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किशोरावस्था में नैतिक विकास (Moral Development in Adolescence)
इस अवस्था में बालक अपने व्यवहार को समाज और समूह की प्रत्याशाओं के अनुसार सीखता है। किशोर किसी आदर्श व्यक्ति (Role Model) की कल्पना करके, उसके जैसा बनने का प्रयत्न करता है। इस उम्र में बालक अपने व्यवहार को समाज द्वारा मान्य नियमों एवं मूल्यों के आधार पर प्रदर्शित करने लगता है। बालक इस उम्र में अपने व्यवहार की तुलना अन्य लोगों के विचारों, मूल्यों एवं धारणाओं से करने लगता है। किशोरावस्था परिवर्तनों का संक्रमण काल है। इसमें अक्सर बालक दुराचारी व्यवहार भी करने लगते हैं ऐसे में उनको नैतिक शिक्षा प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता होती है।
मेडिन्निस के अनुसार, “इस अवस्था में बालक धार्मिक संकीर्णता को त्याग कर सहिष्णुता और मानवधर्म को अपनाता है। इस उम्र के बालकों में उदारता एवं सहनशीलता जैसे गुणों का विकास होता है और वे वयस्कों के समान परिपक्व व्यवहार प्रदर्शित करते हैं।”
पैक और हैविगहर्स्ट के अनुसार, “किशोरावस्था में बालक नैतिक सिद्धान्तों का निर्माण करते हुए इन मूल्यों का स्वेच्छा से पालन करना शुरू कर देते हैं।”
बालक समाज के मान्य व्यवहार के आधार पर अपने कार्यों का मूल्यांकन एवं निर्देशन करना आरम्भ कर देते हैं।
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