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इन्दौर (Indore)
मध्यप्रदेश के इंदौर में स्थिति देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की स्थापना मध्यप्रदेश सरकार के अधिनियम के अनुसार 1964 में हुई। उस समय इस विश्वविद्यालय का नाम इंदौर विश्वविद्यालय रखा गया। 1988 में इस यूनिवर्सिटी का नाम मालवा की शासक व राजमाता देवी अहिल्या बाई के नाम पर रखा गया। स्थापना के समय विश्वविद्यालय में भौतिकी, गणित और केमेस्ट्री जैसे विषयों को सम्मिलित किया गया।
1986 में पहली बार बी.एड. पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई। यह विश्वविद्यालय देश के उत्तरी भाग में स्व वित्तपोषित पाठ्यक्रमों की शुरुआत में अग्रणी संस्था है। इस विश्वविद्यालय के लक्ष्य एवं उद्देश्य अच्छी तरह से परिभाषित है तथा ये तकनीकी एवं रोजगारोन्मुखी शिक्षा पर अधिक ध्यान केन्द्रित करते हैं। इस विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान प्रबन्धन, कम्प्यूटर/इलेक्ट्रानिक्स शिक्षा अधिक लोकप्रिय है।
इस विश्वविद्यालय ने मार्च 1988, में मूल्य स्पष्टीकरण से सम्बन्धित एक राष्ट्रीय परियोजना को पूर्ण किया। इस परियोजना में मूल्य चर्चा मॉडल (Value Discussion Model) तथा ज्यूरिसप्रूडेंशियल इनक्वायरी मॉडल (Jurisprudential Inquiry Model) पर अध्ययन किया गया था। इस परियोजना को पूर्ण करने के लिए शिक्षक प्रशिक्षकों के एक नए बैच को प्रशिक्षित किया गया।
इसके अतिरिक्त शिक्षक प्रशिक्षकों को दो अन्य मॉडल के लिए प्रशिक्षित किया गया। (पहला परिकल्पना प्राप्ति मॉडल तथा दूसरा जाँच प्रशिक्षण मॉडल) इस सम्बन्ध में पासी, सिंह और सनसनवॉल (1985) की रिपोर्ट के अनुसार शिक्षक प्रशिक्षक इन दोनों मॉडल के सिद्धान्त को समझ सकते हैं। उन्होंने अनुकूल प्रतिक्रिया व्यक्त की तथा उनके क्रियान्वयन के लिए तत्पर हुए।
शिक्षण प्रतिमानों पर प्रथम राष्ट्रीय परियोजना के निष्कर्षों को मान्य करने के लिए एनसीईआरटी द्वारा मान्य इन्दौर विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग ने एक और राष्ट्रीय परियोजना (शिक्षण प्रतिमानों पर) चलायी। इस अग्रिम आयोजक मॉडल तथा ज्यूरिसप्रूडेंशियल मॉडल को बी.एड. में छात्र शिक्षकों की विशिष्ट शिक्षण दक्षताओं की प्रभावशाली जाँच के लिए चयनित किया गया।
एक और अभिविन्यास कार्यक्रम सह कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें केमेस्ट्री शिक्षण में संकल्पना प्राप्ति मॉडल तथा एडवांस आयोजक मॉडल का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम 1990 में एनसीईआरटी के माध्यम से आयोजित किया गया। इस मॉडल के माध्यम से माध्यमिक स्कूल के शिक्षक को नई दुनिया के बारे में जागरूक करने का प्रयास किया गया तथा शिक्षक प्रशिक्षकों को इसके लिए प्रशिक्षण दिया गया।
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