अन्तिम खातों से आपका क्या अभिप्राय है? ये क्यों तैयार किए जाते हैं? What do you mean by Final Account? Why they are prepared?
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अन्तिम खाते (Final Accounts)
किसी निश्चित अवधि (सामान्यतः एक वर्ष) से सम्बन्धित समस्त व्यवहारों का लेखा-पुस्तकों में विधिवत लिख लेने तथा तलपट बनाकर उनकी सत्यता एवं शुद्धता की जाँच कर लेने के पश्चात प्रत्येक व्यवसायी उस अवधि में किए गए व्यापार का परिणाम जानना चाहता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुस्तकों में एकत्रित की गई सूचनाओं के आधार पर लेखा वर्ष के अन्त में आय विवरण (Income Statement) तथा स्थिति विवरण (Position Statement) तैयार किए जाते हैं। आय विवरण जिसे व्यापारिव एवं लाभ-हानि खाता (Trading and Profit and Loss Account) कहते हैं, लेखाविधि का शुद्ध लाभ अथवा शुद्ध हानि प्रदर्शित करता है। स्थिति विवरण या चिट्ठा (Balance Sheet) लेखा वर्ष के अन्तिम दिन व्यवसाय की आर्थिक स्थिति प्रकट करता है। चूँकि ये खाते वर्ष की समाप्ति पर सबसे अन्त में बनाए जाते हैं इसलिए इन्हें ‘वार्षिक खाते’ (Annual Accounts) या ‘अन्तिम खाते’ (Final Accounts) कहते हैं। अन्तिम लेखे सामान्यतया तलपट के आधार पर तैयार किए जाते हैं। समस्त व्ययों व हानियों तथा लाभों व आयों से सम्बन्धित मर्दों को व्यापारिक एवं लाभ-हानि खाते में एकत्रित किया जाता है तथा समस्त सम्पत्तियों एवं दायित्वों को चिट्ठे में दर्शाया जाता है। अन्तिम लेखों के अन्तर्गत व्यापारिक संस्थाएँ (Manufacturing Concerns) निर्माण खाता, व्यापारिक खाता, लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा बनाती है।
व्यापारिक खाता (Trading Account)
व्यापारिक खाता लाभ-हानि का ही एक भाग है। सामान्यतः लाभ-हानि खाता दो भागों में तैयार किया जाता है जिसका प्रथम भाग व्यापारिक खाता कहलाता है। यह खाता बेचे गए माल की लागत, विक्रय तथा क्रय किए गए माल की बिक्री से लाभ या हानि को प्रकट करता है। इस खाते द्वारा प्रदर्शित लाभ को सकल लाभ (Gross Profit) तथा हानि को सकल हानि (Gross Loss) कहते हैं सकल लाभ या हानि विक्रय किए गए माल के विक्रय मूल्य और उसके लागत मूल्य का अन्तर है। विक्रय मूल्य बेचे गए माल की लागत से अधिक हो तो सकल लाभ होता है और कम हो तो सकल हानि होती है। बेचे गए माल की लागत कम करने के लिए वर्ष के प्रारम्भ में स्कन्ध का मूल्य, वर्ष में खरीदे गए माल की कीमत, क्रय वापसी की राशि, माल से सम्बन्धित प्रत्यक्ष व्यय एवं वर्ष के अन्त में स्टॉक का मूल्य आदि मदों का आवश्यक समायोजन किया जाता है ।
व्यापार खाते की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of Trading Account)
‘एक व्यापारी व्यापार खाते से निम्नलिखित महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त कर सकता है-
(1) सकल लाभ या हानि का ज्ञान – व्यापार खाते से व्यापारी यह जान सकता है कि एक निश्चित अवधि में उसे व्यापार से कितना सकल लाभ या हानि है। यदि व्यापार में सकल लाभ हुआ है तो यह विक्रय का कितना प्रतिशत है तथा यह लाभ गत वर्षों के लाभ से अधिक है या कम है।
(2) सम्पूर्ण प्रत्यक्ष व्ययों का ज्ञान – व्यापार खाते से व्यापारी को चालू वर्ष के कुल प्रत्यक्ष व्ययों का ज्ञान हो जाता है। इन व्ययों का विक्रय से प्रतिशत निकालकर उसकी गत वर्षों के विक्रय के प्रतिशत से तुलना की जा सकती है तथा यदि व्यय अधिक है तो उन्हें कम करने के लिए योजना बनाकर उन्हें कम किया जा सकता है।
(3) चालू वर्ष के अन्तिम स्टॉक की गत वर्षों के अन्तिम स्टॉक से तुलना करना — व्यापार खाते से व्यापारी को अन्तिम स्टॉक का ज्ञान हो जाता है, जिसकी तुलना वह पूर्व वर्षों के स्टॉक से करके यह ज्ञात कर सकता है। कि गत वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष उसके पास अधिक माल बचा है या कम माल बचा है। चालू वर्ष में अधिक माल बचने का अभिप्राय यह है कि या तो चालू वर्ष में अधिक माल क्रय किया गया है या विक्रय कम हुआ है ।
(4) हानि से सुरक्षा – जब व्यापार में सकल हानि होती है तो व्यापारी अपने व्यापार में रचनात्मक सुधार की योजना बनाकर भविष्य में होने वाली हानि को रोक सकता है।
निर्माणी खाता (Manufacturing Account)
जो संस्थाएँ वस्तुओं का निर्माण करती हैं वे वर्ष के अन्त में यह जानना चाहती है कि वर्ष के दौरान कारखाने में जो उत्पादन किया गया है उसकी उत्पादन लागत क्या है। व्यापार खाते से यह सूचना प्राप्त नहीं होती है क्योंकि व्यापार खाते में निर्मित माल के प्रारम्भिक एवं अन्तिम स्टॉक को एवं विक्रय की राशि को दिखाया जाता है एवं कई निर्माणी व्यय जैसे—–हास एवं मरम्मत आदि को व्यापार खाते में सम्मिलित नहीं किया जाता है। इसलिए निर्माणी संस्थाओं के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे उत्पादित माल की लागत को ज्ञात करने के लिए एक अलग खाता बनाएँ। उत्पादित माल की लागत को ज्ञात करने के लिए जो खाता बनाया जाता है उसे निर्माण खाता (Manufacturing Account) कहा जाता है।
लाभ-हानि खाता (Profit and Loss Account)
लाभ-हानि खाता एक दी हुई अवधि के दौरान व्यावसायिक लेन-देनों से हुए शुद्ध लाभ (Net Profit) या शुद्ध हानि (Net Loss) का ज्ञान कराता है। सर्वप्रथम व्यापार खाते से सकल लाभ की राशि लाभ-हानि खाते के क्रेडिट पक्ष में तथा विविध आय की अन्य मदें तथा ब्याज, कमीशन, प्राप्त बट्टा, लाभांश, प्राप्त किराया, विनिमय से लाभ, सम्पत्ति बेचने पर लाभ आदि दर्शायी जाती है। इसके डेबिट पक्ष में व्यवसाय संचालन से सम्बन्धित समस्त व्ययों यथा-कार्यालय का किराया, वेतन, बीमा, विज्ञापन, छपाई तथा लेखन सामग्री, ब्याज, कमीशन, देय बट्टा ह्रास मरम्मत, यात्रा व्यय, नमूने व्यापारिक व्यय, जावक गाड़ी भाड़ा, डूबत ऋण, विक्रय कर, कानूनी व्यय, अंकेक्षण शुल्क, डाक व्यय तथा व्यवसाय संचालन की अवधि में उत्पन्न हानियों को लिखा जाता है। इस खाते के जमा पक्ष के योग नान पक्ष के योग से अधिक होने पर अन्तर की राशि शुद्ध लाभ होता है। जिसे पूँजी खाते में क्रेडिट कर दिया जाता है। इसके विपरीत नाम पक्ष के योग जमा पक्ष के योग से अधिक होने पर अन्तर की राशि शुद्ध हानि होती है जिसे पूँजी खाते में डेबिट कर दिया जाता है। इस प्रकार लाभ-हानि खाते का शेष पूँजी में अन्तरित करके इसे बन्द कर दिया जाता है।
लाभ-हानि खाते की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Profit and Loss Account)
एक व्यापारी लाभ-हानि खाते से निम्नलिखित महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त कर सकता है-
(1) व्यापार के शुद्ध लाभ या हानि का ज्ञान लाभ – हानि खाते से व्यापारी वर्ष के अन्त में अपने व्यापार के शुद्ध लाभ-हानि ज्ञात कर सकता है।
(2) चालू वर्ष के लाभ-हानि की गत वर्षों से तुलना – चालू वर्ष के लाभ-हानि के गत वर्षों की तुलना करके यह ज्ञात किया जा सकता है कि गत वर्षों की अपेक्षा उसका व्यापार प्रगति कर रहा है अथवा नहीं।
(3) शुद्ध लाभ में वृद्धि के लिए प्रयत्न – लाभ-हानि खाते से विभिन्न आय एवं व्यय की मदों की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है जिसके आधार पर खर्चों पर नियन्त्रण व आय में वृद्धि के लिए भावी नीति निर्धारित की जा सकती है व भावी लाभों को बढ़ाया जा सकता है।
(4) आयकर निर्धारित करने में सहायता – लाभ-हानि खाते से व्यापार के स्वामी को व्यापार की आय पर दिए जाने वाले आयकर को ज्ञात करने में सहायता मिलती है।
व्यापार खाते तथा लाभ-हानि खाते में अन्तर
व्यापार खाता | लाभ-हानि खाता |
1. यह लाभ-हानि खाते का एक भाग होता है। | 1. यह एक प्रमुख खाता है। यह किसी खाते का भाग नहीं होता है। |
2. इस खाते में प्रारम्भिक स्टॉक, क्रय विक्रय अन्तिम स्टॉक एवं प्रत्यक्ष व्ययों को दिखाया जाता है | 2. इस खाते में सभी अप्रत्यक्ष आय एवं अप्रत्यक्ष व्ययों को दिखाया जाता है। |
3. यह खाता सकल लाभ या सकल हानि को बताता है। | 3. यह खाता शुद्ध लाभ या शुद्ध हानि को बताता है। |
4. इस खाते का शेष लाभ-हानि खाते में स्थानान्तरित किया जाता है। | 4. इस खाते को शेष पूँजी खाते में स्थानान्तरित किया जाता है। |
अन्तिम प्रविष्टियाँ (Closing Entries) – वर्ष के अन्त में खाताबही में खोले गए सभी अवास्तविक खातों के शेषों को व्यापार एवं लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित करके बन्द करने के लिए जर्नल में की गई। प्रविष्टियों को अन्तिम प्रविष्टियाँ कहते हैं। व्यापार खाते द्वारा प्रदर्शित सकल लाभ या हानि को लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित करने के लिए भी अन्तिम प्रविष्टियाँ ही की जाती है। वस्तुगत एवं व्यक्तिगत खातों के शेष को वर्ष के अन्तिम दिन चिट्ठे में ही दिखाया जाता है। जिन अवास्तविक खातों में डेविट शेष रहता है । उन्हें क्रेडिट किया जाता है तथा व्यापार या लाभ-हानि खाते को डेबिट किया जाता है। इसी प्रकार जिन अवास्तविक खातों में क्रेडिट शेष होता है, उन्हें बन्द करने के लिए डेबिट किया जाता है तथा व्यापार या लाभ-हानि, खाते को क्रेडिट किया जाता है।
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