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प्रबन्धकीय लेखापाल अथवा नियन्त्रक नियन्त्रक का अर्थ (Meaning of Management Accountant/Controller)
प्रबन्धकीय लेखांकन का कार्य सम्पादन करने वाले व्यक्ति को प्रबन्धकीय लेखापाल कहते हैं। भारत में कुछ कम्पनियों खासकर सरकारी कम्पनियों में इसे वित्तीय नियन्त्रक या वित्त- निर्देशक के रूप में माना जाता है। अमेरिका में इसे नियन्त्रक या वित्तीय नियन्त्रक कहा जाता है। इसके आलवा इसे कुछ अन्य नामों; जैसे- मुख्य लेखापाल, लेखांकन प्रबन्धक, लेखा नियन्त्रक, वित्तीय सलाहकार आदि से भी जाना जाता है। वास्तव में, यह वह अधिकारी होता है जो संस्था में प्रबन्ध लेखांकन को व्यवाहारिक रूप प्रदान करता है। प्रबन्ध लेखापाल एक ऐसा अधिकारी होता है जो लेखांकन एवं वित्तीय मामलों में आवश्यक सूचना एकत्र करता है। तथा उसे विभिन्न स्तर के प्रबन्धकों को प्रस्तुत करता है। जिससे वे अपने कार्यों को कुशलतापूर्वक सम्पादित कर सकें। इसका व्यावसायिक संस्था में वहीं स्थान होता है जो स्थान मानव शरीर में ‘नाड़ी तन्त्र’ का होता है। वह अपनी विशिष्ट योग्यता एवं अनुभव के कारण व्यवसाय का कुशल विश्लेषक होता है जो वित्तीय लेखों को रखने तथा प्रबन्ध के मार्ग-दर्शन के लिए उनकी व्याख्या करने के लिए उत्तरदायी होता है वह संस्था का एक बहुत ही योग्य व महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है ।
प्रबन्धकीय लेखापाल अथवा नियन्त्रक की स्थिति (Status or Position of Management Accountant or Controller)
किसी भी उपक्रम में प्रबन्ध लेखापाल अथवा नियन्त्रक की स्थिति प्रबन्ध सोपान (Managemnt Hierarchy) में निशिचित नहीं है। संस्था में उसकी स्थिति केवल पद से जुड़ी हुई नहीं होती बल्कि यह उसके व्यक्ति, उसकी मानसिक स्थिति, देश की औद्योगिक पृष्ठभूमि, उसकी व्यक्तिगत योग्यता, कार्यकुशलता, ईमानदारी तथा दूसरों के विश्वास को जीतने की क्षमता आदि पर निर्भर करती है। इसकी नियुक्ति की शर्तें संचालक मण्डल से निर्धारित होती है। अतः प्रबन्धकीय लेखापाल की स्थिति विभिन्न व्यवासायिक संस्थाओं में भिन्न-भिन्न होती है। अमेरिका की कण्ट्रोलर्स इन्स्टीट्यूट कमेटी ने नियन्त्रक की निम्न संगठनात्मक स्थिति का सुझाव दिया है-
1. नियन्त्रक नीति निर्धारण करने वाले स्तर पर एक कर्मचारी अधिकारी होना चाहिए तथा उसे संस्था के मुख्य अधिकारी के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए।
2. संचालक मण्डल को चाहिए कि वह नियन्त्रक को सीधे निश्चित अवधि के प्रतिवेदन प्रस्तुत करने को कहे तथा वह प्रतिवेदन आवश्यक सूचनाओं के साथ-साथ व्यापार की क्रियाशीलता एवं वित्तीय स्थिति को प्रदर्शित करने वाले हों।
3. नियन्त्रक संचालक मण्डल तथा अन्य उच्चस्तरीय नीति निर्धारित करने वाली समितियों का सदस्य होना चाहिए यदि ऐसा नहीं है तो वह कम से कम संचालक मण्डल की बैठकों में आमन्त्रित किया जाये तथा उसे अपनी बात को रखने का अवसर दिया जाये।
प्रबन्ध लेखापाल अथवा नियन्त्रक के गुण (Qualitites of a Management Accountant or Controller)
सामान्यतया एक प्रबन्ध लेखापाल में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक माना गया है-
1. लेखांकन का ज्ञान (Knowledge of Accounting) – प्रबन्ध लेखापाल को वित्तीय लेखांकन तथा लगात लेखांकन का पूर्ण जानकार होना चाहिए। लेखांकन सम्बन्धी पूर्ण जानकारी नहीं होने पर वह प्रबन्धकों को वांछित सूचना का प्रेक्षण नहीं कर सकता है।
2. सांख्यिकी का ज्ञान (Knowledge of Statistics) – प्रबन्ध लेखापाल को सांख्यिकी विधियों की अच्छी जानकारी होनी चाहिए। सांख्यिकी विधियों की सही जानकारी होने पर ही वह विभिन्न आँकड़ों का उचित वर्गीकरण एवं विलेषण करके उन्हें ग्राफों, चा, तालिकाओं, सारणियों आदि के माध्यम से विभिन्न स्तर के प्रबन्धकों के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है।
3. अर्थशास्त्र का ज्ञान (Knowledge of Economics) – व्यवसाय की अनेक बातें अर्थशास्त्र के नियमों पर आधारित है। माँग एवं पूर्ति के आधार पर मूल्य-निर्धारण, अनुकूलतम उत्पादन-मात्रा का निर्धारण एवं पूँजी के पूर्ण उपयोग से सम्बन्धित निणयों में अर्थशास्त्र का ज्ञान बहुत आवश्यक होता है।
4. कानून का ज्ञान (Knowledge of Law) – वर्तमान व्यावसाय कानूनी जटिलताओं से घिरा हुआ है। कानूनी जटिलताएँ लागतार बढ़ती जा रही है, अतः नियन्त्रक को व्यवसाय को प्रभावित करने वाले समस्त कानूनों का ज्ञान हो चाहिए। नयी अंश पूँजी का निर्गमन, लाभांश का वितरण ह्रास एवं संचय, अन्तिम खातों का प्रकाशन एवं अंकेक्षण आदि के लिए भी विभिन्न कानूनी व्यवस्थाएँ है जिनका पालन किया जाना आवश्यक है। अतः नियन्त्रक के लिए कानूनी ज्ञान अति आवश्यक है।
5. मनोविज्ञान का ज्ञान (Knowledge of Psychology)- नियन्त्रक केवल लागत पर ही नियन्त्रण नहीं रखता बल्कि उसे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों एवं अन्य विभागों के कर्मचारियों पर भी नियन्त्रण रखना होता है। यदि वह मनोविज्ञान का अच्छा जानकार हो तो वह कर्मचारियों से अधिक अच्छा काम करवा सकता है तथा उसके बीच मधुर मानवीय सम्बन्ध भी कायम रख सकता है।
6. व्यक्तिगत गुण (Personal Qualities) – मर्फी के अनुसार प्रबन्ध लेखापाल में प्रबन्धकों के विचार को जानने, उनके द्वारा माँगी गयी सूचना के महत्व को समझने, संस्था की लाभदायकता तथा प्रगति सम्बन्धी विषयों पर सोचने इत्यादि के ख्याल से उसमें व्यवहारकुशलता, ईमानदारी, निष्ठा विनोदी स्वभाव आदि गुणों का होना आवश्यक है।
प्रबन्धकीय लेखापाल अथवा नियन्त्रण के कार्य / कर्तव्य (Function / Duties of Management Accountant or Contoller)
प्रबन्ध लेखापाल का प्रमुख कार्य व्यवसाय के प्रबन्धकों को आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध कराना है, ताकि प्रबन्धकीय कार्यों का निष्पादन कुशलतापूर्वक किया जा सके। उसके समस्त सूचनाओं को उपलब्ध कराने के लिए वित्तीय एवं लागत लेखांकन के अतिरिक्त स्रोतों के अलावा स्रोतों से भी सूचनाओं का संग्रह एवं सम्पादन का काम करना पड़ता है, ताकि व्यवासाय के संचालन एवं नियन्त्रण में सहायता मिल सकें। इस हेतु सामान्यतः प्रबन्ध लेखापाल को निम्नलिखित कार्य करने पड़ते हैं-
1. सूचनाओं का विश्लेषण एवं पुनर्विन्यास (Analysis and Rearrangement of Information)- विभिन्न स्रोतों से संकलित समंक जटिल एवं अव्यवस्थित होते हैं जिन्हें यदि प्रारम्भिक रूप से प्रबन्ध के समक्ष रख दिया जाय तो किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सकता है। प्रबन्धकीय लेखापाल सूचनाओं का विश्लेषण, वर्गीकरण, सम्पादन एवं पुनर्विन्यास कर इस स्थिति में आता है, ताकि प्रबन्धकों के द्वारा उनका प्रयोग कर सही निष्कर्ष को प्राप्त किया जा सके।
2. सूचनाओं का मूल्यांकन (Evaluation of Information)- लेखापाल प्राप्त सूचनओं की जाँच एवं मूल्यांकन करके व्यर्थ एवं असंगत सूचनाओं को अलग करता है तथा महत्वपूर्ण एवं न्यासंगत सूचनाओं को विन्यासित कर प्रबन्ध के समक्ष प्रस्तुत करता है।
3. सूचनाओं की व्याख्या या निर्वचन (Interpretation of Information) – संकलित सूचनाओं का विश्लेषण, पुनर्विन्यास एवं मूल्यांकन ही किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए आवश्यक नहीं है बल्कि इसके लिए सूचनाओं की व्यावख्या आवश्यक है । व्याख्या करने से ही सूचनाओं के समबन्ध में विस्तृत जानकारी हो पाती है। लेखापाल पूर्व-निर्धारित प्रमापों की तुलना वास्तविक कार्य निष्पादन से करता है तथा अन्तर के कारण एवं इसके लिए उत्तरदायी व्यक्तियों का पता लगाता है तत्पश्चात् उद्देश्यों की प्राप्ति के सम्बन्ध में प्रबन्धकों के समक्ष अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है।
4. सूचनाओं का प्रस्तुतीकरण (Presentation of Information) – सूचनाओं को उचित समय पर प्रबन्धाकों के समक्ष प्रस्तुत करना लेखापाल का महत्वपूर्णा कार्य होता है। प्रबन्धकीय कार्यों की कुशलता भी सूचनाओं के सही प्रस्तुतीकरण पर निर्भर करती है।
5. नियन्त्रण के लिए नियोजन (Planning for Control)- व्यावसायिक क्रियाओं पर नियन्त्रण हेतु प्रबन्ध के एक अभिन्न अंग के रूप में एक एकीकृत योजना बनाना, समन्वित करना तथा अधिकृत प्रबन्ध द्वारा लागू करना आवश्यक है। व्यासाय के आकार तथा आवश्यकता के अनुसार इस योजना में परिव्यय-प्रमाप, बिक्री-पूर्वानुमान, लाभ-नियोजन, व्यय-बजट, पूँजीगत विनियोग और उनके अर्थ-प्रबन्धन का कार्यक्रम आदि सम्मिलित किये जा सकते हैं। साथ ही साथ इसमें योजना के कार्यान्वयन हेतु आवश्यक कार्य विधि भी दी जा सकती है।
6. कर व्यवस्था (Tax-Administration) – नियन्त्रक को संस्था की कर-नीतियों तथा कार्य-विधियों का निर्धारण करके उन्हें लागू करना होता है। इसी कार्य को कर नियोजन कहा जाता है।
7. सरकारी एजेन्सियों को सूचित करना (Reporting to Government Agencies) – प्रबन्ध लेखापाल को विभिन्न कानूनों के तहत सरकारी एजेन्सियों को भेजे जाने वाले विभिन्न प्रतिवेदनों व विवरणों को तैयार करवाना, उनका निरीक्षण करना, उसमें समन्वय करना तथा उचित समय पर सम्बन्धित सरकारी एजेन्सियों को भिजवाना होता है।
8. सम्पत्तियों की सुरक्षा (Protection of Assets) – व्यावसायिक सम्पत्तियों को सुरक्षा प्रदान करना प्रबन्ध लेखापाल का महत्वपूर्ण कार्य होता है। इस कार्य हेतु प्रबन्ध लेखापाल को आन्तिरक निरीक्षण, आरन्तरिक अंकेक्षण तथा बीमा व्यवस्था पर ध्यान देना होता ।
9. आर्थिक मूल्यांकन (Economic Appraisal)- व्यवसाय की सफलता असफलता में बाह्य कारणों के प्रभाव का मूल्यांकन एवं उनके सम्बन्ध में प्रतिवदेन देना भी प्रबन्ध लेखापाल का कार्य होता है। इसके लिए वह सतत् आर्थिक व सामाजिक शक्तियों तथा सरकारी नीतियों के प्रभावों का मूल्यांकन करता है तथा उसके व्यवसाय पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या करता है।
भारतीय सन्दर्भ में प्रबन्धकीय लेखांकन की भूमिका (Management Accounting in Indian Context)
भारतीय सन्दर्भ में प्रबन्धकीय लेखांकन का अध्ययन निम्नलिखित आधार पर किया जा सकता है-
1. स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में आर्थिक असन्तुलन को दूर करने के उद्देश्य से योजनाएँ बनायी गयी। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में उद्योगों के विकास व विस्तार पर विशेष ध्यान दिया गया। बड़े आकार के उद्योगों की समस्याएँ बढती चली गयी जिन्हें हल करने के ख्याल से तथा दैनिक व्यवसाय संचालन को क्रियान्वित करने के उद्देश्य से प्रबन्धकीय लेखांकन की आवश्यकता बढ़ती ही गयी।
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारत में लोक उद्योगों का विकास बड़ी तेजी से हुआ। इसके विकास के कारण भी प्रबन्धकीय लेखांकन एवं प्रबन्धकीय लेखापाल का महत्व बढ़ता ही गया है। पूर्व निर्धारित योजना से संगठन कार्यों, साधनों के एकत्रीकरण तथा निर्देशन में सहायता मिलती है तथा कार्य का सम्पादन आसान हो जाता है योजना आयोग ने भी यह स्वीकार किया है कि पूर्व निर्धारित लागतें, संचालन तथा पूँजी बजट आदि बना लेने से प्रशासकीय मन्त्रालयों के बार-बार सन्दर्भ की आवश्यकता नहीं पड़ती है तथा इससे उपक्रम की सवयत्ता तथा लोचनीयता बनी रहती है।
2. भारत में योजनाओं के सन्दर्भ में हमेंशा यह शिकयत रही है कि योजनाएँ मात्र कागज पर ही बनायी जाती है, उनका लाभ जनसाधारण तक नहीं पहुंच पाता है। योजनाओं से केवल लक्ष्य का निर्धारण ही पर्याप्त नहीं होता बल्कि उनके संचालन के लिए एक निश्चित मापदण्ड की आवश्यकता होती है, साथ ही “योजना के क्रियान्वित करने, मापन एवं मूल्यांकन की आवश्यकता पड़ती है, ताकि इस बात की जानकारी हो जाय कि योजना का कार्य निर्धारित मापदण्ड के आधार पर किया जा रहा है अथवा नहीं। प्रबन्धकीय लेखांकन इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
3. लोक-उद्योगों में वित्तीय सलाहाकार (Finacial Adviser) होता है जो प्रबन्धकीय लेखापाल के उत्तरदायित्व का निर्वाह करता है एवं मुख्य प्रबन्ध (General Manager) को सलाह देने का कार्य करता है। हालांकि, उसकी सलाह मानना या न मानना मुख्याप्रबन्धक पर निर्भर करता है, फिर भी उसकी सलाह को प्रबन्धक आगामी बैठक में बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करता है। वित्तीय सहालाकार के रूप में प्रबन्धकीय लेखापाल की यह महत्वपूर्ण भूमिका है।
4. भारतीय रेलवे, प्रबन्धकीय लेखांकन की विधि तकनीके; जैसे- लेखों का वर्गीकरण, वित्तीय तथा लागत समंक बजटरी नियन्त्रण, इन्वेण्टरी प्रबन्ध आदि विधियों से लक्ष्य प्राप्ति में सुविधा हुई है तथा आय, लागत तथा विनियोजित पूँजी से सम्बन्धित निर्णय भी प्रभावित हुआ है। भारतीय रेलवे में कम्प्यूटर से शीघ्र लेखा करने भाड़े तथा आय मदों के लेखा कार्य में शीघ्रता लाने, बजट तथा लेखाविधि अपनाने, ऐसे अन्तिम लेखे बनाने जिससे संचालन का परिणाम, सम्पत्ति एवं दायित्वों की स्थिति, निधि (Fund) के स्रोतों एवं प्रयोग को स्पष्ट रूप से दिखाया जा सके आदि विधियाँ भी प्रारम्भ की गयी है। प्रबन्धाकीय लेखांकन से सम्बन्धित इन समस्त कार्यावाहियों का रेलवे के संचालन में बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा है।
5. सार्वजनिक उपक्रमों में मूल्य-नीति का समुचित ढंग से अनुसरण किया जाता है तथा सरकारी संरक्षण प्राप्त होने के कारण इनकी लाभदायकता बढ़ जाती है। एक विकासशील देश में उपार्जित आय का सही ढंग से प्रयोग किया जाना चाहिए, ताकि विकास की गति को तीव्र किया जा सके। प्रबन्धकीय लेखांकन द्वारा उपार्जित आय के उचित विनियोग हेतु समंकों का उद्देश्यपूर्ण ढंग से विश्लेषण तथा निर्वचन (Analysis and Interpreatation) किया जा सकता है।
आज भारत में विभिन्न प्रकार की यन्त्रीय विधियों का विकास तथा विश्लेषण आदि की नवीन तकनीकें व्यवहार में आने के कारण प्रबन्धकीय शिक्षा एवं प्रशिक्षण का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। प्रबनधकीय लेखांकन के विभिन्न उपकरण; जैसे- प्रमाप लागत, बजटरी नियन्त्रण, सीमान्त लागत, अन्तर-संस्था तुलना आदि का महत्व बढ़ जाने के कारण प्रबन्धकीय लेखापाल (Management Accountant) की अनेक कम्पनियों के उच्च प्रबन्ध में महत्वपूर्ण भूमिका समझी जा रही है।
प्रबन्ध लेखापाल (Management Accountant) कौन होता है?
व्यावसायिक उपक्रम में जो व्यक्ति प्रबंध लेखांकन का कार्य सम्पन्न करते हैं, उन्हें प्रबन्ध लेखापाल कहा जाता है। प्रबंध लेखापाल को मुख्य लेखापाल, नियंत्रक, लेखा प्रबंधक वित्त निदेशक, वित्तीय नियंत्रक आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया जाता है। वास्तव में यह वह अधिकारी होता है जो संस्था में प्रबंध लेखांकन को व्यावहारिक रूप प्रदान करता है। प्रबंध लेखापाल एक वह अधिकारी होता है जो लेखांकन एवं वित्तीय मामलों में आवश्यक सूचना एकत्र करता है तथा उसे विभिन्न स्तर के प्रबंधकों को प्रस्तुत करता है जिससे वे अपने कार्यों को कुशलतापूवर्क संपादित कर सकें। इसका व्यावहारिक संस्था में वही स्थान होता है जो स्थान मानव शरीर में ‘नाड़ी’ तंत्र’ का होता है। वह अपनी विशिष्ट योग्यता एवं अनुभव के कारण व्यवसाय का कुशल विश्लेषक होता है जो वित्तीय लेखों को रखने तथा प्रबंध के मार्ग दर्शन के लिए उनकी व्याख्या करने के लिए उत्तरदायी होता है। वह संस्था का एक बहुत ही योग्य एवं महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है।
लेखापाल अथवा नियन्त्रक के दायित्व (Responsibilities of Management Account or Controler)
प्रबन्ध लेखापाल का महत्वपूर्ण कार्य विभिन्न स्तरों के प्रबन्धकों को सूचनाएँ प्रेषित करना तथा उसकी व्याख्या करना होता हैं प्रबन्ध लेखापाल द्वारा प्रेषित सूचनाओं के ही आधार पर प्रबन्धक व्यवसाय के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण निर्णय लेते है। प्रबन्ध लेखापाल का यह कार्य बड़ा उत्तरदायित्वपूर्ण होता है। यदि उसने कोई सूचना प्रबन्धकों को दी हो तथा जिसकों आधार मानकार कोई गलत निर्णय ले लिया गया होता तो क्या इसके लिए प्रबन्ध लेखापाल उत्तरदायी ठहराया जायेगा ? इस सम्बन्ध में निम्न बातें ध्यान में रखी जायेंगी-
1. मामले की स्थिति (Condition of Matter)- यदि प्रबन्ध लेखापाल अपनी पूर्ण सावधानी के साथ प्रबन्धकों को सूचना प्रेक्षित करता है तथा उन्हें इस प्रकार प्रबन्धकों के समक्ष रखता है, ताकि उनका सही निर्वचन हो सके तो इसके लिए प्रबन्ध लेखापाल उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। इसके विपरीत, यदि लेखापाल द्वारा प्रेषित सूचनाएँ त्रुटिपूर्ण अशुद्ध पक्षपातपूर्ण तथा भ्रमोत्पादक है तथा उनके आधार पर गलत निर्णय हो गये है, तब ऐसी स्थिति में प्रबन्ध लेखापाल को निःसन्देह उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
2. प्रबन्धक लेखापाल की स्थिति (Condition of Managemnt Accountant)- यदि प्रबन्ध लेखापाल की स्थिति केवल सूचनाओं को अंकित करने तथा इन्हें प्रेषित करने वाले व्यक्ति के रूप तक ही सीमित हो तो उसके द्वारा प्रेषित सूचनाओं के आधार पर लिये गये निर्णयों के लिए वह उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। इसके विपरीत उसकी स्थिति सूचनाओं के आंकन तथा प्रेषण तक ही सीमित न होकर व्यावसायिक क्रियाओं के नियोजन, नीति निर्धारण एवं निर्णयन व प्रबन्धकों के साथ सक्रिय भाग लेने तक सम्मिलित हो तो ऐसी स्थिति में गलत प्रबन्धकीय निर्णयों के लिए वह उत्तरदायी ठहराया जायेगा।
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