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तलपट (Trial Balance) क्या है ? तलपट की विशेषताएँ, उद्देश्य एंव विधियाँ

तलपट (Trial Balance) क्या है ? तलपट की  विशेषताएँ, उद्देश्य एंव विधियाँ
तलपट (Trial Balance) क्या है ? तलपट की विशेषताएँ, उद्देश्य एंव विधियाँ

तलपट क्या है ? What is Trial Balance? 

तलपट (Trial Balance)

लेनदेनों की खाताबही में खतौनी एवं खातों के शेष निकालने के बाद व्यवसायी यह जानना चाहता है कि उसने जो खतौनी की है उसमें कोई गणितीय अशुद्धि तो नहीं रह गई है। क्योंकि यदि इसमें कोई गणितीय अशुद्धि रह गई है तो अन्तिम खाते व्यवसाय की लाभ या हानि की स्थिति एवं आर्थिक स्थिति का सही चित्रण नहीं कर पायेंगे । अतः खाताबही को गणितीय शुद्धता की जाँच करने के लिए खातों के शेषों को एक जगह लाकर सूची के रूप में रखा जाता है जिसे तलपट कहा जाता है। यदि तलपट में रखे गये खातों के डेबिट एवं क्रेडिट शेषों का योग समान होता है तो इसका तात्पर्य है कि खाताबही गणितीय रूप से सही है। तलपट के डेबिट एवं क्रेडिट पक्ष का योग बराबर होना दोहरा लेखा प्रणाली के इस सिद्धान्त पर आधारित है कि प्रत्येक डेबिट का समान क्रेडिट होता है। यदि तलपट के डेबिट एवं क्रेडिट पक्ष की रकमों का योग बराबर नहीं होता है तो इसका तात्पर्य है कि खाताबही गणितीय रूप से शुद्ध नहीं है। किन्तु यहाँ यह भी याद रखना होगा कि तलपट के दोनों पक्षों का योग बराबर होना भी खाताबही की शुद्धता का अकाट्य प्रमाण (conclusive proof) नहीं है क्योंकि तलपट के दोनों पक्षों का योग मिल जाने पर भी खाताबही में अशुद्धियाँ हो सकती है जिनका वर्णन आगे किया गया है।

तलपट की मुख्य विशेषताएँ (Main Characteristics of Trial Balance)

(i) तलपट केवल एक शेषों का विवरण है खाता नहीं।

(ii) इसमें राशि के दो खाने होते हैं—एक डेबिट शेषों का एवं दूसरा क्रेडिट शेषों का।

(iii) खाताबही के खातों के अन्तिम शेष इस विवरण में दिखाए जाते हैं ।

(iv) इसे किसी भी तिथि को बनाया जा सकता है बशर्ते कि खातों के शेष निकाल लिए गए हों।

(v) यह अवधि के अन्त में खाताबही के सभी खातों के शेषों की एकीकृत सूची है।

(vi) यह खाताबही में की गई प्रविष्टियों की गणितीय शुद्धता की जाँच की एक पद्धति है।

(vii) इसकी सहायता से वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर व्यवसाय का व्यापार खाता, लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा तैयार किया जाता हैं

तलपट बनाने के उद्देश्य (Objects of Preparation of Trial Balance)

तलपट निम्नलिखित उद्देश्य की पूर्ति हेतु बनाया जाता है-

(i) खाताबही की गणितीय शुद्धता की जाँच – तलपट बनाने का मुख्य उद्देश्य खाताबही में विभिन्न लेनदेनों की खतौनी की जाँच करना होता है। यदि सभी लेनदेनों की खाताबही में खतौनी शुद्ध है तो तलपट के डेबिट एवं क्रेडिट पक्षों का योग समान होगा।

(ii) वित्तीय विवरणों का आधार- तलपट वित्तीय विवरणों जैसे-लाभ-हानि एवं चिट्ठा बनाने के लिए आधार प्रदान करता है। तलपट में एक निश्चित अवधि में हुए सभी लेनदेनों के विभिन्न खातों को संक्षिप्त रूप में एक स्थान पर लाकर रखा जाता है। इन खातों में कुछ आय-व्यय से सम्बन्धित होते हैं जिन्हें लाभ-हानि खाते में रखा जाता है एवं कुछ खाते सम्पत्तियों एवं दायित्वों से सम्बन्धित होते है जिन्हें चिट्ठे में रखा जाता है। यदि तलपट तैयार नहीं किया जाता तो लाभ-हानि खाता एवं चिट्ठा तैयार करना अत्यन्त मुश्किल हो जाता ।

(iii) खाताबही का संक्षिप्त विवरण- जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है तलपट में निश्चित तिथि को है खाताबही के खातों के शेष दिए हुए होते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण खाताबही तलपट के रूप में संक्षिप्तीकृत कर दी जाती है। किसी विशेष खाते की स्थिति तलपट को देखकर ही पता की जा सकती है। खाताबही को देखने की आवश्यकता तभी होगी जबकि खातों का विस्तृत विवरण देखना हो ।

तलपट बनाने की विधियाँ (Methods of Preparing Trial Balnace)

तलपट बनाने की निम्नलिखित दो प्रमुख विधियाँ हैं—

(1) खातों के योग द्वारा (By ‘Total of Accounts)

(2) खातों के शेष द्वारा (By Balance of Accounts)

जब खातों के योग द्वारा तलपट बनाया जाता है तो खाताबही के प्रत्येक खाते के डेबिड तथा क्रेडिट पक्ष का योग अलग-अलग लगाया जाता है और तलपट में खाते का नाम लिखकर उसके डेबिट पक्ष का योग डेबिट राशि के खाने में तथा क्रेडिट पक्ष का योग क्रेडिट राशि के खाने में लिख दिया जाता है। इसके पश्चात दोनों पक्षों का योग किया जाता है जो कि समान होना चाहिए। किन्तु इस विधि से तैयार किए गए तलपट से अन्तिम खाते बनाना सम्भव नहीं है अतः इस विधि को व्यवहार में उपयोग में नहीं लाया जाता है।

जब खातों के शेष द्वारा तलपट तैयार किया जाता है तो सर्वप्रथम खाताबही के खातों का शेष ज्ञात किया जाता है। जिस खाते का डेबिट शेष है उसकी रकम डेबिट के खाने में तथा जिस खाते का क्रेडिट शेष है उसकी रकम तलपट में क्रेडिट के खाने में लिखते हैं। यदि किसी खाते के डेबिट एवं क्रेडिट पक्ष की रकम का योग समान होता है तो उस खाते को तलपट में नहीं लिखते हैं। इस विधि से तैयार किए तलपट से अन्तिम खाते बनाने में सुविधा होती है अतः इस विधि का हो प्रयोग तलपट बनाने में किया जाता है। इस विधि को निम्नलिखित उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया गया है।

खाताबही के शेषों के डेबिट या क्रोडेट की सूचना ना दी होने पर तलपट तैयार करना- कई बार प्रश्न में खाताबही के विभिन्न खातों के शेष तो दिए जाते हैं परन्तु प्रश्न में यह नहीं बताया जाता है कि वह शेष डेबिट है या क्रेडिट तो ऐसी स्थिति में तलपट बनाते समय यह समस्या उत्पन्न होती है कि उन खातों के शेष को डेबिट शेष माना जाए या क्रेडिट शेष। ऐसी स्थिति में खाते की प्रकृति के आधार पर यह निश्चित करना पड़ता है कि उस खाते का डेबिट शेष है या क्रेडिट शेष । खातों की प्रकृति के आधर पर शेष के डेबिट या क्रेडिट का निर्धारण करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखते हैं-

(i) व्यक्तिगत खातों के शेष का निर्धारण – देनदारों के खाते, बैंक खाता, आहरण खाता आदि के डेबिट शेष होते हैं। अतः इन खातों के शेषों को डेबिट पक्ष में लिखा जाता है। इसी प्रकार लेनदारों के खाते, बैंक अधिविकर्ष खाता, पूँजी खाता आदि के क्रेडिट शेष होते हैं। अतः इन खातों के शेषों को क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है।

(ii) वास्तविक खातों के शेष का निर्धारण- सम्पत्तियों से सम्बन्धित खाते जैसे-भवन खाता, मशीनरी खात, फर्नीचर खाता, रोकड़ खाता आदि के डेबिट शेष होते हैं, इसलिए इन खातों के शेषों को डेबिट पक्ष में लिखा जाता है।

(iii) अवास्तविक खातों के शेष का निर्धारण- व्यय एवं हानि से सम्बन्धित खातों का डेबिट शेष होता है। जैसे – मजदूरी, वेतन, किराया, गाड़ी भाड़ा, ब्याज, बट्टा, कमीशन, क्रय एवं विक्रय वापसी आदि अतः इन खातों के शेष को डेबिट पक्ष में लिखा जाता है। आय एवं लाभ से सम्बन्धित खातों को क्रेडिट शेष होता है। जैसे— प्राप्त बट्टा, प्राप्त ब्याज, प्राप्त कमीशन, विक्रय, क्रय वापसी आदि, अतः इन खातों के शेषों को क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है।

उपरोक्त के अलावा यदि किसी खाते के आगे Dr. शब्द लिखा है तो इसका अर्थ है कि उस खाते का डेबिट शेष है। इसी प्रकार अगर किसी खाते के आगे Cr. शब्द लिखा है तो इसका अर्थ है कि उस खाते का क्रेडिट शेष है।

अशुद्धियाँ जिनका तलपट से पता नही लगता (Errors not Disclosed by Trial Balance)

तलपट का योग मिलने से खाताबही की केवल गणितीय शुद्धता की जाँच हो सकती है। परन्तु यह खातों की पूर्ण सत्यता का कोई अकाट्य प्रमाण (conclusive proof) नहीं है। कुछ अशुद्धियाँ इस प्रकार की होती है जिनका तलपट के मिलान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। तलपट के मिल जाने पर भी अशुद्धियाँ रह सकती है। ऐसी अशुद्धियों का पता तलपट से नहीं लग पाता है। ये अशुद्धियाँ निम्नलिखित हैं-

(1) भूलचूक की अशुद्धियाँ (Errors of Omission) – जब कोई लेन-देन जर्नल या सहायक पुस्तकों लिखने से छूट जाता है या खाताबही में दोनों पक्षों की खतौनी करने से छूट जाता है तो उसे भूल चूक की अशुद्धि कहते है इस प्रकार की अशुद्धि का तलपट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जैसे श्याम को 500 रु० का माल बेचा किन्तु इसका पुस्तकों में लेखा करना भूल गये तो इसका प्रभाव तलपट पर नहीं पड़ेगा क्योंकि खाताबही में भी इसकी कोई खतौनी नहीं हुई है।

(2) हिसाब की अशुद्धियाँ (Errors of Commission ) – प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकों में गलत राशि से या गलत खाते से प्रविष्टि कर देना अथवा खाताबही में गलत खाते में सही राशि सही पक्ष में प्रविष्ट कर देना हिसाब की अशुद्धियाँ था लेखा सम्बन्धी अशुद्धियाँ कहलाती है। इन अशुद्धियों का तलपट के मिलान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जैसे दिनेश को 15,000 रु० का माल बेचा किन्तु जर्नल में इसकी प्रविष्ट गलती से 1,500 रु० से हो गई, खाताबही में भी दोनों पक्षों में खतौनी रु० 1,500 से ही होगी इसलिए इस अशुद्धि का तलपट के मिलान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसी प्रकार यदि खतौनी करते समय श्याम के खाते को रु० 2,000 से डेबिट करने के स्थान पर राम के खाते को 2,000 रु० से डेबिट कर दिया जाता है तो इसका प्रभाव भी तलपट पर नहीं पड़ेगा।

(3) सैद्धान्तिक अशुद्धियाँ (Errors of Principle ) – प्रारम्भिक लेखे को पुस्तकों में लेखा करते समय दोहरा लेखा प्रणाली के सिद्धान्तों का पालन न करने के कारण होने वाली अशुद्धि को सैद्धान्तिक अशुद्धि कहते हैं। जैसे टाइपराइटर की खरीद को कार्यालय व्यय मानकर प्रविष्टि करना या मशीन को चालू मरम्मत के खर्च को मशीन खाते में डेबिट करना, मशीन के विक्रय से प्राप्त राशि को आय मान लेना आदि। इस प्रकार की अशुद्धियों का तलपट के मिलान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

(4) क्षतिपूरक अशुद्धियाँ (Compensatory Errors) – ऐसी अशुद्धियाँ जो एक-दूसरे की क्षतिपूरक होती है अर्थात एक अशुद्धि की क्षतिपूर्ति दूसरी अशुद्धि से हो जाती है क्षतिपूरक अशुद्धियाँ कहााती है। जैसे प्रकाश के खाते के डेबिट में 1,000 रु० के स्थान पर 100 रु० लिख दिए गए किन्तु राम प्रसाद के खाते में डेबिट की ओर 100 रु० के स्थान पर 1,000 रु० लिख दिए गए। इस प्रकार राम प्रसाद के खाते का 900 रु० की कमी राम प्रसाद के खाते में 900 रु० अधिक लिखने से पूरी हो जाती है। इस प्रकार की अशुद्धियों का तलपट के मिलान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

उपर्युक्त अशुद्धियों का पता लगाना अत्यन्त कठिन है क्योंकि इन अशुद्धियों का तलपट के मिलान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इन अशुद्धियों का पता साधारणतया खातों का अंकेक्षण (जाँच) करते समय चलता है। भविष्य में जब भी इन अशुद्धियों का पता चलता है तब इन्हें आवश्यक सुधार प्रविष्टियाँ करके सुधारा जाता है ।

तलपट को प्रभावित करने वाली अशुद्धियाँ (Errors which Effect Trial Balance)

ऐसे लेन-देन जिनका गलती से दोहरा लेखा नहीं होता और यदि होता है तो गलत रकम से तो इससे तलपट नहीं मिल पाता है। इस प्रकार की अशुद्धियाँ तलपट को प्रभावित करने वाली अशुद्धियाँ कहलाती है। इनके कुछ उदाहरण निम्नलिखित है-

(i) सहायक पुस्तकों के योग में अशुद्धि- जब किसी सहायक पुस्तक का सामायिक योग कम या अधिक लग जाता है तो इससे सम्बन्धित खाता भी गलत हो जाता है। जैसे यदि क्रय पुस्तक का योग 1,000 रु० से अधिक लग जाता है तो क्रय खाता भी 1,000 रु० से शेष अधिक बतायेगा, अतः इस अशुद्धि से तलपट भी प्रभावित होगा।

(ii) सहायक पुस्तकों का योग एक पृष्ठ से दूसरे पृष्ठ पर ले जाने में अशुद्धि- जब किसी सहायक पुस्तक का पृष्ठ भर जाता है तो उसका योग अगले पृष्ठ पर ले जाया जाता है। यदि सहायक पुस्तक के योग को अगले पृष्ठ पर ले जाते समय गलती हो जाती है तो इससे सम्बन्धित खाता प्रभावित होगा और फिर इस अशुद्धि से तलपट भी प्रभावित होगा।

(iii) सहायक पुस्तकों से खाताबही में खतौनी में अशुद्धि – जब किसी सहायक पुस्तक से खाताबही में किसी खाते में खतौनी करते समय कोई अशुद्धि हो जाती है तो इससे सम्बन्धित खाता प्रभावित होता है और फिर इस अशुद्धि से तलपट प्रभावित होता है।

(iv) खाते के शेष निकालने में अशुद्धि- जब किसी खाते के शेष निकालने में यदि कोई गलती हो जाती है तो इससे भी तलपट नहीं मिलता है।

(v) देनदारों व लेनदारों की अनुसूची बनाने में अशुद्धि- जब देनदारों व लेनदारों को अनुसूची बनाने में किसी देनदार या लेनदार का खाता छूट जाता है या गलत राशि लिख दी जाती है तो इससे कुल देनदारों एवं लेनदारों के खाते प्रभावित होते हैं जिससे तलपट भी प्रभावित होता है।

(vi) तलपट में खाते का शेष ले जाने में अशुद्धि- खाताबही में खोले गए समस्त खातों के शेषों को तलपट में ले जाया जाता है। यदि खातों के शेषों को तलपट में जाते समय अशुद्धि हो जाती है, जैसे-किसी खाते का गलत शेष तलपट में लिख देना या गलत पक्ष में लिख देना तो इन अशुद्धियों से तलपट प्रभावित होगा।

तलपट की अशुद्धियों का पता लगाने की विधि (Procedure to Locate the Errors of Trial Balance)

यदि तलपट के दोनों पक्षों का योग नहीं मिलता है तो इसका तात्पर्य है कि लेखा पुस्तकों में कही न कहीं अशुद्धि अवश्य रह गई है जिसका पता लगाने के लिये निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है-

(i) सर्वप्रथम अन्तर की राशि ज्ञात करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि इस रकम का कोई खाता तलपट में लिखने से तो नहीं छूट गया है।

(ii) अन्तर की राशि का आधा करके देखना चाहिए कि कहीं अन्तर की राशि की आधी राशि का खाता तलपट में गलत पक्ष में तो नहीं लिख दिया गया है। इससे तलपट पर दुगुना प्रभाव पड़ता है।

(iii) इसी प्रकार यदि अन्तर की राशि 9 से विभाजित हो रही हो तो यह समझ लेना चाहिए कि अंकों के लिखने में कहीं उलट-फेर हो गया। जैसे 539 के स्थान पर 935 लिखा जाए तो दोनों का अन्तर 396 होगा जो कि 9 से पूर्णतया विभाजित होगा। अतः यह अंकों के उलट-फेर की अशुद्धि है।

(iv) सहायक बहियों के योग की पुनः जाँच की जानी चाहिए।

(v) जर्नल में लिखे गए सभी लेनदेनों की जाँच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि प्रत्येक लेखे की डेबिट और क्रेडिट की रकम बराबर है।

(vi) यह देखना चाहिए कि रोकड़ बही से रोकड़ शेष व बैंक शेष तलपट में सम्मिलित कर लिए गए हैं।

(vii) देनदारों तथा लेनदारो की सूचियों के योग दुबारा से करके यह पता लगा लेना चाहिए कि समस्त सम्बन्धित शेषों को सम्मिलित कर लिया गया है।

(viii) यह भी देखना चाहिए कि पिछले वर्ष की सम्पत्तियों एवं दायित्वों के शेष इस वर्ष के खातों में सही रूप से लिखे गए है या नहीं।

(ix) इन सब प्रयत्नों के पश्चात भी यदि अशुद्धियाँ का पता न चले तो सहायक पुस्तकों से पुनः जाँच प्रारम्भ करके तलपट पर निशान लगाते हुए करनी चाहिए।

भूल-चूक खाता या उचन्ती खाता (Suspense Account)

यदि किसी कारण से तलपट के अन्तर की अशुद्धि का पता नहीं चल पाता है और अन्तिम खाते बनाने आवश्यक हो तो कुछ समय के लिए इस अन्तर की भूलचूक खाता या उचन्ती खाता (Suspense Account) में डाल देते हैं। यदि तलपट के डेबिट पक्ष का योग क्रेडिट पक्ष से अधिक है तो अन्तर की राशि को तलपट के क्रेडिट पक्ष में लिखा जायेगा और उचन्ती खाते का क्रेडिट शेष होगा। इसके विपरीत यदि तलपट के क्रेडिट पक्ष का योग डेबिट पक्ष से अधिक है तो अन्तर को राशि को तलपट के डेबिट पक्ष में लिखा जायेगा और उचन्ती खाते का डेबिट शेष होगा। बाद में जब भा अशुद्धियाँ ज्ञात होती है तो उनके सुधार की प्रविष्टि करके इस उचन्ती खाते को बन्द कर दिया जाता है।

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Anjali Yadav

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