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पाठ्यचर्या की श्रेणीबद्धता | Gradation of Curriculum in Hindi

पाठ्यचर्या की श्रेणीबद्धता | Gradation of Curriculum in  Hindi
पाठ्यचर्या की श्रेणीबद्धता | Gradation of Curriculum in Hindi

पाठ्यचर्या की श्रेणीबद्धता (Gradation of Curriculum)

पाठ्यचर्या का क्षेत्र अति विस्तृत है किन्तु इसकी स्पष्टता एवं उद्देश्य निर्धारण अति आवश्यक है। अतः इसी कारण पाठ्यचर्या को वर्गीकृत किया गया है। उसे अलग-अलग श्रेणियों में बाँटा गया है जिससे उसके उद्देश्य सरल तथा सुस्पष्ट होते हैं तथा पाठ्यचर्या नियोजन को भी एक दिशा प्राप्त होती है। अतः पाठ्यचर्या को निम्न स्वरूपों में वर्गीकृत किया जाता है-

  1. ज्ञान पर आधारित,
  2. रोजगार आधारित,
  3. संस्कृति आधारित,
  4. प्रयोग आधारित,
  5. मूल्यांकन आधारित,
  6. विषयों पर आधारित,
  7. मूल्य आधारित,
  8. लक्ष्य आधारित,
  9. क्रिया आधारित,
  10. नियमों पर आधारित एवं
  11. विधियों पर आधारित ।

पाठ्यचर्या का उपरोक्त वर्गीकरण किया गया है जिसकी व्याख्या निम्नलिखित है-

1) ज्ञान पर आधारित- ज्ञान के अन्तर्गत ही बुद्धि का प्रयोग आता है। पूर्वकाल में तो इसका महत्त्व सर्वोपरि रहा है। यह स्मृति पर आधारित होकर स्थायी हो जाता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न क्रियाओं, जैसे- सिद्धान्तों, नियमों, तथ्यों आदि की सहायता से इसे बढ़ाया जाता है। जिसका ज्ञान प्राप्त किया गया है उनकी अपनी भाषा, अपने शब्दों में व्याख्या करना तथा ज्ञान का उपयोग करना एवं उसके माध्यम से उद्देश्यों की प्राप्ति करना।

2) रोजगार आधारित- पाठ्यचर्या को रोजगार आधारित बनाया जाता है। इसके द्वारा इसमें ऐसे तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है जो भविष्य में व्यवसायिकता के लिए उपयोगी बने। महात्मा गाँधी के अनुसार, “ऐसी शिक्षा किसी काम की नहीं जो भविष्य में जीवनयापन का साधन न बने।” अतः परिभाषा का अर्थ यहाँ पर सार्थक होता है। पाठ्यचर्या में ऐसी पाठ्यवस्तु को स्थान मिलता है जो भविष्य में बालकों के लिए एक व्यवसायिक आधार प्रस्तुत करे। ताकि उनके लिए एक ठोस मार्ग प्रशस्त हो सके।

3) संस्कृति आधारित – पाठ्यचर्या को वर्गीकृत करने में एक और तत्त्व की भूमिका महत्त्वपूर्ण है वह है संस्कृति। पाठ्यचर्या में भारत देश की विभिन्न संस्कृतियों की व्याख्या की गई है। हमारे देश के विभिन्न राज्यों की संस्कृति का ज्ञान छात्र-छात्राओं हेतु संगठित कर वर्गीकृत किया गया है। जिससे की हमारी संस्कृति का संरक्षण तथा विस्तार होगा तथा यह संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तान्तरित करने हेतु पाठ्यचर्या का वर्गीकरण संस्कृति के आधार पर किया गया है।

4) प्रयोग आधारित – पाठ्यचर्या को वर्गीकृत करने का एक आधार प्रयोग भी है अर्थात् शिक्षा में प्रयोग पर बल देना। प्रयोजनवादी शिक्षा अथवा प्रयोगवादी शिक्षा वर्तमान में प्रचलित है। आज की शिक्षा में प्रयोग अथवा व्यवहार महत्त्वपूर्ण है। सिद्धान्तवादी शिक्षा के साथ-साथ प्रयोगों के आधार पर शिक्षा देना अनिवार्य है जिसमें प्रयोगों का प्रभाव रहे। इस प्रकार कई शिक्षाविदों तथा दर्शनशास्त्रियों ने इसका समर्थन किया है। जैसे- जॉन डीवी, अरविन्दों घोष आदि। जॉन डीवी ने इस सिद्धान्त को फलवाद, परिणामवाद, यन्त्रवाद, प्रयोजनवाद आदि नाम दिया तथा शिक्षा में प्रयोगों पर बल दिया।

5) मूल्यांकन आधारितपाठ्यचर्या के वर्गीकरण में एक तत्त्व और जोड़ा गया है जो कि मूल्यांकन था। इस पर आधारित होकर पाठ्यचर्या का वर्गीकरण किया गया। पाठ्यचर्या के अलग-अलग भागों में मूल्यांकन को विशेष स्थान प्राप्त हैं। मूल्यांकन ज्ञान का अंतिम उद्देश्य है। इसके लिए नियमों का विश्लेषण किया जाता है जिसके प्रति प्रत्येक मानदण्डों के लिए सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रकार के निर्णय लिए जाते हैं। विभिन्न विषयों के ज्ञान से शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति होती है। इसमें दो प्रकार का मूल्यांकन किया जाता है-

i) आन्तरिक विश्लेषण, एवं

ii) बाह्य विश्लेषण ।

6) विषय आधारित – शिक्षा में अनेक विषयों को रखा गया है जो कि पाठ्यचर्या के माध्यम से बालकों तक पहुँचाया जाता है। विभिन्न विषयों का ज्ञान देना शिक्षा का उद्देश्य है। वर्तमान में नए-नए विषयों का आगमन शिक्षा के क्षेत्र में हो रहा है। कारण आधुनिकता, तकनीकी, सम्प्रेषण, पाश्चात्य शैली आदि का भारतीय शिक्षा में पूर्णतः प्रवेश तथा हस्तक्षेप है जिसे समझने व लाभ प्राप्त करने के लिए इनसे सम्बन्धित विषयों को पाठ्यचर्या में समाहित करना आवश्यक हो जाता है। अतः पाठ्यचर्या का वर्गीकरण विषयों पर आधारित होकर किया गया है।

7) मूल्य आधारित – पाठ्यचर्या के वर्गीकरण का एक कारक भारतीय मूल्य है। भारतीय शिक्षा में सदैव ही मूल्यों, नैतिकता तथा चरित्र का अपना स्थान रहा है। क्योंकि भारतीय समाज, भारतीय शिक्षा, भारतीय संस्कृति का मूल आधार मूल्य ही है हमारे मूल्यों कि निरन्तरता तथा इसका प्रसार करने का माध्यम शिक्षा से उत्तम नहीं हो सकता है। शिक्षा द्वारा छात्रों में मूल्यों की स्थापना पाठ्यचर्या द्वारा की जाती है। मानवीय मूल्य सदैव मानव की पहचान होते हैं जिनका विकास होना अति आवश्यक होता है। अतः पाठ्यचर्या में मूल्यों का महत्त्वपूर्ण स्थान है इसलिए मूल्यों के आधार पर पाठ्यचर्या का वर्गीकरण किया गया है।

8) लक्ष्य आधारित – पाठ्यचर्या का वर्गीकरण लक्ष्यों पर आधारित होकर किया गया है। इसमें लक्ष्यों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। शिक्षा की पाठ्यचर्या का उद्देश्य होता है कि वह ज्ञान को एक व्यवस्थित तथा क्रमबद्ध रूप में बालकों तक पहुँचाएं तथा जिससे निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके। इसके लिए विभिन्न विधियाँ, शिक्षण आदि किया जाता है। शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में पाठ्यचर्या को एक उत्तम साधन माना जाता है। अतः पाठ्यचर्या का वर्गीकरण लक्ष्यों पर आधारित होकर किया जाता है।

9) क्रिया आधारित – पाठ्यचर्या का वर्गीकरण क्रिया पर आधारित होकर किया जाता है। क्रियाओं पर आधारित शिक्षा को शिक्षा में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। मॉरिया मॉन्टेसरी, गिजु भाई, फ्राबेल आदि ने इस तर्क के साथ अपना मत दिया है। उन्होंने शिक्षा में क्रियाओं का समर्थन किया है। मॉरिया मॉन्टेसरी ने “करके सीखना” तथा “क्रियाओं द्वारा शिक्षा’ को ही शिक्षा का आधार बताया गया है। क्रिया द्वारा ज्ञान प्राप्त करने से ज्ञान स्थायी होता है तथा लक्ष्यों की पूर्ति बहुत ही सरलतापूर्वक हो जाती है। इसमें शारीरिक प्रशिक्षण तथा कौशलों के विकास के लिए बल दिया जाता हैं। इनका सीधा-सीधा सम्बन्ध व्यवसायिक क्रियाओं तथा कार्यों से होता है। इसमें मांसपेशियों का प्रयोग महत्त्वपूर्ण होता है। जैसे-जैसे शारीरिक प्रशिक्षण तथा क्रियाओं के समन्वय से ज्ञान प्राप्त करना सार्थक होता है। इसमें आवेगों तथा उद्दीपनों का उपयोग होता है। अतः क्रिया को आधार मान कर पाठ्यचर्या का वर्गीकरण किया गया है।

10) नियमों पर आधारित – पाठ्यचर्या के वर्गीकरण में सहायक हैं कुछ शिक्षा से सम्बन्धित नियम व सिद्धान्त। नियमों व सिद्धान्तों के आधार पर शिक्षा को पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों तक प्रेषित किया जाता है। ज्ञान के कुछ नियम होते हैं। जैसे सरल से कठिन, मूर्त से अमूर्त, उपयोगिता के आधार पर आदि। अतः नियमों व सिद्धान्तों के द्वारा शिक्षा देना वर्तमान में समय की माँग भी है। इन सिद्धान्तों का प्रतिपादन कई विद्वानों ने अपने-अपने तरीकों से किया है। सिद्धान्तों के साथ अपना पक्ष मुदालियर आयोग ने अपनी शैक्षिक संस्तुति में रखा था। उन्होंने नियमों तथा सिद्धान्तों द्वारा शिक्षा के लिए अपने सुझाव प्रस्तुत किए। अतः पाठ्यचर्या का वर्गीकरण सिद्धान्तों व नियमों के आधार पर किया जाता है।

11) विधियों पर आधारित- शिक्षा में शिक्षण विधियों का सराहनीय स्थान होता है। शिक्षण विधियों द्वारा शिक्षण कराना तथा छात्रों में ज्ञान प्रदान करना सरल नहीं है किन्तु छात्रों के द्वारा ज्ञान ग्रहण करना सरल हो जाता है। शिक्षण विधियां भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं जिनका उपयोग अध्यापक अपने अध्यापन में करता है। इन विधियों में क्रियाएं, प्रयोग, सहायक शिक्षण सामग्री का उपयोग, दृश्य, दृश्य-श्रव्य, श्रव्य सामग्री का उपयोग भी सम्मिलित हैं। इन विधियों का प्रयोग करने से निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति सरलता से होती है तथा उत्कृष्ट परिणाम उपलब्ध होते हैं। इसलिए पाठ्यचर्या के वर्गीकरण का एक आधार विधियाँ/शिक्षण विधियाँ माना जाता है।

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Anjali Yadav

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