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किशोरावस्था में मानसिक या संज्ञानात्मक विकास (Mental or Cognitive Development during Adolescence)
किशोरावस्था, बाल्यवस्था से परिपक्वता तक वृद्धि एवं विकास का काल है।
वुडवर्थ के शब्दों में, “किशोरावस्था में मानसिक विकास अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है।”
इस अवस्था में बालक का पर्याप्त रूप से बौद्धिक विकास हो जाता है और वो कल्पना, चिंतन, स्मरण तथा निर्णय क्षमता का प्रयोग शुरू कर देता है। इस उम्र में सामाजिक भावना प्रबल होती है। अब वह पारिवारिक अनुष्ठानों और सामूहिक क्रियाओं में भाग लेना प्रारम्भ कर देता है। किशोरावस्था में तार्किक, चिंतन एवं विचारों की प्रमुखता के कारण किशोर समाज की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है।
एलिस क्रो के अनुसार, “किशोरावस्था में तर्क व चिंतन क्षमता, अकस्मात् संवेगों एवं पूर्व निर्णयों से प्रभावित होती है।”
किशोरावस्था में बालक साहित्य लेखन, अभिनय, खेल, संगीत आदि विभिन्न प्रकार के क्षेत्रों में रुचि लेने लगते हैं। इस आयु में बालक भावी जीवन की तैयारियाँ प्रारम्भ कर देते हैं। किशोरावस्था में लड़के व लड़कियों में प्रेम की भावना का तीव्रता से विकास होता है। परिणामस्वरूप उनमें प्रेम करने की प्रबल इच्छा जागृत होती है और जब वह अपने प्रेम सम्बन्धों में विफल होते हैं तब किशोरों में मानसिक ग्रंथि पागलपन (Paranoia) का व्यवहार उत्पन्न कर देती है। किशोरावस्था में किशोर प्रत्येक कार्य को उत्साहपूर्वक करता है। इस अवस्था में वह मानसिक स्वतंत्रता की इच्छा रखता है और समाज में व्याप्त बुराइयों, परम्पराओं तथा अंधविश्वासों के विरुद्ध आवाज उठाने लगता है।
किशोरावस्था (Adolescence)
1. प्रारम्भिक किशोरावस्था (Early Adolescence) (12-13 वर्ष)
- औपचारिक संक्रियात्मक विचारों का विकास
- परिकल्पना निर्माण की क्षमता का विकास
- समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग की क्षमता का विकास
2. मध्य किशोरावस्था (Middle Adolescence) (12-16 वर्ष)
- शिक्षा एवं व्यवसाय के प्रति सजग
- निर्णय की क्षमता का सम्पूर्ण विकास
3. उत्तर किशोरावस्था (Late Adolescence) (17–21 वर्ष)
- रोजगार परक शिक्षा के प्रति सजग हो जाते हैं।
- सम्पूर्ण बौद्धिक क्षमता का विकास एवं उसका उपयोग करने की क्षमता का सम्पूर्ण विकास
किशोरावस्था में होने वाले मानसिक विकास निम्नलिखित हैं-‘
1) बुद्धि का अधिकतम विकास (Maximum Development of Intelligence) – किशोरावस्था में बुद्धि का विकास अपने उच्चतम स्तर पर होता है यद्यपि विभिन्न मनोवैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री बुद्धि के पूर्ण विकास के लिए अलग-अलग आयु सीमा बताते हैं। अधिकतर मनोवैज्ञानिकों ने ये सीमा 16 वर्ष से 20 वर्ष के मध्य रखी है।
2) स्मृति शक्ति का विकास (Development of Memory Power) – किशोरावस्था में स्मृति शक्ति का विकास बहुत तीव्र गति से होता है। वह वाक्यों, विद्वानों के विचार, तुलनात्मक अध्ययन, शब्दावली आदि को बहुत ही शीघ्रता से सीख लेता है और उनका प्रयोग विभिन्न परिस्थितियों में कर लेता है। वे किसी भी तथ्य या अन्य प्रसंग को अपनी स्मृति में लम्बे समय तक रख सकते हैं।
3) रुचियों में विविधता (Variety of Interests) – इस अवस्था में रुचियों में अत्यधिक विविधता पाई जाती है। बालक और बालिकाओं में कुछ रुचियाँ समान होती हैं तो कुछ भिन्न होती हैं। बालक खेल, व्यायाम, यात्रा, मनोरंजन आदि में अधिक रुचि लेते हैं तो बालिकाएँ संगीत, नृत्य, साहित्य आदि में रुचि रखती हैं।
4) भाषा (Language) – किशोरावस्था में भाषा का ज्ञान तीव्रता से बढ़ता है वह अपने अध्ययन से निरन्तर अपने शब्द भण्डार में वृद्धि करता रहता है तथा विभिन्न भाषाओं को सीखता रहता है जिसके परिणामस्वरूप वह एक से अधिक विषयों पर सहज, तर्क, विचार एवं चिन्तन कर सकता है। साथ ही वह यह भी समझ जाता है कि किससे, कैसे और किस तरह से बात करनी है।
5) निर्णय करने की क्षमता में वृद्धि (Increased Ability of Decision-Making) – इस अवस्था में किशोर में किसी भी विषय पर निर्णय करने की क्षमता आने लगती है। वह आदर्श तथा वास्तविकता के बीच अन्तर करने लगता है। मानसिक परिपक्वता बढ़ने के कारण वे किसी विषय या समस्या पर विभिन्न विकल्पों पर सोच-विचार कर एक अन्तिम निर्णय ले सकता है।
6) चिन्तन में औपचारिक संक्रियाएँ (Formal Co-Activities in Thinking) – किशोरावस्था की ये एक विशेष स्थिति है जिसमें किशोर एवं किशोरियाँ कल्पना में अत्यधिक खोने लगते हैं अर्थात् अमूर्त का चिन्तन मूर्त के समान करते हैं। इससे उन्हें किसी भी तरह की समस्या का समाधान करने में कम कठिनाई होती हैं क्योंकि कल्पना में वे तथ्य तथा क्रमबद्धता को भी स्थान देते हैं।
7) एकाग्रचित्तता (Concentration) – इस अवस्था में एकाग्रचित्तता की स्थिति बढ़ने लगती है यद्यपि ये क्षमता उत्तर बाल्यकाल से ही प्रारम्भ हो जाती है परन्तु उस समय यह उतनी विकसित नहीं होती है।
8) नैतिक सम्प्रत्ययों की समझ (Understanding of Moral Concepts) – इस अवस्था में किशोरों में नैतिक मूल्यों का विकास तीव्र गति से होता है यद्यपि प्रारम्भ में वे माता-पिता तथा शिक्षक द्वारा जो बताया जाता था उसे स्वीकार कर लेते थे परन्तु अब वे उसका मूल्यांकन भी करने लगते हैं तथा सामाजिक मूल्यों के अनुसार उनमें परिवर्तन भी कर लेते हैं।
9) बाह्य दुनिया के प्रमुख व्यक्तित्व एवं परिस्थितियों के साथ तादात्म्य (Adjustment with External World’s Major Personalities Circumstances)- इस अवस्था तक किशोरों की मानसिक स्थिति ऐसी हो जाती है। and कि वे बाह्य दुनिया के उन व्यक्तियों, जिन्हें वे महत्वपूर्ण समझते हैं, के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं और इस तरह अपने अन्दर कुछ वैसे ही गुण विकसित कर लेते हैं जिससे वे किसी भी समस्या का सरलता से समाधान कर लेते हैं।
10) भविष्य के प्रति जागरूकता (Awareness about Future) – किशोरावस्था में पहुँचकर बालक अपने भविष्य के प्रति अधिक जागरूक हो जाते हैं और भविष्य से सम्बन्धित योजनाओं के आधार पर ही आगे की पढ़ाई तथा अन्य कार्य करते हैं।
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