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बेसिक शिक्षा (Basic Education)
गाँधी जी ने स्वतन्त्रता की लड़ाई के साथ-साथ तत्कालीन शिक्षा में भी अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए। सर्वप्रथम सन् 1921 ई० में अपने साथियों के समक्ष ‘राष्ट्रीय शिक्षा का प्रस्ताव रखा परन्तु तब इसे मूर्त रूप नहीं दिया जा सका। सन् 1937 ई० में भारत के सभी प्रान्तों में सरकार का गठन हुआ और 11 में से 7 प्रान्तों में कांग्रेस मंत्रिमण्डल बने। अक्टूबर सन् 1937 में वर्धा में राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें गाँधी जी ने राष्ट्रीय शिक्षा की रूपरेखा प्रस्तुत की जिसे बेसिक शिक्षा कहते हैं।
बेसिक शिक्षा का अर्थ है- बालकों का उनके वास्तविक जीवन से जोड़ते हुए आधारभूत ज्ञान और कौशलों को प्रदान करना जिससे वह अपने आपको वास्तविक जीवन के लिए तैयार कर सकें।
बेसिक शिक्षा की रूपरेखा (Framework of Basic Education)
प्रारम्भ में बेसिक शिक्षा की रूपरेखा इस प्रकार थी-
1) 7 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था ।
2) शिक्षा का माध्यम-मातृभाषा सम्पूर्ण शिक्षा शिल्प अथवा उद्योग पर आधारित ।
3) शिल्प का चुनाव बच्चों की योग्यता एवं क्षेत्रीय आवश्यकता पर आधारित।
4) बच्चों द्वारा निर्मित वस्तु का उपयोग करते हुए उनके द्वारा किए गए आर्थिक लाभ से विद्यालयी व्यय को पूरा किया जाए।
5) शिल्पों की शिक्षा बच्चों के जीविकोपार्जन के अनुसार हो।
6) शिल्पों की शिक्षा में आर्थिक महत्त्व के साथ-साथ सामाजिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व को भी स्थान।
बेसिक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Basic Education)
बेसिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1) शारीरिक एवं मानसिक विकास- गाँधी जी ने जो बेसिक शिक्षा की अवधारणा प्रस्तुत की उसमें उन्होंने व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक विकास दोनों पर बल दिया। उनका मानना था कि, यदि बालक शारीरिक रूप से स्वस्थ्य रहेगा तभी वह मानसिक रूप से स्वस्थ्य एवं सक्रिय रह कर विकास कर सकता है। गाँधी जी ने इस प्रकार की पाठ्यचर्या के निर्माण पर बल दिया जिससे बालक के मानसिक विकास के साथ-साथ उसका शारीरिक विकास भी हो सके।
2) सर्वोदय समाज की स्थापना- गाँधी जी ने शिक्षा के माध्यम से एक ऐसे समाज के निर्माण का स्वप्न देखा था, जिस समाज में सभी वर्गों को एक साथ लेकर चलने या सभी वर्गों का विकास हो सके। ऐसा समाज जिसमें सभी वर्गों का उदय (तरक्की) हो ऐसे समाज को सर्वोदय समाज कहते हैं। गाँधी जी का सपना था कि सर्वोदय समाज में सभी नागरिक एक-दूसरे के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो सकेंगे।
3) सांस्कृतिक विकास- गाँधी जी ने बेसिक शिक्षा में जो पाठ्यक्रम निर्धारित किया उसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति की रक्षा एवं उसके संवर्द्धन पर विशेष बल दिया। गाँधी जी का मानना था कि हमारी संस्कृति हमारे जीवन का मूल आधार है। इस प्रकार बेसिक शिक्षा के अन्तर्गत गाँधी जी ने सांस्कृतिक उद्देश्य की पूर्ति को बहुत ही आवश्यक माना है।
4) चारित्रिक एवं नैतिक विकास- बेसिक शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य बालकों में चारित्रिक एवं नैतिकता का विकास भी था। गाँधी जी ने माना कि समाज तभी तरक्की कर सकता है जब उसके नागरिक नैतिक एवं चारित्रिक रूप से धनवान होंगे।
5) व्यवसायिक शिक्षा- गाँधी जी चाहते थे कि शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक स्वावलम्बी बन सके। बालकों को ऐसी हस्तकला एवं कौशल सिखाया जाए जिससे वे शिक्षा समाप्ति के बाद आराम से अपना जीविकोपार्जन कर सकें। गाँधी जी बालक को व्यावसायिक रूप में दक्ष बना कर उसकी आर्थिक स्थिति को सुधारना चाहते थे।
6) आध्यात्मिकता का विकास- गाँधी जी, शिक्षा का अन्तिम लक्ष्य ईश्वर का ज्ञान और आत्मानुभूति को मानते थे। उनका विश्वास था कि प्राचीन काल के भारतीय ऋषियों की भाँति ही शिक्षा के उद्देश्यों को पूरा किया जाना चाहिए जिससे मनुष्य को आत्मिक सन्तुष्टि प्राप्त हो सके। वे आध्यात्मिकता को बेसिक शिक्षा के अन्तर्गत बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानते थे।
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