लेखांकन में रूचि रखने वाले व्यक्ति कौन है ? उनकी सूचना सम्बन्धी आवश्यकताओं को संक्षेप में समझाइए । Who are the users of accounting information? State briefly the information needs of them.
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लेखांकन में रूचि रखने वाले व्यक्ति (User of Accounting Information)
प्रत्येक औद्योगिक या व्यापारिक संस्था समाज का अंग है। समाज का प्रत्येक प्राणी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इनके क्रिया-कलापों से किसी न किसी रूप में प्रभावित होता है। अतः समाज व्यक्तिगत रूप से (सदस्य के नाते जैसे विनियोगकर्ता) या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से सामूहिक रूप में (जैसे सरकार आदि) संस्था की प्रगति, स्थिति या भावी विकास सम्बन्धी सूचनाओं को प्राप्त करना चाहता है। ऐसी सभी सूचनाएं लेखांकन के माध्यम से तैयार वित्तीय विवरणों एवं प्रतिवेदनों के माध्यम से भिन्न-भिन्न उद्देश्यों में रुचि रखने वाले व्यक्तियों तक विभिन्न प्रकार से उपलब्ध करवाई जाती है। ऐसी लेखांकन सूचनाओं के ये प्रयोगकर्ता एवं उनके लिए सूचनाओं के उपयोग का वर्णन निम्न प्रकार किया जा सकता है-
(1) व्यापार का स्वामी (Owner) –
लेखांकन सूचनाओं में सबसे अधिक रुचि उस व्यावसायिक संस्था के स्वामी की होती है। पूंजी का प्रथम स्रोत तथा तुलनात्मक रूप से अधिक जोखिम का भागीदार होने के कारण वह अपने व्यापार की वास्तविक स्थिति के बारे में जानकारी बनाए रखना चाहता है। व्यपार की वित्तीय स्थिति का सुदृढ़ होना उसकी पूँजी की सुरक्षा का प्रतीक है। अपने भावी कार्यों की सफलता का अनुमान व विभिन्न योजनाओं का निर्माण एवं लेखांकन सूचनाओं के आधर पर ही करता है। जैसे-जैसे व्यापार का आकार और जटिलता बढ़ती है, वैसे-वैसे व्यापार के स्वामी के लिए लेखांकन सूचनाओं की आवश्यकता बढ़ती जाती है ।
(2) प्रबन्ध (Management) –
वित्तीय लेखों का प्रमुख कार्य उन व्यक्तियों की सेवा करना है जो उत्पादन के साधनों का उपयोग कर रहे हैं तथा प्रतिफलस्वरूप लाभ कमाने व सुदृढ़ वित्तीय स्थिति बनाने के उद्देश्य से व्यवसाय का संचालन व नियन्त्रण करते हैं। इन व्यक्तियों को सामूहिक रूप से प्रबन्धक कहते हैं। प्रबन्धक को सुचारु रूप से अपनी क्रियाओं को सम्पादित करने के लिए अनेक प्रकार को विश्वसनीय एवं सही सूचनाओं की आवश्यकता पड़ती है। लेखांकन सूचनाओं के आधार पर ही यह कार्य निष्पादन का मूल्यांकन करता है। विभिन्न विभागों एवं प्रक्रियाओं की सफलता एवं विफलता को नापता है तथा उनकी तुलनात्मक कुशलता का मापन करता है। लेखांकन प्रतिवदेनों के द्वारा ही उसे ज्ञात होता है कि व्यवसाय में निहित पूँजी का किस प्रकार से क्षमतापूर्वक उपयोग हो सकता है, किस प्रकार से साख सम्बन्धी प्रमाप निश्चित किए जा सकते हैं। कुशल प्रबन्धकको व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने के लिए सदैव प्रभावशाली नीति का निर्धारण करना पड़ता है। इस नीति निर्धारण में एक अच्छे ढंग से तैयार किए गए वित्तीय लेखे काफी सहायता प्रदान करते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्रबन्धकीय नीतियों में सुधार, संचालन पर नियन्त्रण व लाभप्रद क्रियाओं से सम्पादन निर्णय में वित्तीय लेखे प्रबन्धकों के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है।
(3) लेनदार (Creditors)—
उधार माल एवं सेवाएँ देने वाले ऐसी साख सुविधाएँ प्रदान करने से पहले उस व्यावसायिक संस्था की तरलता तथा वित्तीय स्थिति के बारे में जानकारी करना चाहते हैं जो लेखांकन सूचनाओं के आधार पर तैयार वित्तीय विवरणों से प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त ये व्यवसाय की लाभोपार्जन क्षमता में भी रुचि रखते हैं, क्योंकि इसका भविष्य में व्यवसाय की शोधन क्षमता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इन सभी बातों के सम्बन्ध में सही व वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिए वित्तीय लेखों का प्रयोग बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इनकी सूचनाएँ ही भूतकाल में भुगतान परायणता या भुगतान में ढिलाई के कारणों पर प्रकाश डाल सकती है और भविष्य के बारे में सुझाव व जानकारी प्रदान कर सकती है।
(4) विनियोजक (Investors) –
विनियोजकों की श्रेणी में कम्पनी के अंशधारी तथा दीर्घ समय के लिए ऋण साख उपलब्ध करवाने वाले जैसे- ऋणपत्रधारी आते हैं। विनियोजकों का कम्पनी में दीर्घकालीन हित होता है। इनका मुख्य उद्देश्य मूलधन की सुरक्षा तथा उस पर नियमित पर्याप्त आय प्राप्त करना होता है। इसलिए उन्हें संस्था की आर्थिक स्थिति, लाभार्जन शक्ति, अंशों का वर्तमान मूल्य तथा विनियोग की सुरक्षा हेतु पुँजी संरक्षण व भावी योजनाओं के बारे में अनेक सूचनाओं की आवश्यकता होती है। ये सूचनाएँ इन्हें लेखांकन प्रतिवदेनों से ही प्राप्त होती है। भावी विनियोजकों के लिए भी लेखांकन सूचनाएँ बहुत उपयोगी होती है। लाभांश तथा लाभ की मात्रा के आधार पर अंशों का वास्तविक मूल्य, बाजार मूल्य का अनुमान तथा भविष्य में प्राप्त होने वाले प्रतिफल का पूर्वानुमान भी ये लेखांकन सूचनाओं के उपयोग से करते हैं। इसी तरह वित्तीय विवरणों के माध्यम से नियोजकों को कम्पनी की प्रशासन कुशलता, वित्तीय स्थिति तथा लाभार्जन क्षमता सम्बन्धी सूचना प्राप्त होती रहती है।
(5) बैंक (Bank) –
वर्तमान व्यावसायिक जगत में बैंकिंग गतिविधियाँ महत्वपूर्ण भाग अदा कर रही हैं। कम ब्याज पर अल्पकालीन व दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध करवाना, माल के पूर्तिकर्ताओं को क्रेता की तरफ से भुगतान की गारण्टी देना आदि कार्य करके व्यावसायिक जगत को ये संस्थाएँ साख सुविधाएँ प्रदान करती । ऋण देते समय बैंक इस बात का आश्वासन चाहते हैं कि उनके ऋण व ब्याज का देय तिथि पर भुगतान हो जायेगा। ऋण राशि की सुरक्षा रहेगी। इसलिए ग्राहक की वित्तीय स्थिति विशेषकर शोधन क्षमता व लाभार्जन शक्ति के बारे में पर्याप्त सूचनाओं की आवश्यकता होती है और ये सब लेखा विवरणों से प्राप्त होता है।
(6) कर्मचारी (Employees ) –
कर्मचारियों का भी वित्तीय सूचनाओं में हित होता है। वे यह जानना चाहते हैं कि संस्था को लाभार्जन स्थिति कैसी है। सम्बन्धित वर्ष में उनके श्रम सहयोग से कमाए गए लाभों का स्तर कितना है तथा यह राशि प्रबन्धकों, विनियोगकर्ताओं एवं उनके बीच में किस अनुपात में बाँटी गयी है और उसका क्या औचित्य है। अन्तिम लेखों में प्रदत्त सूचनाओं के उपयोग से ही वेतन वृद्धि, श्रम कल्याण कार्यों के विस्तार, कार्य सम्बन्धी दशाओं में सुधार आदि बातों के बारे में प्रबन्धकों से सौदेबाजी करते हैं। प्रबन्धक में श्रमिकों की सहभागिता (Worker’s Participation in Management) के प्रजातान्त्रिक विचार के क्रियान्वयन में तो श्रमिक वर्ग के लिए लेखांकन सूचनाओं का उपयोग और अधिक होगा।
(7) सरकार (Government) –
औद्योगिक जगत् उत्पादन के साधन समाज से एकत्रित करता है। देश के छोटे-छोटे बचतकर्ताओं का पैसा ही कम्पनियों द्वारा विभिन्न लुभावने नारों से एकत्रित कर लिया जाता है। इन सभी साधनों का कुछ व्यक्ति अनुचित उपयोग न करें तथा धोखेबाजी व अन्य तरीकों से जनता का शोषण न कर सके अतः अपने नागरिकों की प्रतिनिधि होने के कारण सरकार व्यवसाय गृहों पर नियन्त्रण रखती है। वह कम्पनियों से समय-समय पर विभिन्न वित्तीय सूचनाएँ एकत्रित कर विश्लेषित करती है तथा देशहित में अनुकूल निर्णय इन्हीं लेखा सूचनाओं के उपयोग से करती है। सम्पूर्ण उद्योग के बारे में नीति निर्धारित करने, उन पर करारोपण की नीति बनाने, अनुदान देने आदि निर्णय सरकार उद्योगों से प्राप्त वित्तीय सूचनाओं के आधार पर ही करती है।
(8) आयकर विभाग (Income Tax Department ) –
लेखांकन के द्वारा तैयार अन्तिम लेखों के आधार पर ही आयकर विभाग उस व्यावसायिक गृह की कर योग्य आय की गणना करता है। यद्यपि आयकर के दृष्टिकोण से ये सूचनाएँ पर्याप्त नहीं होती, फिर भी प्रत्येक कम्पनी को अपने अन्तिम खाते रिटर्न प्रस्तुत करते समय संलग्न करने पडते हैं।
(9) स्थानीय समुदाय (Local Community) –
स्थानीय समुदाय वहाँ के उद्योगों पर बहुत आश्रित होते हैं। केवल इसलिए नहीं कि वहाँ के लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं बल्कि इसलिए कि वे वहाँ के वातावरण के सम्पूर्ण सामाजिक आर्थिक ढाँचे के प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। स्थानीय उद्योग का समुदाय पर सकरात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार का प्रभाव होता है। जहाँ एक ओर वे स्थानीय लोगों के आर्थिक स्तर में वृद्धि करते हैं वही दूसरी ओर प्रदूषण, भीड़भाड़, अपराधवृति बढ़ाने के भी कारण होते हैं और इन सबसे स्थानीय सामाजिक ढाँचा प्रभावित होता है। अतः स्थानीय समुदाय वहाँ उद्योग की क्रियाओं में रुचि रखता तथा सामाजिक लागत व प्राप्त होने वाले फायदों के बारे में वह ज्यादा से ज्यादा सूचनाएँ चाहता है।
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