही परिचित करा दिया जाना चाहिए।
(5) प्रत्येक देश की अपनी एक संस्कृति होती है। अतएव हर देशवासी को अपने देश की संस्कृति के प्रति अभिमान होना चाहिए। प्रायः इसी के कारण सांस्कृतिक होड़ की भावना छात्रों में विकसित हो जाया करती है। एक देशवासी कहता है कि मेरे देश की संस्कृति अच्छी है तो दूसरा देशवासी अपने देश की संस्कृति के साथ-साथ अन्य संस्कृतियों का भी आदर करता है। अन्य संस्कृतियों के अच्छे गुणों को वे स्वीकार कर लेते हैं।
(6) बालाकों को केवल अपने देश के समाज का ज्ञान नहीं होना चाहिए वरन् अन्य देशों समाज का ज्ञान भी कराया जाना चाहिए। इससे छात्रों में विश्व समाज की भावना का विकास होगा। यह भावना अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास में अधिक सहायक होगी।
(7) छात्रों में तर्क, निर्णय तथा विचार-शक्तियों का विकास किया जाना चाहिए। इन शक्तियों की बालक के जीवन में विशेष आवश्यकता पड़ा करती है। इन शक्तियों के कारण ही छात्रों में उच्च गुणों का विकास होगा तथा वे समस्याओं का समाधान कर सकेंगे।
(8) छात्रों में मानवीय गुणों का विकास किया जाना अति आवश्यक है। अतएव उदार मानवीय भावनाओं का विकास भी शिक्षा का एक उद्देश्य होना चाहिए।
डॉ० एच० सी० लेब्ज के अनुसार अन्य उद्देश्य हैं-
- बालक और बालिकाओं को इस योग्य बनाना कि वे समाज कार्यों में सक्रिय रूप के सभी देशों की परिस्थितियों का ज्ञान कराया से हाथ बँटा सके।
- बालक बालिकाओं को संसार जाना चाहिए।
- विश्व में एक साथ रहने के भाव पैदा करना ।
- विश्व की अनेक बातों की जानकारी कराना।
- विश्व के अन्य देशों के प्रति सद्व्यवहार करने की शिक्षा देना।
- उनको इस योग्य बनाना कि वे अपने देश की संस्कृति तथा राष्ट्र का पक्ष न लें वरन् दूसरे राष्ट्रों को भी स्थान दें।
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