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बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या (Learner-Centred Curriculum) : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ एंव सीमाएँ

बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या (Learner-Centred Curriculum) : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ एंव सीमाएँ
बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या (Learner-Centred Curriculum) : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ एंव सीमाएँ

बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या (Learner-Centred Curriculum)

वर्तमान समय में शिक्षा विषय केन्द्रित न होकर बाल केन्द्रित हो गयी है क्योंकि यह पूर्णतः मनोवैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है। अतः पाठ्यचर्या भी विषय केन्द्रित नहीं रह गई है यह भी बाल केन्द्रित हो गई है। बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या का निर्धारण बाल मनोविज्ञान के सिद्धान्तों के अनुसार किया जाता है अर्थात् बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या में बालक को शिक्षा का केन्द्र बिन्दु माना जाता है।

बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या का निर्माण बालक की रुचियों, प्रकृति, मानसिकता, आवश्यकता आदि के आधार पर किया जाता है जिससे बालक पाठ्यचर्या में रुचि ले सके। इस पाठ्यचर्या का प्रमुख उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास है। बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या का सर्वप्रथम उपयोग जॉन ड्यूवी के प्रयोगशाला विद्यालय (Laboratory School) में हुआ था।

जेम्स एम. ली के अनुसार, ‘बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या वह पाठ्यचर्या है जो पूर्णतः और समग्र रूप से सीखने वाले में निहित होता है।”

According to James M. Lee, “Student-centred curriculum is one which is completely and wholly rooted in the learner.”

अधिगमकर्ता/बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या की विशेषताएँ (Characteristics of Child-Centred Curriculum)

वर्तमान में शिक्षा व्यवस्था बालक केन्द्रित पाठ्यचर्या पर आधारित है जिसकी कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या क्रियात्मकता पर आधारित होती है।
  2. बालकों को सीखने के लिए प्रेरित करती है।
  3. पाठ्यचर्या पूर्णतः बाल मनोविज्ञान पर आधारित है।
  4. बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या के माध्यम से बालक का सर्वांगीण विकास सम्भव है।
  5. बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या प्रयोगवादी विचारधारा का अनुसरण करती है।
  6. आधुनिक शिक्षा पद्धतियों में कुशलतापूर्वक उपयोग में लिया जा रहा है। जैसे- मॉण्टेसरी पद्धति, किण्डरगार्टन पद्धति आदि।

अधिगमकर्ता/बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या की सीमाएँ (Limitations of Child-Centred Curriculum)

अधिगमकर्ता / बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या उच्च स्तरीय कक्षाओं के लिए अनुपयोगी होती है।
  2. बाल केन्द्रित पाठ्यचर्या का निर्धारण बहुत कठिन होता है क्योंकि बालकों की रुचियों में परिवर्तन होता रहता है।
  3. पाठ्यचर्या में परिवर्तन करना अत्यन्त जटिल कार्य है।
  4. इसमें अत्यधिक समय एवं धन की आवश्यकता होती है।
  5. बाल मनोविज्ञान को समझने वाले शिक्षकों का प्रायः अभाव रहता है।

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Anjali Yadav

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