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दोहरा लेखा प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसके लाभ एंव दोष

दोहरा लेखा प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसके लाभ एंव दोष
दोहरा लेखा प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसके लाभ एंव दोष

दोहरा लेखा प्रणाली से आप क्या समझते हैं? What do you understand by double entry system?

दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System)

बहीखाते की दोहरा लेखा प्रणाली का जन्मदाता इटली का गणितज्ञ लुकास पैसियोली (Lucas Pacioli) था, परन्तु इस पद्धति का विकास इंग्लैण्ड में हुआ। यह प्रणाली इस सिद्धान्त पर आधारित है कि प्रत्येक लेनदेन में दो व्यक्ति सम्मिलित होते हैं। एक व्यक्ति कुछ लेता है और दूसरा व्यक्ति कुछ देता है। इसलिए प्रत्येक लेनदेन के दो पक्ष होते हैं, एक डेबिट (Dr.) तथा दूसरा क्रेडिट (Cr.) । अतः लेखा करते समय एक बार डेबिट पक्ष में तथा दूसरी बार क्रेडिट पक्ष में लेखा किया जाता है। उदाहरणार्थ, जब हम नकद में माल खरीदते हैं, हम माल प्राप्त करते हैं एवं बदले में नकद राशि देते हैं। इसी प्रकार माल के उधार विक्रय में ग्राहक को माल दिया जाता है और वह हमारा उस राशि से देनदार हो जाता है। इस प्रकार प्रत्येक लेनदेन में दो खाते सम्मिलित होंगे। प्रत्येक लेनदेन को दो खातों में लिखने की इस विधि को दोहरा लेखा प्रणाली कहा जाता है।

दो खातों में एक खाते को एक राशि से डेबिट तथा दूसरे खाते को उसी राशि से क्रेडिट किया जायेगा। अतः किसी भी तिथि के सभी डेबिट का योग सभी क्रेडिट के योग के बराबर होगा क्योंकि प्रत्येक डेविट का समान क्रेडिट होता है।

दोहरा लेखा प्रणाली के लाभ (Advantages of Double Entry System)

इस प्रणाली को उपयोग में लेने से व्यवसाय को निम्नलिखित लाभ होगे-

(i) यह प्रणाली प्रत्येक लेनदेन का पूर्ण लेखा रखती है चाहे वह व्यक्तिगत खातों से सम्बन्धित हो या अव्यक्तिगत खातों से ।

(ii) यह प्रणाली लेखों की गणितीय शुद्धता की जाँच का आधार प्रदान करती है क्योंकि सभी प्रविष्टियों के डेबिट पक्ष या योग क्रेडिट पक्ष के योग के बराबर होना अनिवार्य हैं।

(iii) व्यक्तिगत खातों की सहायता से बाहरी पक्षकारों को चुकाई जाने वाली राशि और उनसे ली जाने वाली राशि की गणना आसान हो जाती है।

(iv) व्यवसाय के संचालन के परिणामों की जानकारी करने के लिए इस प्रणाली से लाभ-हानि खाता बनाने में सहायता मिलती है।

(v) व्यवसाय की किसी निश्चित तिथि को आर्थिक स्थिति की जानकारी करने के लिए इस प्रणाली से स्थिति विवरण बनाने में सहायता मिलती है।

(vi) यह प्रणाली अशुद्धियों एवं कपट की सभ्भावना को कम करती है और यदि ये हो भी जाते हैं तो शीघ्रता से पकड़ में आ जाते हैं। आन्तरिक नियन्त्रण प्रणाली की सहायता से यह प्रणाली बहुत अच्छी तरह कार्य कर सकती है।

(vii) यह प्रणाली निश्चित सिद्धान्तों एवं नियमों पर आधारित होने से पूर्ण वैज्ञानिक एवं प्रत्येक लेनदेन को दो खातों में लिखने से यह पूर्ण विश्वसनीय है। इन विशेषताओं के होने से हमारे देश में कम्पनी अधिनियम द्वारा इसको वैधानिक मान्यता प्राप्त है। इस प्रणाली के अनुसार रखे गये लेनदेनों को कर अधिकारी, न्यायालय एवं सरकार भी मान्तया प्रदान करती है।

दोहरा लेखा प्रणाली के दोष (Defects of Double Entry System)

(1) इस प्रणाली में यदि कोई सौदा प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकों में लिखने से छूट जाए तो इसका पता लगाना कठिन होता है।

(2) प्रारम्भिक प्रविष्टियाँ करते समय यदि किसी व्यवहार की रकम गलत लिख दी जाए तो इसका भी पता लगाना कठिन होता है।

(3) इस प्रणाली के नियमों को क्रियाशीलता करना कठिन कार्य होता है।

(4) जब दो या दो से अधिक अशुद्धियाँ इस प्रकार की हो कि एक अशुद्धि का प्रभाव दूसरी को समाप्त कर दे तो इन्हें क्षतिपूरक अशुद्धियाँ कहते हैं। ऐसी अशुद्धियों का पता लगाना भी सम्भव नहीं होता है, क्योंकि अशुद्धि होने के बावजूद तलपट के दोनों पक्षों का योग बराबर हो जाता है।

(5) यह प्रणाली अन्य प्रणालियों की तुलना में खर्चीली होती है परन्तु इसकी उपयोगिता के कारण इस दोष पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

(6) इस प्रणाली के अनुसार हिसाब रखने के योग्य तथा प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। अतः प्रत्येक व्यापारी इस प्रणाली के अनुसार आसानी से हिसाब नहीं रख सकता है।

इकहरी लेखा प्रणाली तथा दोहरा लेखा प्रणाली की तुलना (Comparison of Single Entry System and Double Entry System)

इकहरी लेखा प्रणाली दोहरा लेखा प्रणाली
1. इस प्रणाली में प्रत्येक लेनदेन का केवल एक जगह लेखा किया जाता है। इस प्रणाली में प्रत्येक लेनदेन का दो जगह लेखा किया जाता है।
2. इस प्रणाली के अन्तर्गत केवल व्यक्तिगत खाते ही खोले जाते हैं। इस प्रणाली में वस्तुगत, व्यक्तिगत तथा नाम मात्र सम्बन्धी समस्त खाते खोले जाते हैं।
3. इस प्रणाली में खातों की गणितात्मक शुद्धता की जाँच हेतु तलपट बनाना सम्भव नहीं है।  इस प्रणाली में तलपट बनाकर खाता बहियों की गणितीय शुद्धता जाँची जा सकती है।
4. लाभ-हानि का सही ज्ञान सम्भव नहीं है। इस प्रणाली में लाभ-हानि खाता बनाकर किसी भी अवधि का लाभ-हानि ज्ञात किया जा सकता है।
5. व्यापार की आर्थिक स्थिति की जानकारी नहीं हो सकती है क्योंकि इस प्रणाली में चिट्ठा बनाना सम्भव नहीं है। इस प्रणाली में चिट्ठा बनाकर व्यापार की सही आर्थिक स्थिति ज्ञात की जा सकती है। 
6. यह पद्धति अपूर्ण व अवैज्ञानिक है। यह प्रणाली पूर्ण तथा वैज्ञानिक है।
7. केवल छोटे व्यापारियों द्वारा ही इसका प्रयोग किया जाता है। जैसे—चाय, पान, सब्जी, दूध विक्रेता आदि । यह प्रणाली बैंकों, बीमा कम्पनी, संयुक्त पूँजी वाली  कम्पनियों, निगमों में आवश्यक रूप से अपनाई जाती है।

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Anjali Yadav

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