B.Ed Notes

डा० बी आर अम्बेडकर का समाज सुधारक के रूप में मूल्यांकन

डा० बी आर अम्बेडकर का समाज सुधारक के रूप में मूल्यांकन
डा० बी आर अम्बेडकर का समाज सुधारक के रूप में मूल्यांकन

डा० बी आर अम्बेडकर का समाज सुधारक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।

डा० भीमराव अम्बेडकर का नाम न केवल संविधान के पिता के रूप में प्रसिद्ध है अपितु समाज सुधारक के रूप में बड़े आदर एवं सम्मान के साथ लिया जाता है। डा. अम्बेडकर ने स्वयं को दलितों के प्रति समर्पित कर दिया था इनका जन्म अस्पृश्य समझी जाने वाली महार जाति में हुआ था जिसके कारण इन्हें बार-बार सामाजिक यन्त्रणा झेलनी पड़ी थी। परन्तु उन्होंने इन समस्याओं का डटकर संघर्ष किया, परिणाम स्वरूप इन्हें भारत का मार्टिन लूथर और अब्राहम लिंकन कहा गया तथा बोधिसत्व की उपाधि भी मिली। डा० अम्बेडकर का समाज सुधारक के रूप में मूल्यांकन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है।-

(1) दलितों का मसीहा – डा0 अम्बेडकर दलितों के उद्धार हेतु कटिबद्ध थे। यह उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य था। उन्होंने दलितों में चेतना उत्पन्न की, उन्हें संगठित किया, उनको सवर्णों के अत्याचारों का विरोध करने के लिए प्रेरित किया तथा हिन्दू समाज के उच्च वर्णों को यह समझाने का प्रयास किया कि दलितों के प्रति अन्याय की स्थिति को बनाए रखना सवर्णो के लिए तथा हिन्दू समाज के लिए काफी घातक सिद्ध हो सकता है।

(2) नारी उत्थान हेतु कार्य – डा0 अम्बेडकर ने देखा कि भारत में सभी वर्णों की स्त्रियों को परम्परागत जीवन शैली में ही जीवन निर्वाह करना पड़ रहा है। अतः नारी उत्थान के लिए उन्होंने काफी प्रयास किया। अम्बेडकर ने मनुस्मृति के इस दृष्टिकोण का विरोध किया कि “बाल्य काल में स्त्रियों की रक्षा पिता करे, यौवन में पति तथा वृद्धावस्था में पुत्र करे।” उनका मानना था कि स्त्रियां कमजोर नहीं बल्कि इन्हें स्वावलंबी बनने हेतु उचित वातावरण तथा स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।

(3) वर्णव्यवस्था और जातिव्यवस्था का प्रबल विरोध – डा0 अम्बेडकर ने वर्णव्यवस्था एवं जाति व्यवस्था का जमकर विरोध किया, क्योंकि यह न केवल अन्यायपूर्ण है अपितु आज के संदर्भ में इसका कोई औचित्य भी नहीं है। डा. अम्बेडकर ने इस बात का सत्य रूप से प्रतिपादन किया कि जाति व्यवथा पूर्णरूप से अवैधानिक अन्यायपूर्ण, गरिमाहीन और अव्यवहारिक है। इस व्यवस्था ने सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक क्षेत्र में बहुत नुकसान पहुंचाया राष्ट्र के हित के लिए काफी घातक है।

(4) दलितोद्धार के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण – डा. अम्बेडकर के जीवन का मुख्य लक्ष्य दलितों का उद्धार करना था। डा. अम्बेडकर ने दलितों की बदहाली के लिए समाज के उच्च वर्गों को उत्तरदायी ठहराने के साथ-साथ इस बात को सहजता से स्वीकार किया कि दलितों को अपनी बुरी आदतों तथा हीनता की भावना का त्याग करके आत्मसम्मान पूर्ण जीवन की ओर अग्रसर होना चाहिए। इन्होंने अपने पत्रों तथा भाषणों में इस तरफ जोर दिया कि अ को झूठ बोलना, भीख मांगना तथा मुर्दा जानवर खाना छोड़ देना चाहिए। इसके साथ ही इन्हें हीनता की भावना का त्याग करके स्वतंत्रता, समानता और स्वाभिमान के साथ जीवन बिताने का संकल्प लेना चाहिए।

(5) सामाजिक अन्याय और सामाजिक लोकतंत्र का प्रतिपादन – डा. अम्बेडकर ने समाज की स्थिति को भली भाँति समझा था। उन्होंने सामाजिक लोकतन्त्र को राजनीतिक लोकतंत्र की पूर्व शर्त के रूप में प्रतिपादित कर भारत में लोकतंत्र की सार्थक व्याख्या एवं परिकल्पना प्रस्तुत की। संविधान की प्रस्तावना तथा अन्य भागों में सामाजिक, आर्थिक न्याय का जो संकल्प व्यक्त किया है उसमें अम्बेडकर का काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

(6) भारतीय संविधान के निर्माण में प्रमुख भूमिका – डॉ. अम्बेडकर एक अद्वितीय प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। पं. नेहरू तथा सरदार पटेल ने इनको प्रतिभा के आधार पर इन्हें संविधान सभा की महत्वपूर्ण प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया। इनके नेतृत्व में एक ऐसे संविधान का निर्माण हुआ जो शांतिकाल और संकटकाल दोनों ही परिस्थितियों में देश की एकता को बनाये रखने में समर्थ है।

इस तरह डॉ० अम्बेडकर ने एक से अधिक बार तथा दलित वर्ग की मुक्ति को देश की राजनीतिक स्वतंत्रता की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि यदि किसी राष्ट्र की 20 प्रतिशत आबादी अन्याय एवं अमानवीय व्यवहार को भुगत रही है तो राष्ट्र के हित के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।

Important Link…

Disclaimer:  Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide Notes already available on the Book and internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment