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ब्रूनर के सिद्धान्त की व्याख्या (Explanation of Bruner’s Theory)
ब्रूनर के सिद्धान्तों की व्याख्या को हम निम्न भागों में विभाजित कर समझ सकते हैं-
1) विश्लेषणात्मक चिन्तन बनाम अन्तर्दर्शी चिन्तन (Analysis Thinking versus indicative Thinking) – बूनर के अनुसार विश्लेषणात्मक चिन्तन पर अर्न्तदर्शी चिन्तन की अपेक्षा अधिक ध्यान दिया जाता है जबकि अन्तर्दर्शी चिन्तन किसी विषय को सीखने हेतु अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अन्तदर्शन द्वारा ही पाठ को तत्काल ग्रहण किया जा सकता है।
बूनर के अनुसार अन्तदर्शन से आशय ऐसे व्यावहार से है जिसमें व्यक्ति अपने विश्लेषणात्मक उपायों पर बिना किसी तरह की निर्भरता दिखाए ही किसी परिस्थिति या समस्या की संरचना, महत्व व अर्थ को समझता है।”
According to Bruner, “Instruction implies the act of grasping the meaning. significance or structure of a problem or situation without explicit reliance on the analytic apparatus of one’s craft.”
2) तत्परता (Readiness) – ब्रूनर ने बालको के पाठ्यक्रम के अनुसार क्षमता विकसित करना सर्वथा गलत माना है। उनके अनुसार किसी भी उम्र के बालक को कोई भी विषय सिखाने हेतु तत्पर किया जा सकता है।
3) शिक्षार्थियों द्वारा स्वयं कार्य करने की उपयोगिता (Importance of Doing Things on his Own by Learners) — ब्रूनर का मानना है कि अधिगम के दौरान बालकों को सक्रिय रहना चाहिए क्योंकि इससे बालकों को पाठ जल्दी व आसानी से समझ में आ जाता है। इस विधि द्वारा बालक जो भी सीखता है उसे वह अधिक दिनों तक याद रहता है।
4) अन्वेषणात्मक अधिगम (Heuristic Learning) – ब्रूनर ने इस बात पर जोर दिया कि अधिगम की सर्वोत्तम विधि अन्वेषण विधि है। उन्होंने कहा कि अध्यापकों को यह मान लेना चाहिए कि ज्ञान आत्म अन्वेषित होता है ऐसा ज्ञान जो छात्रों द्वारा आत्म-अन्वेषित होता है छात्रों के लिए बहुत उपयोगी होता है।
5) सम्बद्धता का महत्व (Importance of Relevance) – ब्रूनर ने अपनी पुस्तक द रेलिवेन्स ऑफ एजुकेशन’ (The Relevance of Education) में ब्रुनर ने दो प्रकार की सम्बद्धता का उल्लेख किया है सामाजिक सम्बद्धता (Social Relevance). व्यक्तिगत सम्बद्धता (Personal Relevance)। ब्रुनर ने कहा शिक्षा सिर्फ व्यक्तिगल रूप से नहीं बल्कि सामाजिक उद्देश्यों एवं लक्ष्यों के अनुरूप होनी चाहिए।
6) पाठ की संरचना (Structure of Discipline) — ब्रूनर के अनुसार बालकों को सिखाने हेतु प्रत्येक विषय की कुछ विधियाँ व नियम होते हैं जिन्हें बालकों द्वारा सीखना आवश्यक होता है क्योंकि बिना इन्हें सीखे वह वस्तुओं का सही उपयोग नहीं कर पाएगा।
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