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यथार्थवाद एवं पाठ्यचर्या | Realism and Curriculum in Hindi

यथार्थवाद एवं पाठ्यचर्या | Realism and Curriculum in Hindi
यथार्थवाद एवं पाठ्यचर्या | Realism and Curriculum in Hindi

 यथार्थवाद एवं पाठ्यचर्या (Realism and Curriculum)

यथार्थवादी विचारधारा का जन्म 17वीं शताब्दी में हुआ था। इस विचारधारा के उत्पन्न होने के दो प्रमुख कारण थे पहला कारण आदर्शवादी विचारधारा जो अत्यन्त आडम्बरपूर्ण एवं जीवन के लिए अनुपयोगी हो गई थी। दूसरा कारण विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक अनुसन्धान थे। अतः 17वीं शताब्दी में न्यूटन, कॉपरनिकस, बेकल गैलीलियो आदि वैज्ञानिकों की नवीन खोजों तथा अविष्कारों ने मानव मस्तिष्क में एकत्र अन्धविश्वास एवं दृष्टि की संकीर्णता को खत्म कर दिया जिसके कारण मानव का ध्यान वास्तविकता व यथार्थता की ओर आकर्षित हुआ। इस प्रकार भौतिक दार्शनिकता तथा वैज्ञानिक प्रवृत्ति ने ही यथार्थवाद को जन्म दिया।

यथार्थवादी विचारधारा के अनुसार जीवन की व्यावहारिकता पर बल दिया जाता है। अतः इस विचारधारा में पाठ्यचर्या को महत्त्वपूर्ण आधार प्रदान किया जाता है। यथार्थवादी पाठ्यचर्या में उन विशेष क्रियाओं को स्थान दिया जाता है जिनके द्वारा जीवन की वास्तविक परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त हो सके। अतः यथार्थवादी विचारक शिक्षा का उद्देश्य बालक को उसके वास्तविक जीवन के लिए तैयार करना है साथ ही साथ मानव समाज का पूर्ण ज्ञान प्रदान करना ताकि वह समाज का विकास कर सके। इसके अलावा यथार्थवादी शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास एवं उसकी प्राकृतिक प्रवृत्तियों व क्रियाओं का स्वतन्त्र विकास करना है एवं बालक की व्यावसायिक कुशलता व योग्यता का विकास करना है। शिक्षा की पाठ्यचर्या का ताना-बाना भी इन उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए ही बुना जाता है। इन उद्देश्यों को सामने रखकर ही पाठ्यचर्या निर्माण एवं विकास के सिद्धान्तों का निर्माण किया गया है, जो इस प्रकार है-

  1. उपयोगिता का सिद्धान्त,
  2. वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति का सिद्धान्त,
  3. व्यापक पाठ्यचर्या का सिद्धान्त,
  4. एकीकरण का सिद्धान्त,
  5. क्रियाप्रधान पाठ्यचर्या का सिद्धान्त, एवं
  6. व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धान्त।

यथार्थवादियों ने पाठ्यचर्या में ऐसे विषयों को सम्मिलित करने की संस्तुति की है जिससे बालकों को उपयोगी पाठ्यक्रम उपलब्ध कराया जाए। यथार्थवादियों ने जीवन की यथार्थवादी परिस्थितियों, आवश्यकताओं तथा समस्याओं पर विचार करते हुए पाठ्यचर्या में प्रकृति, विज्ञान तथा व्यावसायिक प्रकरणों (विषयों) को उच्च स्थान दिया है तथा भाषा, कला, साहित्य आदि को शून्य स्थान दिया। यथार्थवादियों ने लगभग 25 विषयों को पाठ्यचर्या में स्थान दिया है। यथार्थवादियों ने बालकों को अपनी रुचि के अनुसार विषयों को चयन करने की स्वतन्त्रता भी प्रदान की है। इसमें मातृभाषा को महत्त्व देते हुए व्यावसायिक विषयों को अनिवार्य रूप से पाठ्यचर्या में सम्मिलित करने के सुझाव दिए गए हैं।

इन सिद्धान्तों के अनुरूप ही कमेनियस ने मातृभाषा तथा उद्योग को अनिवार्य विषय घोषित किया है क्योंकि मातृभाषा सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है एवं उद्योग शिक्षा जीविकोपार्जन के लिए। यथार्थवादियों ने प्रकृति विज्ञान एवं व्यावसायिक विषयों को मुख्य स्थान दिया है साथ ही भाषा, कला, संगीत, इतिहास, भूगोल एवं राजनीति को गौण स्थान प्रदान किया गया है। ये बालकों को पूर्ण जीवन की तैयारी के लिए सभी विषयों को पढाना चाहते थे। उन्होंने विस्तृत पाठ्यचर्या में लगभग तीस विषयों को रखा है एवं बालकों को इनमें से अपनी रुचि के अनुसार विषय चुनने की स्वतन्त्रता प्रदान की है। संक्षेप में यथार्थवादी पाठ्यचर्या के अन्तर्गत आने वाले कुछ विषय इस प्रकार हैं- विज्ञान, भाषा, कौशल व हस्तकार्य, राजनीति, अर्थशास्त्र, समाज विज्ञान, खेलकूद, भ्रमण, गृहविज्ञान, इतिहास, धर्म, भूगोल, नक्षत्र विज्ञान एवं स्वास्थ्य रक्षा एवं व्यायाम आदि।

इस प्रकार स्पष्ट है कि यथार्थवादी शिक्षा ने शिक्षा के व्यावहारिक उददेश्यों पर बल दिया है जिसके लिए पाठ्यचर्या में प्राविधिक व व्यावसायिक शिक्षा को स्थान दिया है। शिक्षा में वैज्ञानिक प्रवृत्ति लाने का श्रेय भी यथार्थवाद को ही जाता है।

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Anjali Yadav

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