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किशोरावस्था की समस्याएँ ( Problems of Adolescence)
किशारों की कुछ ऐसी समस्याएँ होती हैं जिनपर प्रकाश डालना आति आवश्यक है। किशोरों में वैसे तो शारीरिक विचलन एवं शारीरिक दोष, जैसे- दाँत, श्रवण, दृष्टि आदि से सम्बन्धित समस्याएँ होती हैं किन्तु इनसे हटकर भी कुछ ऐसी समस्याएँ होती हैं जिन पर विचार करना आवश्यक है क्योंकि इन समस्याओं से भली भाँति अवगत होने पर ही शिक्षक अभिभावक आदि किशोरों के उचित समायोजन में सहायता प्रदान कर सकते हैं। अतः किशोरों की कुछ समस्याओं का वर्णन इस प्रकार है-
1) पारिवारिक सम्बन्धों एवं सामाजिक समायोजन से सम्बन्धित समस्या (Problem Relating to Family Relationships and Social Adjustment) – प्राय: देखा जाता है कि किशोर तथा किशोरियाँ किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में स्वतन्त्र होकर हिस्सा लेना चाहते हैं जिसकी अनुमाति प्रायः अभिभावकों से प्राप्त नहीं होती है। परिणामस्वरूप अभिभावकों एवं किशोरों के मध्य तनाव बढ़ता है एवं पारिवारिक संघर्ष अत्यन्त तीव्र हो जाता है। पारिवारिक संघर्ष रहने से किशोरों को अपने विकासात्मक कार्यों को पूरा करने में अपने अभिभावकों से सहयोग एवं उचित दिशा निर्देश नहीं मिल पाता है और उनकी समस्याएँ अत्यन्त भयावह हो जाती है। सिम्पसन ने अपने एक अध्ययन में पाया कि जिन किशोरों को पारिवारिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है उनका समायोजन स्कूल अधिकारियों, साथियों तथा पास-पड़ोस के लोगों से भी तनावपूर्ण होता है। इस प्रकार उनकी समस्या और भी जटिल हो जाती है।
2) विद्यालय में समायोजन सम्बन्धी समस्याएँ (Problems Relating to Adjustment in School) – विद्यालय में अध्यापकों तथा अपने साथियों के साथ उचित समायोजन की समस्या का सामना किशोरों को करना पड़ता है। कुछ रूढ़िवादी प्रकृति के शिक्षक कक्षा में किशोरों के साथ अत्यन्त कठोरता (सख्ती) से पेश आते हैं तथा किशोरों को किसी भी प्रकार की स्वतन्त्रता प्रदान करने से इन्कार कर देते हैं तथा उन्हें दण्ड भी देते हैं। ऐसी अवस्था में किशोरों को समायोजन करने में बहुत परेशानी होती है। सामान्यतः स्कूल का पाठ्यक्रम मूलतः सैद्धान्तिक होता है। एवं लड़के तथा लड़कियों की उनमें मुश्किल से किसी तरह की सहभागिता हो पाती है। कक्षा में शान्त होकर पाठ्यक्रमों पर भाषण सुनना उन्हें नितान्त उबाऊ लगता है।
3) नैतिक व्यवहार से सम्बन्धित समस्या (Problem Relating to Moral Behaviour)- प्रायः किशोर अपने लिए एक अत्यन्त ही अवास्तविक उच्च मानक निर्धारित कर लेते हैं जिन्हें वे पूरा नहीं कर पाते। इससे उनमें दोषभाव उत्पन्न होता है एवं उनके समक्ष विभिन्न प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इतना ही नहीं अध्ययनों द्वारा यह पता चला है कि किशोर दूसरों के लिए भी अवास्तविक उच्च मानक निर्धारित कर लेते हैं एवं जब दूसरे उन मानक को पूरा नहीं कर पाते हैं तो वे उनसे लड़ने-झगड़ने लगते हैं। इस प्रकार उनमें सामाजिक समायोजन से सम्बन्धित समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। कुछ किशोरों को नैतिक नियमों का पालन करना ही नहीं आता एवं कुछ किशोर क्या सही है क्या गलत यह सीख ही नहीं पाते हैं। इन किशोरों में नैतिक समस्याओं के साथ-साथ सामाजिक समायोजन की समस्या भी उत्पन्न हो जाती हैं।
4) मादक वस्तुओं के सेवन की समस्या (Problem of Drug Abuse ) – वर्तमान समय में किशोरों में मादक वस्तुओं के सेवन से सम्बन्धित समस्या काफी गम्भीर हो गई है। इन मादक वस्तुओं में गाँजा, अफीम, कोकीन आदि का सेवन करते हैं। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह सिद्ध हो गया है कि इन मादक वस्तुओं के सेवन का असात्मक प्रभाव होता है जिसके कारण उनमें सामाजिक आर्थिक, नैतिक तथा पारिवारिक समस्याएँ उत्पन्न कर उन्हें सदा के लिए व्यसनी बना देता है।
5) व्यावसायिक समायोजन से सम्बन्धित समस्या ( Problem Relating to Occupational Adjustment) – किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था है जहाँ किशोर अपने भविष्य के विषय में कुछ परियोजना बनाने के लिए सक्षम हो जाते हैं। वह भविष्य में कौन-सा व्यवसाय चुनेगा, इस पर अक्सर वह विचार करता रहता है ।
ऐसे में यदि वह देखता है कि अनेक वयस्क अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् भी किसी अच्छे व्यवसाय का चुनाव करने में असमर्थ रहे तो उसमें भी घोर निराशा व कुण्ठा होती है एवं वह विद्रोही हो जाता है तथा समाज तथा अपने परिवार के लिए एक समस्या बन जाता है।
6 ) आत्महत्या की समस्या (Problem of Suicide) – अनेक अध्ययन यह बताते हैं कि किशोरों में आत्महत्या की समस्या भी अत्यन्त प्रबल होती है। स्मिथ के अध्ययन के अनुसार किशोरों की मृत्यु का दूसरा प्रधान कारण आत्महत्या ही है। किशोरों में अवसाद, प्रिय वस्तु को खो देना, सामाजिक अलगाव, पारिवारिक संघर्ष जैसी समस्याएँ देखने को मिलती हैं। शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने किशोरावस्था की आत्महत्या को इतनी अधिक गम्भीरता से लिया है कि उन्होंने शिक्षकों को ऐसे किशोरों की पहचान करके उनके लिए अलग से कुछ मार्गदर्शन करने की विशेष व्यवस्था पर बल दिया है।
7) यौन व्यवहार से सम्बन्धित समस्या (Problem Relating to Sexual Behaviour) – इस अवस्था में यौन व्यवहार से सम्बन्धित समस्या भी अत्यन्त तीव्र एवं तीक्ष्ण होती है। शारीरिक परिपक्वता के कारण उनके यौन अंगों का विकास तो पूर्ण हो जाता है किन्तु उनमें मनोवैज्ञानिक परिपक्वता के अभाव में यौन व्यवहार से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
8) वित्तीय समस्याएँ (Financial Problems) – अपने साथी मित्रों के मध्य विशिष्टता बनाए रखने के लिए किशोर अधिक से अधिक पैसा खर्च करता है तथा अपने साथियों को प्रभावित करता है। अभिभावकों से वह इतना रुपया माँग नहीं सकता है अतः वह इसी विचार में डूबा रहता है कि पैसे की व्यवस्था वह कैसे करे। इसके लिए कभी-कभी वह गलत मार्ग का भी चुनाव कर लेता है।
9) सांवेगिक समस्या (Emotional Problem) – किसी भी परिस्थिति में बालक का व्यवहार कोमलता, भय, क्रोध, विरोध आदि से युक्त हो जाता है। कई बार बालक ऐसा सांवेगिक व्यवहार करता है जिसका कारण उसे भी ज्ञात नहीं होता। वह अपने संवेगों पर सन्तुलन नहीं बना पाता जो कि बहुत आवश्यक होता है। संवेग को बालक की उद्वेलित अवस्था कहा जाता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि किशोरों में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ होती हैं जिन पर शिक्षकों द्वारा विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। जब तक किशोर ऐसी समस्याओं से घिरा रहेगा, उनकी शैक्षिक उपलब्धि के ऊँचा होने का कोई सवाल ही नहीं उठता है।
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